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जन्नत की चाबी है रोजा

रमजान का महीना प्रशिक्षण का महीना होता है। रमजान के महीने में खुदा अपने बंदों की परीक्षा लेते हैं और जो उस परीक्षा में पास हो गया वह जन्नत में जरूर जाएगा, इसलिए रमजान के महीने को जन्नत की चाबी भी कहा जाता है। इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर है, पहला कलमा, दूसरी नमाज, तीसरा रोजा, चौथा जकात और पांचवा हज है। इन पांच काम को करना एक मुसलमान के लिए फर्ज है, अगर कोई शख्स गरीब है तो उसे जकात और हज से छूट है।

By JagranEdited By: Updated: Tue, 29 May 2018 09:32 PM (IST)
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जन्नत की चाबी है रोजा

रमजान के महीने में खुदा अपने बंदों की परीक्षा लेते हैं और जो उस परीक्षा में पास हो गया, उसे जन्नत नसीब होती है। इसलिए रमजान के महीने को जन्नत की चाबी भी कहा जाता है। इस्लाम की बुनियाद पांच चीजों पर है, कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज। इन पांच काम को करना एक मुसलमान के लिए फर्ज है। अगर कोई शख्स गरीब है तो उसे जकात और हज से छूट है।

पैगंबर मोहम्मद के दिखाए रास्ते पर चलने से समाज में फैली बुराइयां दूर होती हैं, लेकिन सिर्फ एक महीने तक उस रास्ते पर चलने से कुछ नहीं होगा, अमल करना है तो साल के 12 महीने किया जाए। मेरा मानना है कि अगर कोई शख्स किसी से नाराज है तो वह इस महीने में उसे भी माफ कर दें। माह-ए-रमजान का महीना बड़ी बरकतों और रहमतों वाला है। इस महीने में आसमान से नेकियों की बारिश होती है। अगर कोई शख्स इस महीने में एक नेकी करता है तो उसे 70 नेकियों के बराबर सवाब मिलता है।

इस महीने के आखिर अशरे में कुरान पाक नाजिल हुआ और इसी अशरे में शब कद्र आती है। ऐसे में एक रोजेदार को बाकी दो अशरों के मुकाबले आखिर अशरे में ज्यादा इबादत करनी चाहिए। पैगंबर मोहम्मद ने अपने जीवन में कई बार रमजान के आखिर अशरे का एतकाफ (एकांतवास) किया, जिसे आम तौर पर सुन्नत एतकाफ कहा जाता है। एतकाफ के लिए मर्द मस्जिद में बैठते हैं, जबकि महिलाएं घर के किसी एक कोने में बैठती हैं। चूंकि महिला को घर में खाना पकाने के साथ दूसरे काम भी करने होते हैं तो उन्हें एतकाफ में छूट दी गई है। वे घर का काम निपटाने के बाद वापस एतकाफ में बैठ सकती हैं, जबकि एतकाफ के लिए मस्जिद में बैठे मर्द इबादत के अलावा कुछ और काम नहीं करते।

-मौलाना अब्दुल हमीद नौमानी, महासचिव ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस ए मुशावरत

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