पानी-पानी हुई दिल्ली, एक दिन में 49.6 मिमी बारिश से दरिया बनीं सड़कें
30-40 वर्ष पहले तक न तो नाले ओवरफ्लो करते थे और न ही सड़क पर जल भराव की समस्या होती थी। बारिश के बाद आसानी से पानी नीचे की ओर उतर जाता था।
By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 28 Aug 2018 03:08 PM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। सोमवार देर रात और मंगलवार सुबह हुई मूसलाधार बारिश ने दिल्ली के साथ एनसीआर के ज्यादातर इलाकों को जबरदस्त तरीके से प्रभावित किया। दिल्ली और गुरुग्राम में सड़कों पर बारिश का पानी भरने से जगह-जगह सड़कें तालाब में तब्दील हो गईं। जगह-जगह भीषण जाम लगा। आलम यह रहा है कि लोगों को मिनटों का सफर तय करने में घंटों का समय लगा। बताया जा रहा है कि एक दिन में 49.6 मिमी बारिश के चलते दिल्ली की सड़कें तालाब में तब्दील हो गईं।
उधर, इस बार भी प्रशासन और नगर निगम की ओर से दावों में कोई कमी नहीं थी कि हमने नालों को साफ कर दिया है बारिश आएगी तो पानी बेरोक टोक बहेगा। कहीं गाद नहीं जमेगी। कहीं सड़कों पर जलभराव नहीं होगा...। दावों के उलट मंगलवार को बारिश ने जैसे ही परीक्षा ली तो सारे वादे उसमें डूब गए और भ्रष्टाचार की परतें जलभराव पर तैरने लगीं। सड़कें कई फीट पानी में तैरती नजर आईं। गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं सड़कें
'अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।' महान गीतकार गोपालदास नीरज रचित ये पंक्ति सावन की फुहारों को लेकर लालायित मन की व्यथा को अभिव्यक्त करती हैं। लेकिन क्या दिल्ली-एनसीआर जहां बारिश होते ही हर माथे पर चिंता की लकीरें पड़ जाती हैं। चेहरे पर घर के आसपास की सड़कों पर जलभराव का डर मंडराता है। सड़कों पर नाव से सवारी के हालात होते हैं, लेकिन उसमें गाड़ियां तैर रही होती हैं। जाम में सुबह और शाम कटती है। ऐसे शहर के लिए तो नीरज गोपाल के शब्दों की छटपटाहट भी कुछ यूं बयां होती, 'यहां न बरसना बदरा...डूब जाएगा मेरा शहर।'
'अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।' महान गीतकार गोपालदास नीरज रचित ये पंक्ति सावन की फुहारों को लेकर लालायित मन की व्यथा को अभिव्यक्त करती हैं। लेकिन क्या दिल्ली-एनसीआर जहां बारिश होते ही हर माथे पर चिंता की लकीरें पड़ जाती हैं। चेहरे पर घर के आसपास की सड़कों पर जलभराव का डर मंडराता है। सड़कों पर नाव से सवारी के हालात होते हैं, लेकिन उसमें गाड़ियां तैर रही होती हैं। जाम में सुबह और शाम कटती है। ऐसे शहर के लिए तो नीरज गोपाल के शब्दों की छटपटाहट भी कुछ यूं बयां होती, 'यहां न बरसना बदरा...डूब जाएगा मेरा शहर।'
स्थानीय निकायों की अनदेखी बनती है परेशानी का सबब
प्रशासन, नगर-निगम और राज्य सरकार की अनदेखी व नाकामियों के कारण कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर की बारिश में रोमांचित कम चिंतित अधिक करती है। बदरी लगती देख, बादलों को लौट जाने की ही दुआ होती है। कौन सड़कों पर जाम में फंसे, कौन जगह-जगह जलभराव में वाहनों को खींचता घूमे। दोष सारा शहर को बसाने वाली व्यवस्था, सरकार और प्रशासन का है। चूंकि न तो नालों की साफ सफाई की जाती है और न ही जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाती है। हां, वादे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती है। आलम यह रहता है कि हल्की बारिश हुई नहीं कि दिल्ली-एनसीआर में कई इलाके तो टापू बन जाते हैं। इसकी बानगी पिछले सप्ताह कुछ घंटों के लिए दौरा करने आई बारिश में ही हो गई। इससे पहले जुलाई में हुई बारिश में जलभराव के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम समेत आस-पास की अन्य जगहों पर भी करीब दो सौ से अधिक सड़कें धंस गईं थीं। कई लोग हादसे का शिकार भी हुए, लेकिन प्रशासन को इन धंसी हुई सड़कों की परवाह नहीं है। ऐसा लग रहा है कि नगर निगम, विकास प्राधिकरण और अन्य विभाग शायद किसी और बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।
