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कैप्टन सुमित का प्रहार झेल नहीं सके पाकिस्तानी जवान, बिना हथियारों के ही चटाई थी धूल

सुमित की शहादत के बाद उसके कई खत मिले, जिसमें उसके शौर्य का जिक्र था। महज 21 साल की उम्र में सुमित ने दुश्मनों को धूल चटा दी थी।

By Amit MishraEdited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 06:41 PM (IST)
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कैप्टन सुमित का प्रहार झेल नहीं सके पाकिस्तानी जवान, बिना हथियारों के ही चटाई थी धूल
नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। हर वक्त मेरी आंखों में देशप्रेम का स्वप्न हो, जब कभी भी मृत्यु आए तो तिरंगा मेरा कफन हो। और कोई ख्वाहिश नहीं जिंदगी में, जब कभी जन्म लूं तो भारत मेरा वतन हो।

कारगिल युद्ध में हमारे शूरवीरों ने पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। शहादत देकर इन अमर वीरों ने दुश्मनों के नापाक मंसूबों को नाकाम किया और देश का मान बढ़ाया। सीने पर गोलियां खाईं। दुश्मनों को ढेर करने के बाद ही अंतिम सांस ली। ऐसे ही जांबाज थे कैप्टन सुमित रॉय। ऑपरेशन विजय के दौरान वह बिना बंदूक के ही दुश्मनों पर टूट पड़े।

बिना हथियार के भिड़ गए कैप्टन सुमित

पाकिस्तानी सेना के दो सैनिकों से कैप्टन सुमित की हाथापाई हुई और इस जांबाज ने बिना किसी हथियार के ही उन्हें मौत के घाट उतार दिया और प्वाइंट पर तिरंगा फहराया। द्रास सेक्टर में 4 जुलाई को पाकिस्तानी सेना ने बम विस्फोट कर दिया, जिसकी चपेट में आने से कैप्टन सुमित शहीद हो गए। युद्ध में अदम्य साहस के लिए उन्हें वीर चक्र से अलंकृत किया गया।

आज भी याद है वो दिन 

कैप्टन सुमित की मां सपना रॉय कहती हैं कि 4 जुलाई की वह सुबह मुझे आज भी याद है। आठ बजे फोन की घंटी बजी और सूचना मिली कि सुमित अब इस दुनिया में नहीं रहे। उस समय मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। वह काफी छोटा था। एक दिन पहले ही शाम को उससे बात हुई थी। दो दिन बाद उसका शव घर आया।

पहाड़ी पर पहुंच गए सुमित रॉय 

सुमित की शहादत के बाद उसके कई खत मिले, जिसमें उसके शौर्य का जिक्र था। महज 21 साल की उम्र में सुमित ने प्वाइंट और 5140 (चोटी) पर दुश्मनों को धूल चटा दी थी। कारगिल में प्वाइंट पर दुश्मन मौजूद थे। जैसे ही यह बात कैप्टन सुमित को पता चली वे बिना हथियार लिए ही साथियों के साथ पहाड़ी पर पहुंच गए। जब चोटी के काफी नजदीक पहुंचे तो उन्हें दो पाकिस्तानी सैनिक दिखे। वहां साथियों की रक्षा के साथ एक चुनौती यह भी थी कि एक गलत कदम नीचे पहुंचा देगा।

अचानक दुश्मनों पर किया हमला 

सुमित ने अचानक दुश्मनों पर हमला किया। उन्हें इतना मौका भी नहीं दिया कि वे अपनी बंदूक तक उठा सकें। कैप्टन सुमित के हाथों का प्रहार पाक सैनिक नहीं सह सके और वहीं ढेर हो गए। जैसे ही यह संदेश पहाड़ी के नीचे उनके अधिकारियों और टीम को मिला तो वहां जश्न का माहौल हो गया। उसी दौरान कैप्टन सुमित का नाम वीर चक्र के लिए भेज दिया गया था।

बेटे की दिलेरी पर गर्व

मां सपना बताती हैं कि हिमाचल प्रदेश स्थित कसौली छावनी क्षेत्र में जन्मे सुमित अपने आसपास रहने वाले सैन्यकर्मियों से काफी प्रभावित थे। बचपन से ही वे सेना में जाना चाहते थे ताकि देश के लिए कुछ कर सकें। अपने बेटे की दिलेरी को आज भी जब मैं याद करती हूं तो काफी गर्व महसूस होता है। सुमित को बचपन से ही हथियारों वाले खिलौनों से खेलने का शौक था।  

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