एएमयू के निर्माण में ¨हदू-मुस्लिम दोनों का योगदान
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को दा
By JagranEdited By: Updated: Fri, 03 Aug 2018 09:59 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को दाखिले में आरक्षण नहीं दिए जाने पर दिल्ली इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट में संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें एएमयू को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा न होने के बाद भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति को दाखिले में आरक्षण का लाभ न मिलने पर चर्चा हुई । संगोष्ठी में वरिष्ठ वकीलों ने यह बात भी उठाई की इस विश्वविद्यालय के निर्माण में किसी धर्म विशेष का योगदान नहीं है, क्योंकि मुस्लिमों के साथ ¨हदू राजाओं ने भी इसमें अपना योगदान दिया था। चर्चा के दौरान उत्तर प्रदेश के एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष व सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने एएमयू को अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय के इतिहास को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि एएमयू की स्थापना से लेकर अब तक इसे अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय का दर्जा नहीं मिला है। सर सैय्यद अहमद खान द्वारा स्थापित होने के कारण लोगों में यह भ्रम फैलाया गया कि यह मुस्लिमों का संस्थान है लेकिन 1946 की संविधान सभा में किसी ने इसके लिए अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है।
बृजलाल ने बताया कि संविधान निर्माण के समय डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान बताया था और इसे केंद्रीय सूची में रखा था। हालांकि इसे वर्ष 1980 तक कई बार मुस्लिम विश्वविद्यालय घोषित करने की कोशिश हुई लेकिन यह नाकाम रही। वर्ष 1981 में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाने का एलान किया तो इलाहबाद हाईकोर्ट ने 2005 में इस फैसले को रद्द कर दिया। जब इसके एक्ट में संशोधन किया जा रहा था तो कई नेताओं ने इसका विरोध भी किया था। इसके बाद से अभी तक यह मुस्लिम विश्वविद्यालय नहीं है, इसलिए इसमें सभी जाति और धर्मो के लोगों को दाखिले में समान अधिकार मिलने चाहिए। बृजलाल ने कहा कि आयोग ने एएमयू को चार जुलाई को इस संबंध में नोटिस दिया है, जिसका जवाब आठ अगस्त तक आना है। अगर इसके बाद एएमयू लोगों को समान अधिकार नहीं देता है तो इसको लेकर वह राष्ट्रीय एसटी-एससी आयोग के साथ मिलकर इस पर कार्रवाई करेंगे।
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