आखिरी सांस तक दुश्मनों पर कहर बनकर टूटे भरत सिंह
भगवान झा, पश्चिमी दिल्ली कारगिल युद्ध में दुश्मनों की गोलियों की परवाह किए बिना उन पर कहर बनकर
भगवान झा, पश्चिमी दिल्ली
कारगिल युद्ध में दुश्मनों की गोलियों की परवाह किए बिना उन पर कहर बनकर टूटे थे 1 नागा रेजीमेंट के सिपाही भरत सिंह रावत। उन्होंने आखिरी सास तक लड़ने का जज्बा दिखाया। सीने में कई गोलियां समा चुकी थीं, असहनीय पीड़ा थी, फिर भी बंदूक से गोलियों की बौछार करते हुए आगे बढ़ते गए। दुश्मनों की और गोलियां लगीं तो वह लड़खड़ाकर गिर गए। रेजीमेंट के जवान उनकी मदद को रुके, लेकिन भरत सिंह ने उन्हें आगे बढ़ते रहने को कहा। हमारे जांबाजों ने दुश्मनों को परास्त कर दिया, लेकिन तब तक यह योद्धा मातृभूमि पर अपनी जान न्यौछावर कर चुका था।
ऑपरेशन विजय में नागा रेजीमेंट को 27 मई को द्रास सेक्टर में भेज दिया गया था। जैसे ही दुश्मनों को भारतीय फौज के आने की आहट मिली, उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस दौरान कई भारतीय सिपाही शहीद हुए। भरत सिंह रावत भी उस रेजीमेंट के हिस्सा थे। वह अपने साथियों के साथ आगे बढ़ते रहे। रात होने के कारण काफी कठिनाइया सामने आ रही थीं। इसी दौरान फिर से पाकिस्तानी फौज ने गोलीबारी शुरू कर दी। भारतीय फौज ने भी करारा जवाब दिया। इस दौरान भरत सिंह के जिस्म में कई गोलिया लगीं और वह दुश्मनों ने लोहा लेते हुए शहीद हो गए। भारी बर्फबारी व दुर्गम रास्ते की वजह से भरत सिंह का शव करीब एक महीने बाद उनके पैतृक गाव उत्तराखंड के पुरख्याल ले जाया गया, जहा उन्हें अंतिम सलामी दी गई। भरत सिंह रावत का परिवार नजफगढ़ में रह रहा है। उनकी पत्नी विनीता के सामने जब युद्ध की बात छिड़ती है तो आंखें नम हो जाती हैं। वह बताती हैं कि भरत सिंह की शहादत के समय बेटा साढ़े पाच साल का और बेटी तीन वर्ष की थी। जिंदगी की डगर काफी कठिन लग रही थी, लेकिन इस बात का गर्व था कि मेरे पति ने देश के लिए अदम्य साहस दिखाया। जिस समय कारगिल युद्ध हुआ उस समय संचार के साधन इतने ज्यादा नहीं थे। मुझे कारगिल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी। उस दौरान पुरख्याल गाव के एक बैंक में काम से गई थी। मेरे एक रिश्तेदार साथ थे। बैंक में मैंने नागा रेजीमेंट के एक जवान को देखा। जब उनसे कारगिल युद्ध के बारे में बात की तो पता चला कि नागा रेजीमेंट ने दुश्मनों के दात खट्टे कर दिए हैं और कई सैनिक शहीद भी हुए हैं। उसी समय मेरा दिल बैठ गया। मुझे अनहोनी की आशका सताने लगी। इस बीच हमें पति के गायब होने की जानकारी दी गई। युद्ध के एक महीने बाद शव को लाया जा सका। करीब तीन वर्ष तक मुझे किसी भी चीज का होश नहीं रहा, लेकिन बाद में खुद को संभाला। बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया। दिल्ली में कारगिल अपार्टमेंट में हमें फ्लैट मिला। हंसराज कॉलेज से दोनों बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। मेरी सरकार से एक ही विनती है कि शहीद के बच्चों को सरकारी नौकरी दे।