बाल तस्करी रोकने के लिए 12वीं तक मुफ्त शिक्षा पर जोर
-कांस्टीट्यूशन क्लब में कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन -वक्ताओं ने
By JagranEdited By: Updated: Wed, 26 Sep 2018 11:00 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) की ओर से कांस्टीट्यूशन क्लब में देश में बढ़ते बाल तस्करी मामलों को लेकर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने बाल तस्करी में बढ़ोतरी पर चिंता जताते हुए 12वीं तक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य किए जाने पर जोर दिया। यह सेमिनार दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के सहयोग से आयोजित था।
इस अवसर पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के उस आंकड़े पर चिंता जताई, जिसमें वर्ष 2015 के मुकाबले वर्ष 2016 में बाल तस्करी में 131 फीसद का इजाफा हुआ है। वर्ष 2015 में जहां बाल तस्करी के 3905 मामले सामने आए थे, वहीं वर्ष 2016 में 9034 मामले दर्ज किए गए थे। उन्होंने कहा कि इसमें पुलिस प्रशासन के अलावा अशिक्षा भी बड़ा कारण है। देश में 18 साल से कम उम्र की 40 फीसद लड़किया और 35 फीसद लड़के शिक्षा-व्यवस्था से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं वे बाल दुर्व्यवहार के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में कम से कम 15-18 वर्ष की लड़कियों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की जरूरत को राज्यों को समझना होगा।
सम्मेलन में बाल तस्करी से संबंधित मौजूदा कानूनों, विधायी ढाचा और पुनर्वास प्रक्रिया में आनी वाली चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया गया। डीएलएसए की विशेष सचिव गीताजलि गोयल ने कहा कि डीएलएसए बाल तस्करी के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए केएससीएफ के साथ मिलकर काम करता रहा है। हम इस अपराध को रोकने और उससे बच्चों की सुरक्षा करने और उन्हें शिक्षित करने के मॉड्यूल पर काम कर रहे हैं।
मानव व्यवहार व संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ. निमेश देसाई ने कहा कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों का पुनर्वास एक छोटी अवधि के लिए होना चाहिए और फिर बच्चों को उनके परिवार से मिलाना चाहिए। तस्करों के चंगुल से बच्चों को बचाने के बाद उनका मानसिक स्वास्थ्य और उनकी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्याएं एक बड़ी चिंता है। इस स्थिति में ऐसे बच्चों को आराम के साथ-साथ सामाजिक सहायता की भी जरूरत होती है।
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