छोटी बहनों का मां की तरह ख्याल रखती थी मानसी, अपने हाथ से खिलाती थी खाना
छोटी बहनों की देखरेख में मानसी ने कभी कोई कमी नहीं आने दी। अगर उसके पास कचरी का पैकेट होता तो वह अपनी दोनों बहनों को जरूर खिलाती थी।
By Amit MishraEdited By: Updated: Sat, 28 Jul 2018 04:00 AM (IST)
नई दिल्ली [शुजाउद्दीन]। भूख से जान गंवाने वाली तीन बच्चियों में सबसे बड़ी बहन मानसी अपनी मां वीणा देवी की पीड़ा को बखूबी समझती थी। तभी वह आठ वर्ष की उम्र में एक मां की तरह छोटी बहनों पारुल और शिखा का ख्याल रख रही थी। शिखा तो इतनी छोटी थी कि मानसी ही उसे अपने हाथ से खाना खिलाती थी। अगर दोनों बहनें कुछ गलती करती थीं तो मानसी ही उन्हें डांटती थी।
मानसी काफी समझदार थी
मां वीणा मानसिक रूप से बीमार है तो पिता मंगल को नशे की लत के आगे बच्चे दिखाई नहीं देते थे। ऐसे में मानसी ही अपनी दोनों छोटी बहनों को संभाल रही थी। साकेत ब्लॉक में जहां मंगल का परिवार रहता था, उस इलाके में 10 वर्ष से किराये पर रह रही किरण देवी ने बताया कि मानसी काफी समझदार थी। वह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझती थी। छोटी बहनों की देखरेख में मानसी ने कभी कोई कमी नहीं आने दी। अगर उसके पास कचरी का पैकेट होता तो वह अपनी दोनों बहनों को जरूर खिलाती थी। अगर कोई पड़ोसी उसे कोई काम करने को कहता था तो वह कभी इन्कार नहीं करती थी। अपनी मां की घर के काम में पूरी मदद करती थी। मेरी दोस्त चली गई, अब मैं किसके साथ स्कूल जाऊंगी
मानसी पड़ोस में रहने वाली हिना के साथ ही स्कूल आती-जाती थी। मंडावली फाजलपुर के निगम स्कूल नंबर-1 में मानसी तीसरी कक्षा में पढ़ती थी, जबकि हिना पांचवीं कक्षा में पढ़ाई करती है। हिना ने बताया कि स्कूल में वह हमेशा उनके साथ ही खेलती थी। स्कूल घर से थोड़ी दूरी पर है तो वे दोनों साथ जाती थीं। स्कूल से आने के बाद वे एक साथ पढ़ाई करती थीं। अब जब मानसी ही इस दुनिया में नहीं रही तो उसकी सबसे अच्छी दोस्त हिना अकेली हो गई है। वह अपनी मां से बस यही कह रही है कि अब मैं किसके साथ स्कूल जाऊंगी।
मां वीणा मानसिक रूप से बीमार है तो पिता मंगल को नशे की लत के आगे बच्चे दिखाई नहीं देते थे। ऐसे में मानसी ही अपनी दोनों छोटी बहनों को संभाल रही थी। साकेत ब्लॉक में जहां मंगल का परिवार रहता था, उस इलाके में 10 वर्ष से किराये पर रह रही किरण देवी ने बताया कि मानसी काफी समझदार थी। वह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझती थी। छोटी बहनों की देखरेख में मानसी ने कभी कोई कमी नहीं आने दी। अगर उसके पास कचरी का पैकेट होता तो वह अपनी दोनों बहनों को जरूर खिलाती थी। अगर कोई पड़ोसी उसे कोई काम करने को कहता था तो वह कभी इन्कार नहीं करती थी। अपनी मां की घर के काम में पूरी मदद करती थी। मेरी दोस्त चली गई, अब मैं किसके साथ स्कूल जाऊंगी
मानसी पड़ोस में रहने वाली हिना के साथ ही स्कूल आती-जाती थी। मंडावली फाजलपुर के निगम स्कूल नंबर-1 में मानसी तीसरी कक्षा में पढ़ती थी, जबकि हिना पांचवीं कक्षा में पढ़ाई करती है। हिना ने बताया कि स्कूल में वह हमेशा उनके साथ ही खेलती थी। स्कूल घर से थोड़ी दूरी पर है तो वे दोनों साथ जाती थीं। स्कूल से आने के बाद वे एक साथ पढ़ाई करती थीं। अब जब मानसी ही इस दुनिया में नहीं रही तो उसकी सबसे अच्छी दोस्त हिना अकेली हो गई है। वह अपनी मां से बस यही कह रही है कि अब मैं किसके साथ स्कूल जाऊंगी।
मानसी के जन्म के बाद वीणा हो गई थी बीमार
मंगल के दोस्त नारायण यादव ने बताया कि मानसी के जन्म के बाद से ही उसकी मां वीणा की तबीयत काफी खराब रहने लगी। उसी दौरान वीणा की मानसिक स्थिति कमजोर होने लग गई थी। मंगल ने सरकारी अस्पताल में उसका इलाज भी करवाया, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। वीणा मानसिक रूप से कमजोर जरूर थी, लेकिन वह बच्चों का ख्याल रखती थी।
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