सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दी प्राथमिकता पर प्रशासनिक मुखिया एलजी ही
कोर्ट ने कहा कि एलजी मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करेंगे और मतांतर होने पर मामला राष्ट्रपति को भेज सकते हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से फैसला लेने का अधिकार नहीं है।
By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 05 Jul 2018 08:20 AM (IST)
नई दिल्ली (माला दीक्षित)। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के अधिकारों की व्याख्या करते हुए साफ कर दिया है कि उपराज्यपाल दिल्ली के मुखिया जरूर हैं, लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं। लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार को अहमियत देते हुए कोर्ट ने कहा है कि मंत्रिपरिषद को फैसले लेने का अधिकार है। उसमें दखल नहीं होना चाहिए। उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करेंगे और मतांतर होने पर मामला राष्ट्रपति को भेज सकते हैं, लेकिन उन्हें स्वतंत्र रूप से फैसला लेने का अधिकार नहीं है।
उपराज्यपाल को मंत्रिमंडल के हर फैसले की सूचना दी जाएगी, लेकिन उसमें उनकी सहमति जरूरी नहीं है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार व उपराज्यपाल को संविधान का मंतव्य समझाते हुए मिल-जुलकर समन्वय से काम करने की नसीहत दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि संविधान में निरंकुशता व अराजकता का कोई स्थान नहीं है। जाहिर है कि इस अराजकता की अलग-अलग व्याख्या भी शुरू हो गई है।मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने दिल्ली को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 239एए की व्याख्या करते हुए यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने अभी सिर्फ दिल्ली की संवैधानिक स्थिति पर व्यवस्था दी है। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ लंबित दिल्ली सरकार की अपीलों की मेरिट पर फैसला नहीं दिया है।
दिल्ली सरकार की लंबित कुल छह अपीलों पर अभी नियमित पीठ में सुनवाई होगी और उन पर फैसला आना बाकी है। पांच जजों ने कुल तीन फैसले सुनाए। मुख्य न्यायाधीश ने स्वयं, जस्टिस एके सीकरी व जस्टिस एएम खानविल्कर की ओर से फैसला दिया, जबकि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस अशोक भूषण ने अलग से फैसले दिये। सभी फैसले सहमति के हैं।ट्रांसफर-पोस्टिंग सर्विस मैटर अभी लंबित
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वैसे तो दिल्ली सरकार को कई मामलों में निर्णय लेने की छूट मिल गई है, लेकिन ट्रांसफर-पोस्टिंग आदि से जुड़े सर्विस मैटर अभी लटके रहेंगे, क्योंकि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस व भूमि के अलावा सर्विस मामलों का क्षेत्रधिकार भी एलजी को देने वाली केंद्र सरकार की 21 मई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने की अपील अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती करने वाली केंद्र की 23 जुलाई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील भी लंबित है। हाई कोर्ट ने दोनों ही मामलों में दिल्ली सरकार की याचिकाएं खारिज कर दीं थी।
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