अफगानिस्तान के पूर्वी शहर जलालाबाद में ¨हदू- सिख समुदाय पर हुए आत्मघाती हमले में मारे गए लोगों के परिजनों की आंखों में आंसू की धारा तब छलककर बाहर आने लगी जब न्यू महावीर नगर स्थित गुरुद्वारा में मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभा रखी गई थी। हमले में मारे गए सभी लोगों की यहां बकायदा तस्वीर लगाई गई, जिन पर पुष्प अर्पित किए। यहां श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली के विभिन्न भागों में रह रहे अफगानी सिख शरणार्थी सपिरवार जुटे। स्थानीय लोग भी काफी संख्या में आए। सभी ने इस घटना को आतंकी कृत्य करार दिया।
आत्मघाती हमले में अपने सगे भाई को खोने वाले राजू कुमार बताते हैं कि वे पिछले छह वर्षों से कृष्णा पार्क में रह रहे हैं। यहां दो भाईयों का परिवार और मां साथ में रहते हैं। तीन भाईयों में एक भाई विक्की कुमार अभी अफगानिस्तान में ही थे।
By JagranEdited By: Updated: Wed, 04 Jul 2018 07:43 PM (IST)
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली :
अफगानिस्तान के पूर्वी शहर जलालाबाद में ¨हदू- सिख समुदाय पर हुए आत्मघाती हमले में मारे गए लोगों के परिजनों की आंखों में आंसू की धारा तब छलक कर बाहर आने लगी जब न्यू महावीर नगर स्थित गुरुद्वारा में मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना सभा रखी गई थी। हमले में मारे गए सभी लोगों की यहां बाकायदा तस्वीर लगाई गई, जिन पर पुष्प अर्पित किए गए। यहां श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली के विभिन्न भागों में रह रहे अफगानी सिख शरणार्थी सपरिवार जुटे। स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में आए। सभी ने इस घटना को आतंकी कृत्य करार दिया।
आत्मघाती हमले में अपने सगे भाई को खोने वाले राजू कुमार बताते हैं कि वे छह वर्ष से कृष्णा पार्क में रह रहे हैं। यहां दो भाइयों का परिवार रहता है। साथ में मां भी रहती हैं। तीन भाइयों में एक विक्की कुमार अभी अफगानिस्तान में ही थे। उन्हें अगले महीने बेटी की सगाई के सिलसिले में यहां आना था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर हुआ। बम धमाके में उनकी मौत हो गई। राजू बताते हैं कि हमले के बाद उनकी भाभी से उनका संपर्क नहीं हुआ है। उन्हें पता चला है कि वे अभी किसी से बात करने की स्थिति में नहीं हैं। बच्चों का भी बुरा हाल है। यहां मां का बुरा हाल है। अब हमारी प्राथमिकता यह है कि किसी तरह भाभी और बच्चों को यहां लाया जाए, ताकि वे ¨हदुस्तान में सुरक्षित माहौल में सम्मान के साथ जी सकें। हमले में मारे गए लोगों में तरनजीत ¨सह भी शामिल हैं। तरनजीत अपने परिवार में इकलौते कमाने वाले थे। वे काम के सिलसिले में करीब चार माह पहले जलालाबाद गए थे। परिवार में एक बीमार भाई, भाभी व दो बहनें हैं। परिजन बताते हैं कि तरनजीत कामकाज के सिलसिले में कुछ माह के अंतराल में आते जाते रहते थे। सभी ने सोचा था कि इस बार आने पर वे अफगानिस्तान नहीं जाएंगे। तरनजीत की तस्वीर को हाथ में लिए परिजन फूट-फूट कर रोने लगते हैं। यह दृश्य देखकर आसपास मौजूद लोगों की भी आंखें भर आती हैं। अपने चाचा राजू ¨सह की तस्वीर हाथ में लिए गुरचरन ¨सह बताते हैं कि जलालाबाद में हादसे की खबर सुनकर हम सन्न रह गए। चाचा से फोन पर कुछ ही दिन पहले बात हुई थी। उन्होंने कहा कि अब ¨हदुस्तान ही हमारा घर है, बस कुछ ही दिनों की बात है, मैं हमेशा के लिए यहां आ रहा हूं। गुरचरन बताते हैं कि अब वह दिन कभी नहीं आएगा। चंद सेकेंड की खामोशी को खुद ही तोड़ते हुए गुरचरन कहते हैं कि दहशतगर्दो का भला कभी नहीं होगा। छलकी पीड़ा
कुलवंत कौर पति व बच्चों के साथ 1993 से ही भारत में रह रही हैं। अपनी पीड़ा को बयां करती हुई बताती हैं कि अफगानिस्तान में सिख व ¨हदुओं के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। दहशतगर्द खुलेआम कहते हैं कि तुम्हारा यहां कोई काम नहीं है। तुम्हारा घर अफगानिस्तान नहीं ¨हदुस्तान है। वहां जाओ। हालात वक्त के साथ बद से बदतर हो गए। अंत में लोगों ने भारत में शरण ली। अभी भी कई जानने वाले अफगानिस्तान में रहते हैं। फोन से जब भी उनसे बात होती है तो वे रोते हुए वहां के हालात बयां करते हैं। हरेंद्र कौर बताती हैं कि यहां कई परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने कई सदस्यों को आतंकवाद के कारण खोया है।
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