प्रशासन, नगर-निगम और राज्य सरकार की अनदेखी व नाकामियों के कारण कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर की बारिश में रोमांचित कम चिंतित अधिक करती है। बदरी लगती देख, बादलों को लौट जाने की ही दुआ होती है। कौन सड़कों पर जाम में फंसे, कौन जगह-जगह जलभराव में वाहनों को खींचता घूमे। दोष सारा शहर को बसाने वाली व्यवस्था, सरकार और प्रशासन का है। चूंकि न तो नालों की साफ सफाई की जाती है और न ही जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाती है। हां, वादे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती है। आलम यह रहता है कि हल्की बारिश हुई नहीं कि दिल्ली-एनसीआर में कई इलाके तो टापू बन जाते हैं। इसकी बानगी पिछले सप्ताह कुछ घंटों के लिए दौरा करने आई बारिश में ही हो गई। इससे पहले जुलाई में हुई बारिश में जलभराव के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम समेत आस-पास की अन्य जगहों पर भी करीब दो सौ से अधिक सड़कें धंस गईं थीं। कई लोग हादसे का शिकार भी हुए, लेकिन प्रशासन को इन धंसी हुई सड़कों की परवाह नहीं है। ऐसा लग रहा है कि नगर निगम, विकास प्राधिकरण और अन्य विभाग शायद किसी और बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।
नालों की सफाई न होना बड़ी वजह
एओए फेडरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि बीते चार माह से वे लगातार नगर निगम, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और प्रशासन को पत्र लिखकर नालों की सफाई की मांग कर रहे हैं। पॉलीथिन पर रोक तो लगा दी गई है, लेकिन नालों में फंसी पॉलीथिन को नहीं निकाला गया है। प्रशासन को इस बाबत सूचित किया गया था कि बारिश होते ही शहर डूब जाएगा। बावजूद इसके उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। नालों की सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये बर्बाद होते हैं, पर सूरते हाल वही है।गुरुग्राम में बुरा हाल, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी पड़े हैं खराब
बारिश का पानी सड़कों पर, गलियों में टकराता यूं लाचार सा नाले-नालियों व्यथित हो व्यर्थ बह जाता है। बारिश के जल को अमृत तुल्य माना जाता है तभी तो अंबर से अमृत बरसने जैसी उपमा दी जाती है। लेकिन हम अपनी अव्यवस्थाओं और लापरवाही के कारण इस अमृत को यूं ही व्यर्थ बहने देते हैं। एक तरफ धरा की कोख से जल दोहन कर उसे खाली करने में जुटे हैं दूसरे अंबर से मिलने वाले अमृत को भी यूं व्यर्थ बहा रहे हैं। खास बात यह है कि दिल्ली-एनसीआर में किसी भी राज्य की सरकार और प्रशासन द्वारा वर्षा का जल संचयन करने के वादों में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। लेकिन बारिश होने के बाद हमारे जल संचयन स्रोत सूखे ही होते हैं। हम एक बूंद भी जल नहीं जुटा पाते। हालांकि कुछ पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर जरूर संचयन करते हैं। ये हैं हालातगुरुग्राम शहर की ही बात करें तो हर साल औसतन 600 से 700 एमएम बारिश होती है, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सालों से बंद पड़े होने की वजह से बरसात का सारा पानी नालों और सड़कों पर बह जाता है। गुरुग्राम में मल्टी नेशनल कंपनियों और उद्योगों के दिनोंदिन बढऩे से पानी की खपत भी बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा शहर में पेयजल आपूर्ति की जा रही है, बावजूद इसके गर्मी में पानी की खपत बढऩे से पानी की भारी किल्लत हो जाती है। इस साल अच्छी बारिश की संभावना है, लेकिन अभी तक हुई बारिश से एक बूंद भी जुटाने में हम असफल ही साबित हुए हैं। ये है स्थिति-600-700 एमएम बारिश होती है गुरुग्राम में प्रतिवर्ष, औसतन -घरों की छत पर पानी को किया जा सकता है स्टोर-100 से ज्यादा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नगर निगम क्षेत्र में हैं स्थित -रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम खराब होने से व्यर्थ बह रहा है वर्षा जल- 25 लाख से ज्यादा है आबादी (अस्थाई आबादी शामिल) -37 गांवों में सिर्फ ट्यूबवेल से हो रही पेयजल आपूर्ति, सूखने लगा है भूजलतीन दशक पहले सब ठीक था
