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इस वर्ष के अंत तक एम्स में शुरू हो जाएगी फेफड़े के प्रत्यारोपण की सुविधा

एम्स ने करीब पांच साल पहले फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए लाइसेंस लिया था, लेकिन अब तक एक भी फेफड़ा प्रत्यारोपण नहीं हुआ है।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 30 May 2018 01:15 PM (IST)
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इस वर्ष के अंत तक एम्स में शुरू हो जाएगी फेफड़े के प्रत्यारोपण की सुविधा
नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) सरकारी क्षेत्र का एकमात्र चिकित्सा संस्थान है जो हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी व्यवस्थित तरीके से संचालित कर पा रहा है। केंद्र सरकार व एम्स की सक्रियता से पिछले तीन साल में पहले के मुकाबले हृदय प्रत्यारोपण के मामले बढ़े भी है। इसलिए हार्ट फेल्योर के मरीजों को नई जिंदगी मिल रही है। इस क्रम में एम्स जल्द ही फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू करेगा। इस साल के अंत तक या अगले साल सुविधा शुरू हो जाएगी।

दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर भारत के अस्पतालों में फेफड़ा प्रत्यारोपण की खास सुविधा नहीं है, जबकि दक्षिण भारत में कई शहरों के अस्पतालों में इसकी सुविधा है। तमिलनाडु के चेन्नई में सबसे अधिक फेफड़ा प्रत्यारोपण हुआ है। उत्तर भारत में पिछले साल पीजीआइ चंडीगढ़ ने फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू किया था।

इस अस्पताल में जुलाई 2017 को एक मरीज को फेफड़ा प्रत्यारोपित किया गया। एम्स ने करीब पांच साल पहले फेफड़ा प्रत्यारोपण के लिए लाइसेंस लिया था, लेकिन अब तक एक भी फेफड़ा प्रत्यारोपण नहीं हुआ है। इसका एक बड़ा कारण प्रत्यारोपण की जटिलता है।

अब कहा जा रहा है कि कार्डियक थोरेसिक सर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन व कार्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टर मिलकर जल्द यह सुविधा शुरू करने वाले हैं। कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. संदीप सेठ ने कहा कि हृदय प्रत्यारोपण के मुकाबले फेफड़ा प्रत्यारोपण पर तीन गुना अधिक खर्च आता है। फिर भी यह सुविधा शुरू होने वाली है। इसके लिए दक्षिण भारत के डॉक्टरों की टीम दो बार एम्स का दौरा कर चुकी है।

एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया डॉक्टरों के साथ वहां भ्रमण कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि फेफड़ा प्रत्यारोपण के मरीजों की बेहतर देखभाल के लिए आइसीयू के कर्मचारियों को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। इसके अलावा प्रत्यारोपण शुरू करने के लिए मरीजों की प्रतीक्षा सूची भी तैयार की जा रही है ताकि डोनर मिलने पर मरीज को फेफड़ा प्रत्यारोपण किया जा सके।

तमिलनाडु में आठ साल में 257 मरीजों के फेफड़ों का हो चुका है प्रत्यारोपण

फेफड़ा खराब होने पर प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। तमिलनाडु में वर्ष 2010 से अब तक 257 मरीजों को प्रत्यारोपण हो चुका है। वहां 30 फेफड़ा प्रत्यारोपण इस साल हुए हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में 11 व केरल में अब तक तीन मरीजों को फेफड़ा प्रत्यारोपण हुआ है।

अड़चन भी हैं

फेफड़े में संक्रमण, अस्थमा, टीबी व सीओपीडी जैसी बीमारियों से काफी संख्या में लोग पीड़ित होते हैं। इस स्थिति में प्रत्यारोपण के लिए योग्य ब्रेन डेड डोनर मिलना भी मुश्किल होता है।

क्रयोग से दिल बोले बूम बूम

हौज रानी की रहने वाली सुनीता को दो साल पहले अचानक सांस लेने में परेशानी शुरू हुई। कोई भी काम करने या सीढ़िया चढ़ने पर उन्हें सांस फूलने लगती। धीरे-धीरे शरीर में सूजन शुरू हो गया और चल पाना मुश्किल हो गया। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें हार्ट फेल्योर की बीमारी है। हृदय ने काम करना बहुत कम कर दिया है।

एम्स के डॉक्टरों ने उन्हें दवा के साथ योग के इस्तेमाल से इलाज शुरू किया। इसके बाद उसके हृदय की कार्यक्षमता में दोबारा सुधार हो गया। एम्स के डॉक्टर उनकी तरह अब तक करीब 20 मरीजों को इस विधि से इलाज कर चुके हैं। संस्थान के डॉक्टरों ने इसे ‘क्रयोग’ (कार्डियक रिहैब योग) नाम दिया है।

कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. संदीप सेठ ने कहा कि अभी और मरीजों पर क्रयोग के असर का आकलन करने के बाद सार्वजनिक रूप से उन योग के बारे बताया जाएगा। इस पर एक एप भी विकसित किया जाएगा। फिलहाल प्रशिक्षित योगाचार्य के निगरानी में ही मरीजों को उसका अभ्यास कराया जाता है।

इसमें मेडिटेशन, प्राणायाम व सांस से संबंधित व्यायाम शामिल है। दुनिया भर में करीब 2.6 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। इसमें से एक करोड़ मरीज भारत में हैं। इस बीमारी से पीड़ितों की मृत्युदर भी अधिक है। अध्ययन के मुताबिक बीमारी के पहले साल में ही 23 फीसद मरीजों की मौत हो जाती है।

डॉ. संदीप सेठ ने कहा कि दवा, सहायक उपकरणों के प्रत्यारोपण व हृदय प्रत्यारोपण से इस बीमारी का इलाज संभव है। दिक्कत यह है कि 50 फीसद मरीजों को सही दवाएं लिखी नहीं जाती हैं। शेष 50 फीसद मरीजों को सही दवाएं लिखी भी जाती है तो उनमें काफी ऐसे मरीज होते हैं जिनका शरीर दवाओं को सहन नहीं कर पाता है। 90 फीसद मरीजों का दवाओं से इलाज किया जा सकता है। वहीं सुनीता ने बताया कि जब वह एम्स में इलाज के लिए पहुंची थी तब उसका हृदय 25 फीसद काम करता था। अब 33 फीसद काम करने लगा है।

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