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कई बार स्क्रिप्ट से आगे निकल जाते हैं किरदार

संजय मिश्रा, दिव्या दत्ता, आदिल हुसैन ने बाधा समा यशा माथुर, नई दिल्ली कलाकार स्क्रिप्ट पढ़कर

By JagranEdited By: Updated: Tue, 03 Jul 2018 09:27 PM (IST)
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कई बार स्क्रिप्ट से आगे निकल जाते हैं किरदार

संजय मिश्रा, दिव्या दत्ता, आदिल हुसैन ने बाधा समा

यशा माथुर, नई दिल्ली

कलाकार स्क्रिप्ट पढ़कर फिल्म साइन करते हैं या नहीं? सेट पर अपना दिमाग लगाते हैं या नहीं? एक अदाकार कैसे किरदार को फील करता है, कैसे वह कामयाब है? कई बार स्क्रिप्ट से आगे निकल जाते हैं, उनके निभाए किरदार। अपनी अदाकारी का डंका बजाने वाले ये कलाकार स्क्रिप्ट के सामने अपना दिमाग लगाते हैं? इन प्रश्नों पर जागरण फिल्म फेस्टिवल के पाचवें और अंतिम दिन बेहतरीन चर्चा हुई, जिसमें 'आंखिन देखी', 'टोटल धमाल' के एक्टर संजय मिश्रा, इरादा फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली अभिनेत्री दिव्या दत्ता और 'लाइफ ऑफ पाई' व 'मुक्ति भवन' जैसी फिल्में करने वाले कलाकार आदिल हुसैन ने भाग लिया। सत्र का संचालन किया दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर (एंटरटेनमेंट) अनुज अलंकार ने।

बालीवुड में अलग पहचान बनाने वालीं दिव्या दत्ता ने कहा कि वह नौ साल से दैनिक जागरण से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कहा कि 'भाग मिल्खा भाग' में मैं बहन का रोल नहीं करना चाहती थी, लेकिन रोल चैलेंजिंग था, स्क्रिप्ट में मेरे डॉयलॉग बहुत कम थे और इसे बेहतर करने की चुनौती मेरे सामने थी। मैं जींस और शर्ट पहन कर सेट पर गई थी, लेकिन जब मैंने सलवार-कुर्ता पहना, सिर पर दुपट्टा लिया और चेहरे पर बरतन धोने की राख लगाई तो मेरी बॉडी लैंग्वेज बदल गई। मैं इसरी कौर बन गई। तब मैंने जाना कि कॉस्ट्यूम का कितना महत्व है। मेरे लिए मेरी भूमिका मायने रखती है। मेरे सामने कैसे कलाकार हैं, यह ध्यान रखती हूं। आपके साथ वाले उसी तरंग में हों तो बड़ा मजा आता है।

सत्र को मजेदार बनाने वाले संजय मिश्रा कहते हैं, 'कोई एक्टर विदाउट कैरेक्टर कैसे हो सकता है। कैरेक्टर, आर्टिस्ट और हास्य कलाकार हमारे बनाए शब्द हैं। हमने अपनी डिक्शनरी बना ली है। दोनों में काम करना एक जैसा है। हम अपना काम करते हैं। हम फ्रंटफुट के खिलाड़ी हैं, 'कड़वी हवा' और 'टोटल धमाल' जैसी फिल्में टेस्ट मैच और टी-20 जैसी हैं। मैं स्क्रिप्ट नहीं पढ़ता। मैं वह छुरी हूं, जिससे आप जैसे चाहें, ऑपरेशन कर सकते हैं।

आदिल हुसैन कहते हैं कि स्क्रिप्ट मिलते ही कई बार उसे पढ़ता हूं। मैं सोचता नहीं कि कि क्या करूंगा, कैसे करूंगा? सीन को होने देने की कोशिश करता हूं। फिल्म के सेट पर मैं डायरेक्टर को ही सुप्रीम मानता हूं।

किरदार को समझने की बात करते हुए दिव्या कहती हैं कि हम किरदार को फील कर लेते हैं और छोड़ देते हैं। मुझे तैयारी करना नहीं आता, लेकिन जब नितिन कक्कड़ ने 'रामसिंह चार्ली' के सेट पर मुझसे कहा कि बिल्कुल मेकअप नहीं करना है। चेहरे पर कोई भाव नहीं चाहिए तो मैं बहुत नर्वस हुई, लेकिन मैंने काम किया। संजय मिश्रा कहते हैं कि जिंदगी ज्यादा बड़ी वर्कशॉप है। मैं मानता हूं कि चीजों को वक्त पर छोड़ दो। हा, अपनी तैयारी रखें।

कामयाबी की राह बताए हुए दिव्या ने कहा कि सबसे पहले यह जानें कि आप में कुछ बात है कि नहीं। जब अहिंदी भाषी आदिल से पूछा गया कि वे कैसे तमिल फिल्म में काम कर लेते हैं तो आदिल ने कहा कि शब्द का अर्थ शब्द के स्वर में है। हर भाषा का अपना स्वर है। मैं जब तमिल शब्द बोलता हूं तो उसका अर्थ पता कर लेता हूं ओर उसके स्वर को पकड़ लेता हूं।

कामयाबी के रहस्यों की बात पर संजय मिश्रा ने कहा कि पूरी जिंदगी की कामयाबी होनी चाहिए, सिर्फ करियर की नहीं। जरूरी यह है कि जब आप दुनिया से विदा हों तो लगे कि आपने कुछ किया है। आदिल बताते हैं कि मेरे लिए कामयाबी का मतलब है कि मुझे बिस्तर पर सोते हुए ही दस मिनट में नींद आ जाए।

----------- चालीस साल में मिला रोमास का मौका : दिव्या दत्ता

दिव्या दत्ता कहती हैं कि मुझे याद आता है जब मुझे यश चोपड़ा ने बुलाया। उनके बुलावे पर मेरे मन में सिफॉन साड़ी और शाह रुख खान आने लगे, लेकिन वहा पहुंचकर पता चला कि मुझे तो फिल्म में हीरोइन की सहेली का रोल दिया जा रहा है। मैं बहुत बुझे मन से वापस घर आ गई और मम्मी से कहा कि मुझे यह रोल नहीं करना है। मैं सोच रही थी कि एक बार सहेली का रोल कर लिया तो फिर सभी लोग मुझे सहेली का रोल ही देंगे। मम्मी ने फिर मुझे समझाया कि इंडस्ट्री में तुम्हारा कोई गॉडफादर नहीं है, तुम्हें कोई जानता नहीं है, तुम्हारा काम किसी ने देखा नहीं है तो फिर मेन रोल कैसे मिलेगा। मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी, लेकिन मम्मी के बहुत समझाने पर मैंने वह रोल किया। शूटिंग के दौरान भी मैं बेमन से काम करती रही क्योंकि मेरे मन में चल रहा था कि यह रोल मुझे नहीं करना था। जब मैं प्रीमियर पर पहुंची तो सभी ने कहा कि यह लड़की कौन है, कोई नई आई है क्या आदि आदि। मजे की बात यह है कि मैं तब तक दस फिल्में कर चुकी थी। वीर-जारा में मेरे काम की सराहना हुई, लेकिन रोल उसी तरह के ऑफर होने लगे। फिर दिल्ली-6 में रोल मिला और अब मैं जब चालीस साल की हो गई हूं तो फिर फिल्मों में रोमास करने का मौका मिल रहा है, मुख्य रोल मिल रहा है। इस इंडस्ट्री में कोई डेडलाइन तय कर के मत आओ, टिकने के लिए, अच्छा काम करने के लिए आओ।

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