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सबरंग: धरा को स्पर्श कर रहीं थीं बूंदे, रागों की मधुरता में भीगे दर्शक

आयोजन में राग भैरवी की प्रस्तुति के बाद राग कोमल रिषभ असावरी की प्रस्तुति दी गई। बारिश के मौसम में राग बहार सुनना दर्शकों के लिए अभूतपूर्व अनुभव रहा।

By Amit MishraEdited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 06:41 PM (IST)
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सबरंग: धरा को स्पर्श कर रहीं थीं बूंदे, रागों की मधुरता में भीगे दर्शक
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। मंद-मंद बह रही हवा के संग नभ से काले बादलों से उतरकर बूंदे चली आईं थीं...मानों मल्हार राग की ध्वनि ने बरखा को बरसने को विचलित कर दिया हो... आयोजन स्थल पर जहां बाहर बूंदे धरा को स्पर्श कर रही थीं तो भीतर दर्शक सूरदासी मल्हार, बराटी, छाया बिहाग रागों की मधुरता में भीगे थे...तबले की थाप के साथ सरोद व सितार के तार मन को रह-रह कर झंकृत कर रहे थे...:

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) में बीते सप्ताह स्ट्रिंग्स ऑफ शाहजहांपुर के कई चुनिंदा रागों की सुर धारा ने दर्शकों की आत्मा तक को तृप्त कर दिया। दरअसल आइजीएनसीए हर माह पूर्णिमा संगीत सभा का आयोजन करता है। इसी क्रम में इस बार गुरु पूर्णिमा के अवसर पर स्ट्रिंग्स ऑफ शाहजहांपुर का आयोजन किया गया था, जिसमें शाहजहांपुर के सेनिया घराने के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से गुरु पद्मभूषण बुद्धदेव दास गुप्ता को संगीतमय श्रद्धांजलि अर्पित की।

रागों की वर्षा में झूम उठे दर्शक

आयोजन की शुरुआत 'गीत माला' से हुई, जिसमें बुद्धदेव दास गुप्ता के शिष्यों ने अपने संगीत वर्षा से लोगों को भावविभोर कर दिया। विदुषी देबास्मिता भट्टाचार्य व प्रत्युष बनर्जी ने सरोद पर, समरजीत कुमारसेन ने सितार व तबले पर तो सुषमोय मिश्रा ने सेनिया घराने से जुड़े कुछ चुनिंदा व दुर्लभ राग बराटी, छाया बिहाग, जयजयवंती, कामोद, सूरदासी मल्हार आदि की प्रस्तुति दी।

उस्ताद मुराद अली खान, उस्ताद मोहम्मद अब्दुल्लाह खान, पंडित राधिका मोहन, उस्ताद मोहम्मद अमीर खान की बंदिशों पर प्रस्तुत इन रागों की खास बात यह थी कि इनकी सभी बंदिशे सेनिया घराने से जुड़ी थीं। और अलग-अलग रागों की इन प्रस्तुति के दौरान ऐसी अनुभूति हो रही थी मानों कलाकार, साधक प्रस्तुति देते हुए रागों के एक सुंदर बगीचे में हैं जहां कई तरह के फूल, पौधे, वृक्ष, लताएं, कुंज, विहार, पुष्करणियां मौजूद हैं...और संगीत का हर यंत्र सितार, तबला राग और कलाकारों को उस बगिया में भ्रमण की राह दिखा रहे हों। इसी खूबसूरत बगिया में वे श्रोताओं को भी परिभ्रमण में संगी बनाकर घुमाने ले गए हैं। दरअसल इन सौंदर्यस्थलों की यात्रा जिन रागों के बल पर की जाती है वे या तो पीढ़ी-दर पीढ़ी गुरु से शिष्य को सिखाई गई पारंपरिक होती हैं या फिर सर्वथा नवीन, समकालीन होती हैं।

समय के संग राग प्रस्तुति

समय की पारियों में बंटे इस आयोजन में राग भैरवी की प्रस्तुति के बाद राग कोमल रिषभ असावरी की प्रस्तुति दी गई, जो दिन के दूसरे पहर में गाया जाने वाला राग है। दिन के प्रथम पहर में गाए जाने वाले राग नट बिलावल ने लोगों का मन मोह लिया। वहीं बारिश के मौसम में राग बहार सुनना दर्शकों के लिए अभूतपूर्व अनुभव रहा। आमतौर पर यह वसंत व शरद ऋतु में गाया जाने वाला अत्यंत मीठा राग है। कार्यक्रम के दूसरे भाग में प्रत्युष बनर्जी ने सेनिया घराने के इतिहास एवं पंडित बुद्धदेव दास गुप्ता के जीवन पर आधारित एक लघु फिल्म का भी प्रदर्शन किया।

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण भाग संगीतांजलि था। जिसमे पंडित देबाशीश भट्टाचार्य ने सरोद व पंडित सुगतो नाग ने सितार पर जुगलबंदी की तथा तबले पर इनको संगत दी युवा तबला वादक ज्योर्तिमय रॉय चौधरी ने। अपने एक घंटे से अधिक की प्रस्तुति में पंडित देबाशीश भट्टाचार्य व पंडित सुगतो नाग ने कुल दो राग 'रामदासी मल्हार' व 'तिलक कामोद' की प्रस्तुति दी।  

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