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कभी नहीं लड़ी गई ऐसी लड़ाई, गोलियां खत्म होने पर सैनिकों ने लाठियों से लड़ी जंग

भयानक जंग के मंजर को याद करते हुए निहाल सिंह कहते हैं कि हमारे पास बेहद सीमित संसाधन थे और हमला करने वाली चीनी सेना के पास आधुनिक हथियार थे।

By Amit MishraEdited By: Updated: Mon, 30 Jul 2018 10:14 PM (IST)
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कभी नहीं लड़ी गई ऐसी लड़ाई, गोलियां खत्म होने पर सैनिकों ने लाठियों से लड़ी जंग
रेवाड़ी [अमित सैनी]। 'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।' यह गीत सुनते ही देशप्रेम की भावना उमड़ने लगती है और जांबाजों को यादकर आंखें अपने आप नम हो जाती हैं। प्रदीप के लिखे इस गीत को स्वर दिया था स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह गीत में रेजांगला पोस्ट पर वीर अहीर जवानों द्वारा लड़े गए युद्ध पर बना है।

जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली

गीत की वो पंक्तियां ‘जब देश में थी दिवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली’ बयां करती हैं कि जब सारा देश दिवाली मना रहा था उस समय बर्फ से ढकी रेजांगला पोस्ट पर देश के वीर जवान चीनी सैनिकों के साथ खून की होली खेल रहे थे। इतिहास में शायद ही कभी ऐसा भयानक युद्ध लड़ा गया हो। लड़ाई में दुश्मनों का सामना 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी ने तीन जेसीओ एवं 120 जवानों के साथ कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में किया था। मातृभूमि की रक्षा करते हुए 114 जवान शहीद हो गए थे। इस युद्ध में हमारे जांबाजों ने 1300 चीनी जवानों को मौत के घाट उतार दिया था।

याद रहेगी शौर्य की ये गाथा 

रणभूमि में देश के 114 रणबांकुरे शहीद हुए थे और महज दस जवान ही जिंदा बच पाए थे। इन्हीं बचे हुए दस जवानों में से एक हैं गांव चिमनावास के रहने वाले हवलदार निहाल सिंह। अपनी वीरता के लिए सेना मेडल हासिल करने वाले हवलदार निहाल सिंह ने रेजांगला युद्ध की जब तस्वीर सामने रखी तो सुनकर रोंगटे खड़े हो गए।

'ऐतिहासिक था रेजांगला पोस्ट का युद्ध, ऐसी लड़ाई पहले कभी नहीं लड़ी गई'

चीनी आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया

निहाल सिंह बताते हैं कि 13 कुमाऊ रेजीमेंट में हमारी चार्ली कंपनी थी। मेजर शैतान सिंह हमारे कंपनी कमांडर थे। मैं कंपने कमांडर के पास ही तैनात था और मेरे पास लाइट मशीन गन थी। अक्टूबर में हमारी बटालियन को पहले लेह में लाया गया और इसके बाद नवंबर में रेजांगला पोस्ट पर भेज दिया गया। 18 नवंबर को चीन की तरफ से हमला बोल दिया गया। मेजर शैतान सिंह की अगुआई में हमारी चार्ली कंपनी के जवानों ने चीनी आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब दिया।

जान दे देंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे

भयानक जंग के मंजर को याद करते हुए निहाल सिंह कहते हैं कि हमारे पास बेहद सीमित संसाधन थे और हमला करने वाली चीनी सेना के पास आधुनिक हथियार थे। उनकी संख्या भी तीन हजार के करीब थी। हमने उनका पहला हमला नाकाम कर दिया, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बमबारी शुरू कर दी। चीनी आक्रमण तेज हो चुका था। हमारे पास मौका था पीछे हटकर अपनी जान बचाने का, लेकिन कंपनी के सभी जवानों ने कहा कि वे जान दे देंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे।

चीनी सैनिकों को दिया चकमा 

जोश से भरे निहाल सिंह ने बताया कि दोनों तरफ से गोलियां चल रही थीं। हमारे जवानों ने गोलियां खत्म हो जाने पर चीनी सैनिकों को पत्थरों से मारना शुरू कर दिया। इसी दौरान मेरे दोनों हाथों में गोली लग चुकी थी। मैं लहूलुहान होकर जमीन पर पड़ा था। चीनी सेना के जवानों ने मुझे बंधक बना लिया और अपने साथ उठाकर पहाड़ से नीचे ले गए। रात में किसी तरह से चीनी सैनिकों को चकमा देकर मैं उनके कब्जे से निकला। सारी रात दुश्मनों से बचते हुए पहाड़ पर चढ़ाई करता रहा। 19 नवंबर को मैं अपने बेस कैंप में पहुंचा। बेस कैंप पहुंचने के बाद मुझे मालूम चला कि युद्ध में हमारे 114 जवान शहीद हुए, लेकिन उन्होंने चीन के 1300 सैनिकों को मार डाला। चीनी अखबारों में यह सच छपा भी। चीनी सेना पीछे हट गई थी। बहादुरी के लिए मुझे सेना मेडल दिया गया। इस युद्ध के बाद चार्ली कंपनी को रेजांगला कंपनी के नाम से जाना जाने लगा।

ऐसी लड़ाई पहले कभी नहीं लड़ी गई

गोली के निशान दिखाते निहाल सिंह कहते हैं कि भारतीय जांबाजों ने 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था महज दस जवान ही जिंदा बच पाए थे। गोला-बारुद खत्म होने पर भारतीय सैनिकों ने लाठियों का इस्तेमाल किया। ऐसी लड़ाई पहले कभी नहीं लड़ी गई।

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