बीडीओ कार्यालय को अपना स्टाफ नहीं दे पाई दिल्ली सरकार
बीडीओ कार्यालय के पास स्टेशनरी, स्टाफ टी ए/डी ए आदि के लिए कोई बजट प्रावधान नहीं है। एक अधिकारी ने बताया कि स्टेशनरी का सामान भी जिला उपायुक्त कार्यालय से मांग कर काम चलाया जा रहा है।
By Edited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 02:54 PM (IST)
नई दिल्ली (नवीन गौतम)। दिल्ली दिल्ली सरकार लोगों को बेहतर सुविधा उनके घर पर ही देने का दम तो खूब भर रही है मगर जिन कार्यालयों पर इन सुविधाओं का भार है उनकी तरफ ही सरकार ध्यान नहीं दे रही है। ऐसा ही कार्यालय है खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) उत्तरी का। अलीपुर स्थित इस कार्यालय के ऊपर 62 गांवों के विकास एवं ग्राम सभा भूमि की देखरेख व कोर्ट केसों का कार्य है।
यहां कार्यालय का स्टाफ एक भी अपना नहीं है। दिल्ली सरकार के अधीन चलने वाला यह बीडीओ कार्यालय उत्तरी जिले में आता है, मगर आज तक इस कार्यालय में एक भी पोस्ट स्वीकृत नहीं है और न ही किसी प्रकार के बजट की व्यवस्था है। अब केवल पांच कर्मचारी/अधिकारी बीडीओ कार्यालय के कार्यभार को संभाल रहे हैं, जो दूसरे विभागों से प्रतिनियुक्ति पर आए हुए हैं।गौरतलब है कि बीडीओ कार्यालय के पास स्टेशनरी, स्टाफ टी ए/डी ए आदि के लिए कोई बजट प्रावधान नहीं है। एक अधिकारी ने बताया कि स्टेशनरी का सामान भी जिला उपायुक्त कार्यालय से मांग कर काम चलाया जा रहा है। आरटीआइ जैसे महत्वपूर्ण पत्राचार के लिए भी उपायुक्त कार्यालय के आर एंड आइ विभाग पर निर्भर रहना पड़ता है। आर एंड आइ विभाग भी बीडीओ कार्यालय की डाक को व्यर्थ का कार्य समझकर देरी से स्पीड पोस्ट कर रहा है।
यह है परेशानी
इस बीडीओ कार्यालय के पास 62 गांवों के विकास की योजनाओं व ग्राम सभा की जमीन की देखरेख की जिम्मेदारी है। ग्राम सभा की जमीन पर भूमाफिया के कब्जे करने की शिकायतें दिन-प्रतिदिन कार्यालय में आती रहती हैं। स्टाफ की कमी के कारण शिकायतों पर ठीक से कार्रवाई भी नहीं हो पाती है।स्थानीय लोगों का आरोप है कि दिल्ली सरकार ने इस कार्यालय की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। यहां तक की दो वर्ष से ग्राम सभा के केसों के पैनल के अनुसार कार्यवाही करने वाले वकीलों को भत्ता भी नहीं दिया गया है। दिल्ली सरकार के दो वर्ष पहले आए आदेश के अनुसार, पैरवी करने वाले वकीलों को भत्ता देने के लिए दिल्ली सरकार कानून मंत्री की अनुमति लेना जरूरी है, जबकि पैरवी के लिये पैनल उपराज्यपाल की ओर से बनाए जाते हैं। पैनल में वकीलों की नियुक्ति उपराज्यपाल के आदेशों से की जाती है।
इस बीडीओ कार्यालय के पास 62 गांवों के विकास की योजनाओं व ग्राम सभा की जमीन की देखरेख की जिम्मेदारी है। ग्राम सभा की जमीन पर भूमाफिया के कब्जे करने की शिकायतें दिन-प्रतिदिन कार्यालय में आती रहती हैं। स्टाफ की कमी के कारण शिकायतों पर ठीक से कार्रवाई भी नहीं हो पाती है।स्थानीय लोगों का आरोप है कि दिल्ली सरकार ने इस कार्यालय की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। यहां तक की दो वर्ष से ग्राम सभा के केसों के पैनल के अनुसार कार्यवाही करने वाले वकीलों को भत्ता भी नहीं दिया गया है। दिल्ली सरकार के दो वर्ष पहले आए आदेश के अनुसार, पैरवी करने वाले वकीलों को भत्ता देने के लिए दिल्ली सरकार कानून मंत्री की अनुमति लेना जरूरी है, जबकि पैरवी के लिये पैनल उपराज्यपाल की ओर से बनाए जाते हैं। पैनल में वकीलों की नियुक्ति उपराज्यपाल के आदेशों से की जाती है।
उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के बीच विवाद के कारण पैनल में नियुक्त वकीलों को दो वर्ष से भत्ते भी नहीं दिए जा रहे हैं। आरडब्ल्यूए बांकनेर के महासचिव सुंदर लाल खत्री का कहना है कि दिल्ली सरकार बीडीओ नार्थ कार्यालय के लिए स्टाफ अनुसूचित करे। यहां का बजट स्वीकृत करके कार्यालय को आवंटित करे, जिससे इस कार्यालय के अंतर्गत आने वाले गांव की ग्राम सभा की भूमि की ठीक ढंग से पैरवी की जा सके। भूमाफिया से अरबों रुपये की भूमि को बचाया जा सके। खत्री का कहना है कि इस संबंध में कई बार उपराज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को पत्र लिखे गए हैं, लेकिन पता नहीं क्यों देहात की जिम्मेदारी संभालने वाले इस कार्यालय की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
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