घर पर छात्र करते रहे इंतजार, डाकघर में चूहे कुतरते रहे किताब
इग्नू (इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी) से ओपन से पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों की दिन और रातें इस इंतजार में कट रही हैं कि कब विश्वविद्यालय से उनकी किताबें आएंगी और वह पढ़ाई शुरु करें। लेकिन जिन किताबों से बच्चों
By JagranEdited By: Updated: Tue, 28 Aug 2018 07:26 PM (IST)
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जागरण विशेष लापरवाही - विश्वविद्यालय ने भेजी, गोकलपुरी स्थित डाकघर में पड़ी रह गई - पिछले सत्र में भेजी गई थीं, अब इसके बारे में कोई नहीं दे पा रहा जानकारी रितु राणा, पूर्वी दिल्ली
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और गोकलपुरी स्थित डाकघर की बड़ी लापरवाही सामने आई है। पिछले सत्र में ही विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों को भेजी गई किताबें डाकघर में पड़ी रह गई। करीब आधा दर्जन कॉर्टन में पड़ी किताबों में से अधिकतर को चूहों ने कुतर डाला है। इन किताबों के बारे में न तो ठीक से डाकघर के अधिकारी ही कुछ बता पा रहे हैं और न ही विश्वविद्यालय के पास ही कोई जवाब है। फिलहाल, विश्वविद्यालय ने डाकघर को नोटिस जारी कर किताबों के बारे में जानकारी मांगी है।
इग्नू में प्रवेश लेने के बाद छात्रों को बताया जाता है कि उनके कोर्स की किताबें एक से डेढ़ माह में उन्हें भेज दी जाएंगी। मगर, कभी विश्वविद्यालय तो कभी डाकघर की लापरवाही के कारण छात्रों को किताबें नहीं मिल पातीं। परेशान विद्यार्थी कभी नजदीकी डाकघर के चक्कर काटते हैं तो कभी राजघाट स्थित इग्नू जाकर पूछताछ करते हैं। कहीं भी उन्हें ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। विश्वविद्यालय से कहा जाता है कि आपकी किताबें पोस्ट कर दी गई हैं वहीं डाकघर से कहा जाता है कि आपके लिए कोई किताब नहीं आई है। कई छात्रों का तो इसी तरह पूरा सत्र निकल जाता है। विश्वविद्यालय और डाकघर की लापरवाही का खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है जिन्हें रुपये देने के बाद भी उनकी किताबें नहीं मिलतीं। इस हालत में कुछ छात्र पुन: किताबें खरीदकर पढ़ते हैं तो कुछ किसी से मांगकर। गोकलपुरी स्थित डाकघर में विभिन्न कोर्स की ऐसी ही सैकड़ों किताबें पड़ी हुई हैं जो विश्वविद्यालय से भेजी तो गई लेकिन छात्रों तक नहीं पहुंचाई गई।
डाकघर में आधा दर्जन कॉर्टन ऐसे पड़े हैं जिनमें किताबें भरी पड़ी हैं। इनमें से अधिकतर किताबों को चूहों ने कुतर डाला है। कुछ ही किताबें ठीक हालत में हैं। यह पता करने की कोशिश की गई कि ये किताबें कब यहां आई लेकिन इस बारे में ठीक से कोई जानकारी नहीं दे पाया। हां, डाकघर से इतनी जानकारी जरूर मिली कि एक साल से यहां कोई किताब नहीं आई। इसका मतलब है कि ये किताबें पिछले साल जिन छात्रों को भेजी गई थीं, उनका अब सत्र भी पूरा हो चुका है। उनमें से कुछ छात्र अगले वर्ष में जा चुके होंगे तो कुछ का कोर्स पूरा हो चुका होगा लेकिन इस बीच इन किताबों या उन छात्रों की चिंता न तो डाकघर को और न ही विश्वविद्यालय को ही हुई। --------
बच्चों को देर से किताबें मिलने से पढ़ाई का काफी नुकसान होता है। किताबें नहीं मिल पाने की स्थिति में तो कहना ही क्या है। इसका असर छात्रों के परीक्षा परिणाम पर भी पड़ता है। विश्वविद्यालय और डाकघर को इस मामले में संवेदनशील व गंभीर होना चाहिए। - डॉ. अल्का शर्मा, शिक्षा विशेषज्ञ ---------- हमारे यहां एक साल से इग्नू की किताबें नहीं आ रही हैं। छात्रों को किताबे झिलमिल स्थित मुख्य डाकघर से बच्चों के पास भेजी जाती हैं। कभी कुछ किताबें आ भी जाती हैं तो हम उसे झिलमिल भेज देते हैं। अजीत ¨सह, पोस्ट मास्टर, गोकलपुरी डाकघर --- इग्नू से डाक द्वारा छात्रों को किताबें भेजी जाती हैं। किताबें एक से दो महीने में छात्रों के पास पहुंच जानी चाहिए। यह डाकघर की जिम्मेदारी है कि किताबें समय से छात्रों को मिल जाएं। कभी-कभी छात्रों का पता नहीं मिलने पर डाकघर से किताबें विश्वविद्यालय को वापस भी आ जाती हैं। डाकघर में किताबें पड़ी रह जाने व चूहों द्वारा नष्ट किए जाने के संबंध में पोस्ट ऑफिस को नोटिस भेजकर जवाब मांगा गया है। - राजेश शर्मा, इग्नू विश्वविद्यालय, पीआरओ
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