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दिल्ली नहीं बनेगी गैस चैंबर, क्षेत्र व प्रदूषण के हिसाब से बनेगा एक्शन प्लान

सर्दियों में प्रदूषण बढ़ाने वाले कारकों का किया गया अध्ययन। 15 सितंबर तक एजेंसियों को प्रदूषण से निपटने के लिए एक्शन प्लान भेजने का दिया गया है समय।

By Amit SinghEdited By: Updated: Thu, 30 Aug 2018 06:38 PM (IST)
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दिल्ली नहीं बनेगी गैस चैंबर, क्षेत्र व प्रदूषण के हिसाब से बनेगा एक्शन प्लान
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। इन सर्दियों में प्रदूषण पर कड़ा प्रहार करने के लिए दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों का अलग-अलग एक्शन प्लान होगा। दरअसल, विभिन्न क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की वजह भी अलग-अलग ही सामने आई हैं। लिहाजा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने तमाम क्षेत्रों के प्रदूषण का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट को स्थानीय निकायों को भेजकर इससे निपटने का कारगर एक्शन प्लान मांगा गया है। सीपीसीबी ने एक्शन प्लान भेजने की समय सीमा 15 सितंबर तय की है, ताकि उसकी खामियां समय रहते दूर कर ली जाएं।

रिपोर्ट में सर्दियों में प्रदूषण बढ़ाने वाले तमाम कारकों का विस्तृत अध्ययन किया गया है। हर माह रिपोर्ट को अपडेट किया जा रहा है। यह रिपोर्ट तीनों नगर निगमों, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली पुलिस, जल बोर्ड और लोक निर्माण विभाग आदि को भेज दी गई है। इसमें विस्तार से बताया गया है कि किस जगह निर्माण गतिविधियों की धूल से प्रदूषण है, कहां प्रदूषण की वजह खुले में कचरा जलाना है। कहां जाम से और कहां औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषण फैलता है।

विभिन्न एरिया में प्रदूषण

1. आनंद विहार में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 10 प्रदूषण की बड़ी वजह है। फरवरी 2018 में आनंद विहार में इसकी मात्रा 419 एमजीसीएम (माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) और द्वारका में 422 एमजीसीएम थी। इन दोनों जगहों पर धूल को प्रदूषण की प्रमुख वजह बताया गया है। सड़कों की धूल, निर्माण और तोड़फोड़ संबंधी कार्यो को बड़ा कारण माना गया है। दक्षिणी निगम को इन तीनों वजहों को ध्यान में रखते हुए एक्शन प्लान तैयार करने को कहा गया है।

2. पंजाबी बाग, सोनिया विहार, विवेक विहार, अशोक विहार, बवाना, जहांगीरपुरी, डॉ. कर्णी सिंह स्टेडियम, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, पटपड़गंज और नरेला में पीएम 2.5 को प्रदूषण की मुख्य वजह माना गया है। यहां पर भी सड़क की धूल, औद्योगिक कचरा, जाम, खुले में कचरा जलाना इत्यादि को ध्यान में रखकर ही एक्शन प्लान बनाया जाएगा।

3. लोधी रोड क्षेत्र में प्रदूषण अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है। पीएम 10 का स्तर यहां 250 एमजीसीएम से कम दर्ज किया गया है। ऐसे में यहां सड़क की धूल को खासतौर पर नियंत्रित करने के लिए कहा गया है। इसे ही ध्यान में रखकर पानी के छिड़काव और सफाई के लिए अधिक संख्या में मशीनों का प्रयोग करने को कहा गया है

राह में रोड़ा बने महंगे उपकरण

वायु गुणवत्ता ठीक करने के लिए सरकार ने नए सिरे से निगरानी तंत्र को मजबूत बनाने की पहल की है। गुणवत्ता को मापने के लिए सटीक और सस्ते उपकरणों की खोज में वह जुट गई है। सरकार ने इसे लेकर सभी आइआइटी और वायु प्रदूषण पर काम कर रहे संस्थानों से मदद मांगी है। मौजूदा समय में हवा की गुणवत्ता को जांचने वाले उपकरण काफी महंगे हैं। साथ ही इनकी शहरों में संख्या भी सीमित है।

सरकार की कोशिशों से साफ है कि उसकी वायु प्रदूषण से निपटने की अब तक कोशिशें हवा हवाई ही थीं, क्योंकि मंत्रालय के पास जब इसकी कोई सटीक जानकारी ही नहीं थी तो वह किस आधार पर प्रदूषण कम होने का दावा करती रही है। स्थिति यह है कि दिल्ली जैसे शहर में हवा की गुणवत्ता को मापने के लिए सिर्फ पांच से छह स्टेशन हैं। देश के दूसरे शहरों में तो वायु प्रदूषण को मापने के लिए सिर्फ एक ही स्टेशन है।

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार ने निगरानी तंत्र को मजबूत बनाने को लेकर बड़ी पहल की है। इसके तहत प्रत्येक शहर में हवा की गुणवत्ता की सटीक निगरानी की जानी है। मौजूद समय में जो उपकरण प्रचलन में हैं, उनकी लागत करोड़ों में है। ऐसे में मंत्रालय की कोशिश है कि वह संस्थानों की मदद से कोई ऐसा उपकरण तैयार कराए, जिससे इसकी लागत एक लाख या उससे कम हो जाए। बुधवार को इसे लेकर दिल्ली में एक कार्यशाला भी आयोजित की गई जिसमें देशभर के वैज्ञानिकों और शोधार्थियों ने हिस्सा लिया।

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