सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी
मजनूं का टीला स्थित इलाके में पाकिस्तान से आए 500 से भी अधिक ङ्क्षहदू शरणार्थी रहते हैैं। इनमें से कुछ के आधार कार्ड व मतदाता कार्ड तो बन गए, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।
By Vikas JangraEdited By: Updated: Sat, 04 Aug 2018 07:02 AM (IST)
नई दिल्ली [किशन कुमार]। एक तरफ जहां असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों पर सख्त रुख अपनाया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ जीने की नई उम्मीद लेकर वर्ष 2011 में भारत आए ङ्क्षहदू शरणार्थी सरकार की उपेक्षा के बीच जीने को मजबूर हैं। मजनूं का टीला स्थित इलाके में पाकिस्तान से आए 500 से भी अधिक ङ्क्षहदू शरणार्थी रहते हैैं। इनमें से कुछ के आधार कार्ड व मतदाता कार्ड तो बन गए, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है।
यहां न तो पानी की बेहतर सुविधा है और न ही शौचालय समेत अन्य मूलभूत सुविधाएं हैं। कुछ समय पहले दिल्ली सरकार की तरफ से कुछ शौचालयों का निर्माण तो किया गया, लेकिन वह भी अव्यवस्था का शिकार हो गए। अब हालात यह है कि सफाई न होने के कारण लोगों ने इन शौचालयों का इस्तेमाल बंद कर दिया है और चंदा इकट्ठा करके खुद ही शौचालय का निर्माण कराया है।
यहां पर न तो बिजली है और न ही पानी की सुविधा है। बारिश के मौसम में यहां जगह-जगह बारिश का पानी भर जाता है, लेकिन न तो सफाई होती है और न ही मच्छरों को मारने के लिए दवाई का छिड़काव किया जाता है।
-दयालदास बिजली-पानी की परेशानी रहती है। बारिश के मौसम में यहां जहरीले सांप भी अधिक निकलते हैैं। इससे जान का खतरा बना रहता है। कोई भी अधिकारी या प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं देता है।
-शांति
-दयालदास बिजली-पानी की परेशानी रहती है। बारिश के मौसम में यहां जहरीले सांप भी अधिक निकलते हैैं। इससे जान का खतरा बना रहता है। कोई भी अधिकारी या प्रशासन इस तरफ ध्यान नहीं देता है।
-शांति
छह साल पहले यहां पाकिस्तान से बड़ी उम्मीद से आया था कि भारत में अपनापन मिलेगा, लेकिन यहां तो हालात ही दूसरे हैैं। हम यहां बड़ी मुश्किल से जीवनयापन कर रहे हैैं। सफाई न होने के कारण बच्चे बीमार पड़ रहे हैैं। -बादलहम न पाकिस्तान के रहे न यहां के रहे। सोचा था कि यहां कि सरकार हमारा दर्द समझेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। हम अभावों में जीने को मजबूर हैैं। -कसौली
पाकिस्तान के सिंध से 2011 में आया था। कुछ लोगों ने बड़ी मुश्किल से अपने आधार व वोटर कार्ड बनवा लिए हैैं, वहीं कुछ लोगों के अब भी पहचान नहीं हैैं। -सीताराम