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पांच वर्षो में एक गोशाला में ही मर गई 18 हजार गायें

आंकड़ा - दिल्ली में संचालित होती हैं पांच गोशालाएं - औसतन दस हजार से ज्यादा गायों के हर साल

By JagranEdited By: Updated: Fri, 27 Jul 2018 09:58 PM (IST)
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पांच वर्षो में एक गोशाला में ही मर गई 18 हजार गायें
निहाल सिंह, नई दिल्ली

दक्षिणी दिल्ली के सुशील मुनी गोशाला में करीब 36 गायों की मौत का मामला सामने आने के बाद इस संबंध में चौकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। निगम के ही आंकड़े के मुताबिक, पिछले पांच वर्षो में एक ही गोशाला में 18 हजार गायों की मौत हो गई हुई है।

दिल्ली में पांच गोशालाएं संचालित होती हैं, जिनमें लावारिस गायों को पकड़कर रखा जाता है। इन गोशालाओं में गायों के देखभाल में बरती जा रही लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिर्फ एक गोशाला में ही हर वर्ष दो हजार गायें दम तोड़ रही हैं। जानकारों के मुताबिक, दिल्ली में हर साल दस हजार से ज्यादा गायों की मौत हो रही है। वर्ष 2012 से पहले एकीकृत निगम में गोशालाओं में गाय की मौत के आंकड़े भी इसकी पु्ष्टि करते हैं। इस आंकड़े के अनुसार, सुल्तानपुर डबास स्थित श्रीकृष्ण गोशाला में वर्ष 2012-13 में 1659 गायों की मौत हुई थी जबकि वर्ष 2013-14 में 2146, वर्ष 2014-15 में 2954, वर्ष 2015-16 में 4522, वर्ष 2016-17 में 3373 और वर्ष 2017-18 में 3830 गाएं मर गई।

निगम के आंकड़ों के मुताबिक, एकीकृत निगम के समय वर्ष 2007 में पांच गोशालाओं में 17677 गायें थीं। इनमें से 8686 गायों की मौत हो गई थी। इसी तरह वर्ष 2008 में 24591 गायें थीं, इनमें 17727 गायों की मौत हो गई थी। वर्ष 2009 में 20203 गायें थीं जिनमें से 12617 गायों की मौत हो गई। वर्ष 2010 में 21382 गायें थीं जिनमें 12790 गायों की मौत हो गई। बॉक्स

प्लास्टिक है मौत का बड़ा कारण

दिल्ली में गायों की मौत का सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक है। निगम के पशुपालन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, गायें दिल्ली की सड़कों पर चारे की तलाश में इधर-उधर घूमती रहती हैं। जब निगम का दस्ता इन्हें पकड़ कर लाता है तो इन्हें कई तरह की बीमारी हो चुकी होती है, इनके पेट में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक की थैलियां निकलती हैं। इसकी वजह से इनकी इलाज के दौरान या सामान्य तौर पर मौत हो जाती है। बॉक्स

रिहायशी इलाकों में चल रही अवैध डेयरियां

दिल्ली में गायों की बदहाली की वजह से निगम की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। उत्तरी निगम की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है क्योंकि दिल्ली में रिहायशी इलाको में पाबंदी के बावजूद अवैध रूप से डेयरियां चल रही हैं। इन डेयरियों को स्थानांतरित करने के लिए भूखंड घोघा डेयरी कॉलोनी और भलस्वा डेयरी दिए गए हैं, बावजूद इसके रिहायशी इलाकों में यह अवैध डेयरियां संचालित हो रही हैं। यह सब निगम अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव होता है। बॉक्स

सीवर जाम होने के पीछे भी अवैध डेयरियां

दिल्ली में बरसात में नाले और सीवर जाम होने के बड़े कारणों में यह अवैध डेयरियां ही हैं। रिहायशी इलाकों में अवैध रूप से चल रही इन डेयरियों से गोबर नाली में बहा दिया जाता है। इसकी वजह से नालियां तो जाम रहती ही हैं, बड़े नाले और सीवर भी जाम हो जाते हैं।

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