आज से 30-40 वर्ष पहले तक न तो नाले ओवरफ्लो करते थे और न ही सड़क पर जल भराव की समस्या होती थी। बारिश के बाद आसानी से पानी नीचे की ओर उतर जाता था। अब नालों को पाट कर लोगों ने उस पर कब्जा कर लिया है। जिससे पानी नीचे नहीं जा पाता और बारिश में वेग के साथ पानी बढ़ता है। इससे वह मजबूत से मजबूत इमारत तक को ढहा देता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।एओए फेडरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि बीते चार माह से वे लगातार नगर निगम, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और प्रशासन को पत्र लिखकर नालों की सफाई की मांग कर रहे हैं। पॉलीथिन पर रोक तो लगा दी गई है, लेकिन नालों में फंसी पॉलीथिन को नहीं निकाला गया है। प्रशासन को इस बाबत सूचित किया गया था कि बारिश होते ही शहर डूब जाएगा। बावजूद इसके उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। नालों की सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये बर्बाद होते हैं, पर सूरते हाल वही है।गुरुग्राम में बुरा हाल, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी पड़े हैं खराब
बारिश का पानी सड़कों पर, गलियों में टकराता यूं लाचार सा नाले-नालियों व्यथित हो व्यर्थ बह जाता है। बारिश के जल को अमृत तुल्य माना जाता है तभी तो अंबर से अमृत बरसने जैसी उपमा दी जाती है। लेकिन हम अपनी अव्यवस्थाओं और लापरवाही के कारण इस अमृत को यूं ही व्यर्थ बहने देते हैं। एक तरफ धरा की कोख से जल दोहन कर उसे खाली करने में जुटे हैं दूसरे अंबर से मिलने वाले अमृत को भी यूं व्यर्थ बहा रहे हैं। खास बात यह है कि दिल्ली-एनसीआर में किसी भी राज्य की सरकार और प्रशासन द्वारा वर्षा का जल संचयन करने के वादों में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। लेकिन बारिश होने के बाद हमारे जल संचयन स्रोत सूखे ही होते हैं। हम एक बूंद भी जल नहीं जुटा पाते। हालांकि कुछ पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर जरूर संचयन करते हैं। ये हैं हालातगुरुग्राम शहर की ही बात करें तो हर साल औसतन 600 से 700 एमएम बारिश होती है, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सालों से बंद पड़े होने की वजह से बरसात का सारा पानी नालों और सड़कों पर बह जाता है। गुरुग्राम में मल्टी नेशनल कंपनियों और उद्योगों के दिनोंदिन बढऩे से पानी की खपत भी बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा शहर में पेयजल आपूर्ति की जा रही है, बावजूद इसके गर्मी में पानी की खपत बढऩे से पानी की भारी किल्लत हो जाती है। इस साल अच्छी बारिश की संभावना है, लेकिन अभी तक हुई बारिश से एक बूंद भी जुटाने में हम असफल ही साबित हुए हैं। ये है स्थिति-600-700 एमएम बारिश होती है गुरुग्राम में प्रतिवर्ष, औसतन -घरों की छत पर पानी को किया जा सकता है स्टोर-100 से ज्यादा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नगर निगम क्षेत्र में हैं स्थित -रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम खराब होने से व्यर्थ बह रहा है वर्षा जल- 25 लाख से ज्यादा है आबादी (अस्थाई आबादी शामिल) -37 गांवों में सिर्फ ट्यूबवेल से हो रही पेयजल आपूर्ति, सूखने लगा है भूजलतीन दशक पहले सब ठीक था
आज से 30-40 वर्ष पहले तक न तो नाले ओवरफ्लो करते थे और न ही सड़क पर जल भराव की समस्या होती थी। बारिश के बाद आसानी से पानी नीचे की ओर उतर जाता था। अब नालों को पाट कर लोगों ने उस पर कब्जा कर लिया है। जिससे पानी नीचे नहीं जा पाता और बारिश में वेग के साथ पानी बढ़ता है। इससे वह मजबूत से मजबूत इमारत तक को ढहा देता है।