Move to Jagran APP

प्राचीन शिक्षा पद्धति को जिंदा रखे हुए है आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय

इस गुरुकुल में छठी से लेकर परास्नातक तक की पढ़ाई होती है। जिसमें छात्राओं को अध्यात्मवाद की ओर प्रेरित किया जाता है। जिसमें प्राचीन महर्षियों के ब्रह्माचर्य जीवन का ज्ञान कराना, प्राचीन नैतिक आधार पर शिक्षापद्धति, गुरुकुल में ही रहते हुए विद्याध्ययन करना, गहन विषय जैसे वेद, उपनिषद्, दर्शन, व्याकरण आदि के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषय जिसमें विज्ञान, अंग्रेजी आदि भी पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही शारीरिक रुप से स्वास्थ्य का विकास करना, व्यायाम, आसन, प्राणायाम, तलवार मुद्गर व आधुनिक व्यायाम आदि का अभ्यास कराना। इसके साथ ही यहां विज्ञान व कंप्यूटर प्रयोगशाला भी उपलब्ध हैं।

By JagranEdited By: Updated: Sat, 30 Jun 2018 10:47 PM (IST)
Hero Image
प्राचीन शिक्षा पद्धति को जिंदा रखे हुए है आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय

संजय बर्मन, बाहरी दिल्ली : आधुनिक शिक्षा पद्धति रोजगार दिलाने में उपयोगी है लेकिन प्राचीन शिक्षा पद्धति जीवनोपयोगी है। इसलिए आर्ष कन्या गुरुकुल महाविद्यालय में दोनों ही शिक्षा पद्धतियों का समन्वय मिलता है। हरियाणा सीमा से सटे नरेला स्थित यह महाविद्यालय युवतियों को भारतीय संस्कृति से भी परिचित कराता है। नैतिक शिक्षा के माध्यम से छात्राओं को संस्कारयुक्त बनाने से लेकर विज्ञान के माध्यम से ज्ञानयुक्त बनाने में यह महाविद्यालय लगा हुआ है।

बड़ी बात यह है कि गुरुकुल की पढ़ाई भले ही वर्तमान पद्धति के अनुसार हो लेकिन, इसकी दिनचर्या प्राचीन काल की व्यवस्था से ही संचालित होती है। यहां तड़के साढ़े तीन बजे ही छात्राओं को उठा दिया जाता है। उसके बाद प्रार्थना होती है। फिर शौच से निवृत होकर व्यायाम और फिर प्रात: हवन किया जाता है। नाश्ते के बाद आठ बजे से दो बजे तक विद्यालय चलता है। फिर दोपहर का भोजन और उसके बाद स्वाध्याय। शाम को व्यायाम, स्नान के बाद दोबारा से हवन किया जाता है। उसके बाद भोजन, फिर स्वाध्याय, प्रार्थना के बाद छात्राएं गुरुकुल के बड़े हॉल में सोती हैं। उनके साथ उनकी सुरक्षा में गुरुकुल की शिक्षिकाएं भी वहीं सोती हैं। आर्ष कन्या गुरुकुल छठवीं से आठवीं तक हरियाणा स्थित झकझर गुरुकुल जबकि महाविद्यालय की पढ़ाई के लिए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से संबद्ध है। यह महाविद्यालय अपने संस्थापक स्वामी ओमानंद सरस्वती के आदर्शो पर संचालित है।

-----

योग की भी शिक्षा

अभी योग को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर जोर दिया जा रहा है लेकिन छठवीं से लेकर परास्नातक तक की शिक्षा देने वाले गुरुकुल की छात्राओं की यही दिनचर्या है। यहां अध्यात्म के साथ योग की महिमा देखते ही बनती है। पाठ्यक्रम में प्राचीन महर्षियों के जीवन के बारे में बताना, गुरुकुल में ही रहते हुए विद्याध्ययन करना, आधुनिक विषयों के साथ ही वेद, उपनिषद्, दर्शन, व्याकरण आदि के अध्ययन करना, शारीरिक स्वास्थ्य का विकास करना आदि शामिल है। यहां व्यायाम, आसन, प्राणायाम, तलवार मुद्गर के साथ ही आधुनिक व्यायामशाला, विज्ञान व कंप्यूटर प्रयोगशाला भी है।

------------

भगत सिंह की शहादत से पहुंची थी ठेस

महाविद्यालय के संस्थापक स्वामी ओमानंद सरस्वती का जन्म 22 मार्च 1911 को हुआ था जबकि निधन 23 मार्च 2003 को हुआ। स्वामी ओमानंद को विद्यार्थी काल में ही देश में घट रही घटनाओं ने बहुत प्रभावित किया। 1931 में भगत ¨सह को फांसी पर चढ़ाए जाने से नौजवान भगवान देव (सन्यासी होने से पहले का नाम) बहुत व्यथित हुए। उसके बाद ही वह अपने गांव के बाग में ब्रह्माचारी बनकर रहने लगे और समाज सेवा में खुद को अर्पित कर दिए। सामाजिक कार्यो के कारण ख्याति मिलने के बाद हरियाणा के झज्जर स्थित गुरुकुल को चलाने के लिए भगवान देव से आग्रह किया गया। 1942 में दीपावली के दिन उन्होंने गुरुकुल को संभाला था। इन्होंने 1947 में प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के साथ यहां गोशाला की नींव रखी थी। भगवान देव नारी को समाज में पुरुष के बराबर अधिकार देने के पक्ष में थे। इसके लिए उन्होंने साल 1954 में कन्या गुरुकुल की स्थापना की। इसके साथ ही वे समाज के सभी वर्ग के अधिकारों के लिए तत्पर रहे। 1955 में अछूतों के प्रति भेदभाव के खिलाफ लड़े और उन्हें कुएं से पानी भरने व शिक्षा का अधिकार दिलाया। 1970 में वे संयासी हो गए। उन्होंने गोरक्षा आंदोलन समेत कई सामाजिक कार्यो में अपनी भागीदारी दी।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।