गांवों में बढ़ा प्रदूषण तो ग्रामीण चले शहर की ओर
गांवों में बढ़ा प्रदूषण तो ग्रामीण चले शहर की ओर जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली: शुद्ध वायु में सांस लेने के लिए लोग शहरों से गांवों की तर
जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली: शुद्ध वायु में सांस लेने के लिए लोग शहरों से गांवों की तरफ जाते हैं मगर दिल्ली के गांवों में प्रदूषण बढ़ने के कारण लोग शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन कर रहे हैं। यह कड़वा सच है बवाना ओर उसके आसपास के गांवों का। बवाना की अनधिकृत कॉलोनियों में चल रहे कारखानों और कूड़े से बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्र से बवाना और आसपास के गांवों में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है।
करीब 20 वर्ष पहले जब बवाना में औद्योगिक क्षेत्र का विकास कार्य शुरू हुआ तब सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया गया था कि बवाना में प्रदूषण फैलाने वाली एक भी औद्योगिक इकाई नहीं लगाई जाएगी, मगर आज बवाना औद्योगिक क्षेत्र के आसपास अनधिकृत कॉलोनियों में ऐसी औद्योगिक इकाइयां कार्यरत हैं जिनसे भयानक काला धुआं और जहरीली गैसें निकलती हैं। बहुत सी औद्योगिक इकाइयों में कोयला, डीजल, लकड़ी व वाहनों में इस्तेमाल किया हुआ इंजन आयल भट्टियों में सीधा जलाया जाता है जिसकी वजह से क्षेत्र में जगह-जगह काले धुएं के गुबार उठते नजर आते हैं।
इसी प्रकार नगर निगम की ओर से कूड़े से बिजली उत्पादन करने वाले संयंत्र की चिमनी से भी भयानक दुर्गंधयुक्त धुआं भारी मात्रा में निकलता है। जब हवा का बहाव तेज होता है तो धुआं ऊपर उठने के बजाय आसपास के इलाके में फैल जाता है और वातावरण में घुटन का आभास होने लगता है। आंखों और गले में जलन महसूस होने लगती है। इससे क्षेत्र के लोगों में श्वांस संबंधी बीमारियां जैसे दमा, खांसी या गले में खराश तथा कैंसर तक का प्रकोप बहुत बढ़ गया है। जब हवा का रुख पूर्व से पश्चिम की तरफ होता है तो बवाना दरियापुर, नांगल ठाकरान व बाजितपुर इत्यादि गांव में धुआं और दुर्गध फैल जाती है। हवा जब पश्चिम से पूर्व की दिशा में चलती है तो खेड़ा, होलंबी व नया बांस आदि गांवों का भी यही हाल होता है। औद्योगिक इकाइयों व कूड़े से बिजली बनाने वाले विद्युत संयंत्र से प्रदूषण और बदबू तो फैलती ही है। इसके साथ ही प्राकृतिक गैस से विद्युत उत्पादन करने वाले संयंत्र की गर्मी तथा औद्योगिक इकाइयों से क्षेत्र में निकलने वाली रासायनिक गैसों की वजह से कृषि लागत में वृद्धि होने के साथ ही उत्पादन में कमी होती जा रही है, जिससे कृषि कार्य घाटे का सौदा हो गया है।
इन्हीं कारणों से गांव के नौकरीपेशा या आर्थिक रूप से संपन्न लोग गांव छोड़कर पास के रोहणी या शहर के अन्य इलाकों में पलायन करने लगे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोग व खेती-बाड़ी या पशुपालन के कार्य से जुड़े किसान और मजदूर इस दुर्गंध और प्रदूषित वातावरण में रहने को मजबूर हैं।
------------------
इस बारे में दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को गंभीरता से सोचना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। अब शहरी क्षेत्रों से ज्यादा प्रदूषण तो गांवों में है। सरकार ने शहरों का कूड़ा कचरा देहात में ले जाकर डाल दिया है।
-हरि प्रकाश सहरावत, निवासी बवाना गांव।