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कारगिल वारः दुश्मनों को खदेड़कर फहराया था तिरंगा, लौटते समय हुए शहीद

बुलंदशहर के खैरपुर निवासी मुंशी सिंह के घर 1968 में ओमप्रकाश का जन्म हुआ। उन्हें बचपन में ही बंदूकों से खेलने का शौक था। वह अपने दोस्तों से देश की रक्षा की बातें करते थे।

By Edited By: Updated: Thu, 02 Aug 2018 03:06 PM (IST)
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कारगिल वारः दुश्मनों को खदेड़कर फहराया था तिरंगा, लौटते समय हुए शहीद
गाजियाबाद/लोनी (अजय सक्सेना)। कारगिल का नाम सुनते ही देश के हर व्यक्ति का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। भारतीय सेना ने दो माह 23 दिन में पाकिस्तानी फौज को खदेड़ कर सरहद के पार कर दिया था। हमारे 527 जांबाजों ने शहादत देकर 26 जुलाई 1999 को कारगिल पर तिरंगा फहराया था। मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्यौछावर कर अमर होने वालों में लास नायक ओम प्रकाश सिंह का नाम भी शामिल है।

बुलंदशहर के खैरपुर निवासी मुंशी सिंह के घर 1968 में ओमप्रकाश का जन्म हुआ। उन्हें बचपन में ही बंदूकों से खेलने का शौक था। वह अपने दोस्तों से देश की रक्षा की बातें करते थे। देश की सेवा का सपना दिल में लिए उन्होंने उत्तरकाशी (उत्तराखंड) से बारहवीं तक की पढ़ाई की। उन्होंने पिता से फौज में जाने की इच्छा जताई तो उन्होंने बडे़ भाइयों देवेंद्र सिंह और जय प्रकाश की तरह सिविल सेवा में जाने की सलाह दी। पिता की बात सुनकर वह मायूस हो गए। बेटे को मायूस देख पिता ने उन्हें फौज में जाने की इजाजत दे दी।

1986 में उनका चयन राजपूताना राइफल्स में हो गया। 1998 में उनकी शादी राजकुमारी से हुई। जनवरी 1999 में उनके बेटे कुलदीप का जन्म हुआ। कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो अपने तीन माह के बेटे और पत्नी को परिवार के पास छोडकर मातृभूमि की रक्षा के लिए चले गए। 15 जून 1999 को अपने साथियों के साथ द्रास सेक्टर में दुश्मनों को खदेड़ कर विजय प्राप्त की।

29 जून को नवल हिल पर दुश्मनों को खदेड़ कर भगाया और वहां भी तिरंगा फहराया। इसके बाद वे जब साथियों के साथ पहाड़ी से उतरने लगे तो रात करीब दो बजे पाकिस्तान सेना की ओर से फेंके ग्रेनेड से वह और उनके साथी हरियाणा निवासी यशवीर शहीद हो गए।

बेटे ने कहा, एयरफोर्स ज्वाइन करूंगा

ओमप्रकाश की पत्नी राजकुमारी ने बताया कि पिता की शहादत के समय बेटे कुलदीप की उम्र छह माह थी। जब कुलदीप पांच साल का था तभी से कहने लगा था कि वह एयरफोर्स में जाएगा और दुश्मनों से पिता का बदला लूंगा।

कुलदीप कहते हैं कि वह बचपन से ही खुद को फौज के लिए तैयार कर रहे थे, लेकिन मा को अकेला देख उन्होंने वकालत करने का मन बना लिया। वह इंदिरा गाधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रहे हैं। कुछ ही किस्मत वाले मातृभूमि का ऋण चुका पाते हैं देश की रक्षा में पति के शहीद होने पर राजकुमारी कहतीं हैं कि देश की सेवा करने वाले शहीद होकर अमर हो जाते हैं। कुछ ही किस्मत वाले होते हैं, जो मातृभूमि का ऋण चुका पाते हैं। हर इंसान को फौज में नौकरी नहीं मिलती।

उन्होंने बताया कि जब उनके पति ऑपरेशन विजय के तहत कारगिल जा रहे थे तो बेटे की फोटो हर माह भेजने के लिए कहा था। जब वह शहीद हुए तो जेब में बेटे का फोटो मिला था। उनका कहना है कि सरकार ने भले ही जीविका चलाने के लिए गैस एजेंसी दे दी हो, लेकिन उन्हें और परिवार के हर सदस्य को ओमप्रकाश की कमी हर घड़ी महसूस होती है।

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