राशन वितरण के नाम पर 325 करोड़ का घोटाला
-दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने की सीबीआइ जांच की मांग वी.के.शुक्ला, नई ि
By JagranEdited By: Updated: Sun, 29 Jul 2018 08:44 PM (IST)
वी.के.शुक्ला, नई दिल्ली
दिल्ली में राशन वितरण के लिए तीन माह तक चलाई गई ई-पॉस मशीनों से 325 करोड़ का घोटाला सामने आया है। यह घोटाला 2013 के अंत से चल रहा था। विपक्ष के दबाव पर सरकार ने अब 2.93 लाख राशन कार्ड निरस्त कर दिए हैं। मगर बड़ा सवाल यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? ये फर्जी कार्ड कैसे बन गए और कैसे इनका सत्यापन भी हो गया। दिल्ली सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग ने एकाएक आदेश जारी कर 2.93 लाख राशन कार्ड निरस्त कर दिए हैं। ये कार्ड 2013 में बनाए गए थे। इन कार्डो पर बांटे गए राशन के दाम और इसके मार्केट के दाम के बीच के अंतर का आकलन करें तो 244 करोड़, 71 लाख, 36 हजार के गेहूं और 80 करोड़ 16 लाख 28 हजार के चावल का घपला किया गया है। यह अनाज गरीबों को मिला ही नहीं। इन 2.93 हजार राशन कार्ड की बात करें तो एक राशन कार्ड पर 4 यूनिट सदस्य होते हैं। मगर हम इसे औसतन 3 यूनिट प्रति राशन कार्ड मान लें और इसे 4 साल का भी मान लें तो जो आंकडे़ सामने आते हैं वे चौकाने वाले हैं। 2.93 लाख राशन कार्ड फर्जी पाए गए हैं। इसके कुल 8 लाख 79 हजार यूनिट बनते हैं। एक यूनिट को चार किलो गेहूं प्रति माह मिलता है। इस लिहाज से 35,160 क्विंटल गेहूं प्रति माह का कोटा बना। एक साल का 4 लाख 21 हजार 920 क्विंटल कोटा बना और 4 साल का 16 लाख, 87 हजार, 680 क्विंटल कोटा बना। राशन की दुकान पर गेहूं 2 रुपये किलो मिलता है, जबकि इसका बाजार भाव 16 रुपये 50 पैसे है। यानी इसके बीच के रेट का अंतर 14 रुपये 50 पैसे है। अब हम 16 लाख, 87 हजार, 680 क्विंटल का 14 रुपये 50 पैसे के हिसाब से गुणा करें तो कुल 244 करोड़ 71 लाख, 48 हजार कुल राशि बैठती है।
इसी तरह हम राशन से मिलने वाले चावल की बात करें तो एक यूनिट यानी एक सदस्य के हिसाब से 1 किलो चावल प्रति माह मिलता है। यानी 8 लाख 79 हजार यूनिट के लिए एक माह का 8790 क्विंटल चावल का कोटा हुआ। एक साल का एक लाख 5 हजार 440 क्विंटल चावल हुआ और 4 साल का 4 लाख 21 हजार 920 क्विंटल चावल हुआ। राशन की दुकान पर चावल का दाम 3 रुपये प्रति किलो है। जबकि इस स्तर के चावल का बाजार भाव 22 रुपये है। इस चावल के बाजार के भाव का अंतर 19 रुपये प्रति किलो है। इस हिसाब से 4 साल के 4 लाख 21 हजार 920 रुपये के अंतर को 19 रुपये से गुणा करें तो यह 80 करोड़ 16 लाख 48 हजार बैठता है। गेहूं और चावल के अलग-अलग निकाले गए अंतर को जोड़ लें तो यह 324 करोड़, 87 लाख, 44 हजार बैठता है। बता दें कि 2013 के अंत में ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन कार्ड बनाने का काम शुरू हुआ था। इसलिए हमने भी चार साल का ही औसत निकाला है। इसके माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि 324 करोड़, 87 लाख, 44 हजार का लाभ किसकी जेब में गया है। क्योंकि इन सभी राशन कार्डो पर 2012 से लगातार राशन जारी किया गया है। ई-पॉस लागू होने पर जनवरी 2018 से इन लोगों ने राशन लेना बंद किया है और मार्च में जब तक ये मशीनें चालू रहीं ये लोग राशन लेने नहीं आए। अब विभाग ने भी इन राशन कार्ड को फर्जी मान लिया है तो यह सवाल खड़ा होता है कि इन राशन कार्डो पर जो राशन कार्ड गलत हाथों में जा रहा था। वह किसने उठाया। उसके लिए जिम्मेदार कौन है?
राशन कार्ड के सत्यापन पर ही खर्च हो गए थे 87 लाख 90 हजार फर्जी पाए गए 2 लाख 93 हजार राशन कार्ड को बनाने के समय सत्यापन पर 87 लाख 90 हजार रुपये खर्च किए गए थे।
दरअसल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत इन राशन कार्ड को बनाने के लिए तत्कालीन कांग्रेस की शीला दीक्षित की सरकार के समय 2013 में सत्यापन कराया गया था। इसके लिए शिक्षा व अन्य दूसरे विभागों के कर्मचारियों ने सत्यापन किया था। इन लोगों को सत्यापन के लिए आवेदन में दिए गए पते पर जाना था। इसके लिए प्रति राशन कार्ड के हिसाब से 30 रुपये सत्यापन करने वाले को खर्च दिया गया था। इस हिसाब से इस सत्यापन पर कुल मिलाकर 87 लाख 90 हजार की राशि खर्च की गई थी। मगर अब इस सत्यापन पर भी सवाल उठ रहा है। आखिर यह कैसा सर्वे हुआ जो राशन कार्ड फर्जी निकले हैं। ------------- 2.93 लाख ही नहीं, पूरे चार लाख राशन कार्ड निरस्त होने चाहिए। इसमें जो लोग शामिल रहे हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। आखिर कौन लोग थे जिनके समय ये कार्ड बनाए गए थे और राशन कार्ड बांटा जा रहा था। इस मामले की सीबीआइ जाच होनी चाहिए। सरकार इस मामले को दबाती रही और कार्रवाई नहीं होने दी। इसलिए सरकार की मंशा पर भी सवाल उठता है। विजेंद्र गुप्ता,नेता प्रतिपक्ष दिल्ली विधानसभा
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