दिल्ली का विकास हो चुका है ठप
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर टकराव के चलत
By JagranEdited By: Updated: Wed, 04 Jul 2018 09:56 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर टकराव के चलते विकास कार्य ठप हो चुका है। साढ़े तीन साल में तीस से भी अधिक बड़े मामलों पर सरकार और राजनिवास के बीच विवाद हो चुका है। इस टकराव में कई वरिष्ठ नौकरशाहों ने दिल्ली से बाहर का रुख किया है। यह विवाद दिल्ली के विकास को सालों पीछे ले गया है। सरकार की कई योजनाएं कागजों पर भी उतर नहीं पाई हैं।
दिल्ली सरकार में अधिकारों की लड़ाई अधिकारियों को लेकर ही शुरू हुई थी। 2015 में सत्ता में आने पर आम आदमी पार्टी की सरकार ने पूर्ण राज्य की तरह काम करना शुरू किया। अधिकारियों ने नियम व कानून का हवाला देकर जब सरकार के कहे अनुसार कार्य नहीं किए तो वहीं से विवाद शुरू हुआ। सबसे पहले वरिष्ठ आइएएस अधिकारी शकुंतला गैमलिन का मामला सामने आया। वर्ष 2015 में मुख्य सचिव केके शर्मा के अवकाश पर जाने पर तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने सरकार की इच्छा के विपरीत शकुंतला गैमलिन को कार्यवाहक मुख्य सचिव नियुक्त किया। इससे नाराज सरकार ने मामले में आदेश जारी करने वाले सेवाएं विभाग के सचिव अनिंदो मजूमदार व विशेष सचिव आशुतोष का तबादला कर दिया। मजूमदार के कार्यालय पर ताला तक लगवा दिया गया था। आदेश को उपराज्यपाल ने निरस्त कर दिया था। यहीं से उपराज्यपाल और सरकार के बीच विवाद खुलकर सामने आया। सरकार के साथ पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग का विवाद बढ़ता गया। इसी बीच सरकार का कई नौकरशाहों से खुलकर टकराव सामने आया। उन दिनों अश्वनी कुमार लोकनिर्माण विभाग के प्रमुख सचिव थे। सरकार उन्हें निशाने पर ले रही थी। उन्होंने उपराज्यपाल से खुद को हटाने का आग्रह किया, जिसके बाद उनका तबादला हो गया। इसी तरह वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्य सचिव एमएम कुट्टंी की भी सरकार के साथ तकरार थी। वह पहले ऐसे अधिकारी थे, जिनका 2015 में सत्ता में आने पर दिल्ली सरकार ने सबसे पहले तबादला कर दिया था, वह यह उस समय दिल्ली सरकार में प्रधान सचिव थे। केशव चंद्रा, जल बोर्ड के सीईओ थे, तत्कालीन जल मंत्री राजेंद्र पाल गौतम से उनका विवाद बढ़ गया था। आग्रह करने पर उनका भी तबादला केंद्र सरकार में कर दिया गया। दिल्ली सरकार में वैट आयुक्त रहे एसएस यादव भी विवाद बढ़ने की वजह से स्टडी लीव पर चले गए थे। बाद में उनका तबादला हो गया। जब जंग हुई तेज विवाद के बीच दिल्ली सरकार हाई कोर्ट चली गई थी। 4 अगस्त 2016 में हाई कोर्ट का आदेश उपराज्यपाल के समर्थन में आया और उसके बाद दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच जंग और तेज हुई। उपराज्यपाल ने उन सभी फाइलों को दिल्ली सरकार से मंगवा लिया, जिन पर उनसे अनुमति नहीं ली गई थी। उपराज्यपाल ने शुंगलू कमेटी गठित की। कमेटी ने फाइलों की जांच की, जिसमें कई खामियां थीं। उन्होंने कई फाइलों को निरस्त किया तथा कुछ की सीबीआइ जाच की सिफारिश भी की। सरकार के बीच विवाद चल ही रहा था कि अचानक दिसंबर 2016 में नजीब जंग ने उपराज्यपाल के पद से इस्तीफा दे दिया। नजीब जंग के बाद अनिल बैजल उपराज्यपाल बने और उन्होंने जनवरी 2017 से कामकाज देखना शुरू किया। माना जा रहा था कि दिल्ली के हालात कुछ सुधरेंगे। मगर हालात और भी खराब हो गए। इस दौरान बड़ी घटना उस समय सामने आई जब 19 फरवरी 2018 को मुख्यमंत्री निवास पर बैठक में भाग लेने गए मुख्यसचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट की गई। इसके बाद से चार माह तक दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने मंत्रियों की बैठकों की बहिष्कार किया। पिछले माह नौ दिन तक उपराज्यपाल निवास में केजरीवाल द्वारा अपने मंत्रियों के साथ धरना देने के बाद उपराज्यपाल के निर्देश पर अधिकारियों ने मंत्रियों की बैठकों में जाना शुरू कर दिया है, लेकिन हालात अभी सामान्य नहीं हैं। आप सरकार के साढ़े तीन साल पूरे हो चुके हैं। अब डेढ़ साल बचे हैं। सुधार की गुंजाइश कम नजर आ रही है। महत्वपूर्ण योजनाओं में हुई देरी -लैंड पूलिंग पॉलिसी की फाइल सरकार के पास लगभग दो वर्षो तक लंबित रही
-दिल्ली को जाम से मुक्त करने के लिए सरकार कोई कदम नहीं उठा सकी है
-सार्वजनिक परिवहन प्रणाली बदहाल होती चली गई
-मेट्रो के काम में देरी -न कॉलेज बने और न पर्याप्त संख्या में स्कूल -नहीं बने नए अस्पताल, अस्पतालों में कम हुए बेड - लास्ट माइल कनेक्टिविटी करने पर सरकार नहीं उठा पाई कोई ठोस कदम। -बसों की संख्या बढ़ाने में विफल रही सरकार
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