पानी को साफ करने में कारगर है यह तकनीक, हैरान करने वाली हैं पटेरा घास की खासियत
टैंक के ऊपरी हिस्से में पटेरा घास लगी होती है। घास की जड़ें फैली होती हैं। इनसे पानी छनता रहता है।
By Amit MishraEdited By: Updated: Sun, 03 Jun 2018 06:05 PM (IST)
नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्रा]। दूषित पानी को स्वच्छ करने के लिए भारी-भरकम मशीनें लगाई जाती हैं और काफी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है। इस पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जल प्रौद्योगिकी केंद्र ने इसके लिए नई तकनीक ईजाद की है। इसमें मशीनों और ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता है।
कृषि मंत्री ने की तारीफइस तकनीक के तहत पटेरा नामक घास की मदद से दूषित पानी को फिर से इस्तेमाल करने योग्य बनाया जाता है। जब यह घास हरी होती है तब पानी में ऑक्सीजन का तेजी से संचार कर उसमें मौजूद भारी भरकम तत्वों को छान देती है। सूखने के बाद इस घास का इस्तेमाल बोर्ड बनाने में किया जा सकता है। संस्थान ने इस तकनीक को इको फ्रेंडली वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नाम दिया है। इस तकनीक की कई अवसरों पर केंद्रीय कृषि मंत्री ने भी खूब तारीफ की है। अब इस तकनीक में देश के कई मंत्रालय रुचि दर्शा रहे हैं।
बड़े काम की है घास
आमतौर पर दूषित पानी को शोधित करने के दौरान भारी मात्रा में गाद निकलती है। इस तकनीक में गाद नहीं निकलती है। दूषित पानी को ऐसे तीन बड़े टैंकों से गुजारा जाता है। इनमें नीचे छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर रखे होते हैं। टैंक के ऊपरी हिस्से में पटेरा घास लगी होती है। घास की जड़ें काफी फैली होती हैं। इनसे पानी छनता रहता है। ऊपर की पत्तियां वातावरण से मिली गैस अपने अंदर बने छिद्रों से प्रवेश कराती हैं तथा जड़ों से उच्च दबाव के साथ निकालती है। इससे पानी में ऑक्सीजन का संचार तेज गति से होता है।
काफी मात्रा में मिले ऑक्सीजन व जड़ों से छनने के बाद दूषित पानी में मौजूद लोहा, शीशा, निकिल व जिंक जैसे हानिकारक व भारी तत्व नीचे जमा हो जाते हैं। इन तत्वों को पटेरा घास अपने पोषण में इस्तेमाल कर लेती है। इससे पानी धीरे-धीरे साफ होने लगता है। यह प्रक्रिया तीनों टैंकों में होती है। तीनों टैंकों से गुजरने के बाद निकला साफ पानी एक बड़े टैंक में एकत्रित होता है, जहां से इसे पाइप नेटवर्क के माध्यम से संस्थान में भेजा जाता है।खास हैं घास की खूबियां
पटेरा घास जब सूख जाती है तो इसकी कटाई कर ली जाती है। इस घास को सुखाने के बाद इसका इस्तेमाल पार्टिकल बोर्ड (प्लाईबोर्ड की तरह) बनाने में किया जाता है। यह बोर्ड जलरोधी व दीमकरोधी होती है।
खुद पूसा संस्थान कर रहा इस्तेमालपूसा संस्थान की ओर से कहा गया है कि दूषित पानी को स्वच्छ बनाने की तकनीक देश में जल प्रदूषण की समस्या के समाधान में कारगर सिद्ध हो सकती है। पूसा संस्थान खुद इस तकनीक से रोजाना 2.2 मिलियन लीटर दूषित पानी को स्वच्छ बना रहा है। पूसा के बाद उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय धाम, फराह में पूसा की तकनीक पर ही आधारित जल उपचार केंद्र का निर्माण हो रहा है। यहां रोजाना 75 हजार लीटर दूषित पानी को शोधित कर फिर से इस्तेमाल योग्य बनाया जाएगा।
एक लीटर गंदा पानी आठ लीटर पानी को करता है दूषितएक लीटर गंदा पानी आठ लीटर स्वच्छ पानी को दूषित कर देता है। इस लिहाज से यदि देखा जाए तो अगर हम एक लीटर पानी को स्वच्छ करते हैं तो नौ लीटर पानी को दूषित होने से बचाते हैं।
महज एक फीसद बिजली का होता है इस्तेमालदूषित पानी के शोधन से जुड़ी परंपरागत विधि की तुलना में महज एक फीसद बिजली की खपत होती है। इस तकनीक में रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल भी नहीं किया जाता है। इस संयंत्र के निर्माण की लागत भी परंपरागत संयंत्र की तुलना में आधे से कम होती है।
कई मंत्रालयों व विभागों ने दिखाई दिलचस्पीसस्ता, सरल व पर्यावरण हितैषी तकनीक होने के कारण इसे अपनाने में जल संसाधन मंत्रालय व शहरी विकास मंत्रालय के अलावा कई संस्थानों ने पूसा संस्थान से संपर्क किया है। संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि इस तकनीक का ऐसे क्षेत्रों में इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद रहेगा, जो सूखे की समस्या से ग्रस्त हैं। जहां पानी की बचत का एकमात्र सहारा सतही पानी (सरफेस वाटर) का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल है। ऐसे इलाकों में हम दूषित सतही पानी को शोधित कर उसका फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री कृषि योजना के तहत सिंचाई के लिए भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। नदियों में सीधे दूषित पानी के प्रवाह को रोकने के लिए भी इस तकनीक का कारगर इस्तेमाल हो सकता है।
इको फ्रेंडली है यह तकनीक इस तकनीक में अब तक कई मंत्रालयों की ओर से दिलचस्पी दिखाई गई है। पूसा में इस तकनीक पर आधारित संयंत्र कार्य कर रहा है। उत्तर प्रदेश के मथुरा में पं.दीनदयाल धाम फराह में इस तकनीक पर आधारित संयंत्र का निर्माण पूरा होगा। अभी पूसा में रोजाना 2.2 मिलियन लीटर गंदे पानी को कृषि कार्यो में इस्तेमाल के लायक बना रहे हैं। इस तकनीक की सबसे बड़ी बात इसका इको फ्रेंडली होना है।डॉ.रविंद्र कौर, जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यह भी पढ़ें: चिड़ियाघर में झोपड़ियां दिलाएंगी पर्यटकों को गर्मी से राहत, गांव में होने का होगा अहसास
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