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रेलवे रसोई घर के कचरे से बनेगी बिजली, कई समस्याओं से मिलेगी मुक्ति

रेल परिसरों से निकलने वाले कचरे से बिजली बनाने की संभावनाओं पर काम किया जा रहा है। इस तरह का एक संयंत्र दिल्ली स्थित रेलवे कॉलोनी में भी लगाया गया है।

By Amit MishraEdited By: Updated: Tue, 28 Aug 2018 01:00 AM (IST)
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रेलवे रसोई घर के कचरे से बनेगी बिजली, कई समस्याओं से मिलेगी मुक्ति
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। अब भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (आइआरसीटीसी) के बेस किचन में न सिर्फ रेल यात्रियों के लिए भोजन बनेगा, बल्कि यहां से निकलने वाले कचरे से बिजली भी तैयार की जाएगी। रेलवे स्टेशनों व रेलवे कॉलोनियों में भी कचरे से बिजली बनाने वाले संयंत्र लगाने की योजना है। इससे कचरा निस्तारण की समस्या दूर होने के साथ ही दूसरी एजेंसियों पर बिजली की निर्भरता भी कम होगी।

कचरे से बिजली बनाने की संभावनाओं पर काम

पर्यावरण संरक्षण और बिजली पर होने वाले खर्च को कम करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से रेल प्रशासन वैकल्पिक ऊर्जा को विशेष तौर पर बढ़ावा दे रहा है। इसके तहत रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं। इसके साथ ही रेल परिसरों से निकलने वाले कचरे से बिजली बनाने की संभावनाओं पर काम किया जा रहा है। इस तरह का एक संयंत्र दिल्ली स्थित रेलवे कॉलोनी में भी लगाया गया है। अब आइआरसीटीसी के बेस किचन के नजदीक इस तरह के संयंत्र लगाने की तैयारी है।

पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होगा जैविक कचरा

पिछले दिनों बैठक में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी ने अधिकारियों को इसके लिए निर्देश भी दिए हैं। उन्होंने अधिकारियों को आइआरसीटीसी के बेस किचन के नजदीक इस तरह के संयंत्र लगाने की संभावना तलाशने को कहा है। भारतीय रेलवे वैकल्पिक ईंधन संगठन (आइआरओएएफ) ने किशनगंज दिल्ली में इस तरह का संयंत्र स्थापित किया है। संयंत्र के संचालन की जिम्मेदारी भी इसी को दी गई है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में जैविक कचरा नहीं मिलने की वजह से इसका लाभ अब तक नहीं मिल सका है। अधिकारियों का कहना है कि बेस किचन के नजदीक जैविक कचरा आसानी से उपलब्ध होगा और संयंत्र को चलाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होगी। नोएडा सहित पूरे देेश में आइआरसीटीसी के 16 बेस किचन हैैं।

नई दिल्ली स्टेशन पर भी कचरे से बनेगी बिजली

नई दिल्ली स्टेशन पर भी इस तरह का संयंत्र लगाया जा रहा है, जिससे रोजाना 15 टन कचरे से 2000 यूनिट बिजली तैयार होगी। संयंत्र लगाने का खर्च रेलवे उठाएगा और इसे चलाने के लिए पांच वर्ष का ठेका दिया जाएगा। ठेकेदार ही इसका रखरखाव भी करेगा। इस संयंत्र की अनुमानित आयु 12 वर्ष होगी। स्टेशन से निकलने वाले कचरे में से जैविक कचरा अलग कर उससे बिजली बनाई जाएगी। इसके साथ ही उससे खाद भी तैयार होगा। दोनों का उपयोग रेलवे करेगा। ठेकेदार से रेलवे घरेलू उपभोक्ता दर पर बिजली खरीदेगी। 

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