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जयंती पर विशेषः शहीद-ए-आजम भगत सिंह दिल्ली से सटे इस शहर में बनाते थे बम

नोएडा के नलगढ़ा गांव में बिखरी निशानियां आज भी इसकी गवाही देतीं हैं। असेंबली पर फेंका गया बम भी यहीं बनाया गया था।

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 28 Sep 2018 08:36 AM (IST)
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जयंती पर विशेषः शहीद-ए-आजम भगत सिंह दिल्ली से सटे इस शहर में बनाते थे बम
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हंसते-हंसते देश पर अपनी जान न्योछावर कर देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की आज (28 सितंबर) को जयंती है। भगत सिंह ने अपनी मां की ममता से ज्यादा तवज्जो भारत मां के प्रति अपने प्रेम को दी थी। ...और 23 मार्च, 1931 को जब उनकी उम्र मात्र 23 साल, 5 मास व 25 दिन थी उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में राजगुरु व सुखदेव के साथ सायं 7.33 बजे फांसी पर लटका दिया गया था।

नोएडा के नलगढ़ा में बना था असेंबली में फेंका गया बम
देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले क्रांतिकारियों ने नोएडा के नलगढ़ा गांव को अपना ठिकाना बनाया था। इनमें सरदार भगत सिंह भी थे। दिल्ली के नजदीक होने के कारण इस गांव में बना विजय सिंह पथिक आश्रम आजादी के दीवानों के लिए महफूज जगह बन गया था। अंग्रेज सेना पर हमला करने के बाद क्रांतिकारी यहां आसानी से छिप जाते थे। बीहड़ क्षेत्र होने की वजह से अंग्रेज सेना का यहां पहुंचना संभव नहीं था। शहीद भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद आश्रम में बम बनाते थे। गांव में बिखरी निशानियां आज भी इसकी गवाही देतीं हैं। असेंबली पर फेंका गया बम भी यहीं बनाया गया था।

नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे के किनारे बसा नलगढ़ा गांव  पहले हरनंदी (हिंडन) और यमुना नदी के बीच में पड़ता था। दोनों नदियों के बांध बन जाने के कारण अब यहां पहुंचना आसान हो गया है, लेकिन पहले नदी के पानी के बीच और घने जंगल से होकर गांव में पहुंचना पड़ता था। पेड़ों से घिरा होने के कारण गांव की पहचान करना आसान भी नहीं था। यहां शहीद विजय सिंह पथिक का बड़ा आश्रम था। वह गांवों के नौजवानों को आजादी की लड़ाई का आश्रम में प्रशिक्षण देते थे। इसका देश के अन्य क्रांतिकारियों ने भी फायदा उठाया।

नलगढ़ा में भगत सिंह ने ली थी पनाह

चंद्रशेखर आजाद, राज गुरु, सुखदेव व भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों ने भी यहां पनाह ली थी। एक तरफ अंग्रेजों की गुलामी से देश को मुक्त कराने के लिए महात्मा गांधी अहिंसा के रास्ते पर चलकर अंग्रेजों के लिए परेशानी की वजह बन रहे थे। वहीं भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारी अंग्रेज सेनाओं पर लगातार हमले कर उनके दांत खट्टे कर रहे थे।

अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने दिल्ली के नजदीक होने के कारण नलगढ़ा को अपना ठिकाना चुना था। वह यहां तीन वर्ष तक छिपकर रहे। अंग्रेज सेना पर हमला करने की रणनीति बनाने के अलावा आंदोलन को सही रास्ता देने के लिए भी योजना बनाते थे।

ग्रामीणों का कहना है कि क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से छिपकर आंदोलन का आगे बढ़ाने के लिए सूनसान जगह की तलाश थी। भगत सिंह ने इसके लिए बागपत के नवाब के वकील बाबू बृज बिहारी लाल से इस तरह की जगह के बारे में जानकारी ली थी। उन्होंने विजय सिंह पथिक के आश्रम में रहने का सुझाव दिया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद समेत उनके सात साथियों ने यहां ठिकाना बनाया। स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र विकल व पंडित कालीचरण उनके लिए गांवों से खाना लाते थे।

विजय सिंह पथिक के पास अच्छी नस्ल के घोड़े थे। क्रांतिकारी इन पर सवार होकर अपनी मंजिल तक पहुंचते थे। बारूद से बम भी बनाए जाते थे। ट्रेन में सफर कर रहे अंग्रेज वायसराय को मारने की योजना भी नलगढ़ा गांव के जंगलों में बनी थी। लेकिन हमले के वक्त दूसरी बोगी में होने के कारण वह बच गया। इस घटना के बाद अंग्रेजी सेना को क्रांतिकारियों के नलगढ़ा में छिपने की जानकारी मिली।

इसके बाद नलगढ़ा गांव की घेराबंदी कर क्रांतिकारियों को पकड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन वह अंग्रेज सेना को चकमा देकर भाग निकले। बम बनाने के लिए बारूद व अन्य सामग्रियों को जिस पत्थर पर रखकर मिलाया जाता था। वह ऐतिहासिक पत्थर आज भी गांव में मौजूद है। पत्थर में दो गढ्ढे हैं, जिसमें बारूद को मिलाया जाता था। इन निशानियों को ग्रामीणों ने सहेज कर रखा है।

इतिहासकार डा. रामदेव पी कथुरिया के मुताबिक, दिल्ली के नजदीक होने के कारण नलगढ़ा क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया था। घने जंगल हरनंदी और यमुना नदी के कारण सभी के लिए यहां पहुंचना संभव भी नहीं था। इसी का क्रांतिकारियों ने फायदा उठाया। 

शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिला (फैसलाबाद, पाक) के बंगा गांव में हुआ। इनके पूर्वजों का जन्म पंजाब के नवांशहर के समीप खटकड़कलां गांव में हुआ था। खटकड़कलां इनका पैतृक गांव है।

फांसी से पहले साथियों को लिखे अंतिम पत्र में भगत सिंह ने क्या-क्या कहा था

'तुम्हें जिबह करने की खुशी है और मुझे मरने का शौक, मेरी भी वही ख्वाहिश है, जो मेरे सैयाद की है'। अपने साथियों राजगुरु व सुखदेव के साथ 23 मार्च-1931 के दिन शहादत देने से पूर्व शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ने इन पंक्तियों के जरिए भरी जवानी में वतन पर मर मिटने के लिए तैयार होने का संदेश दिया था।

लाहौर जेल में रहते हुए शहीद-ए-आजम ने 12 सितंबर 1929 से एक डायरी लिखनी शुरू की थी और शहादत से अंतिम दिन पूर्व 22 मार्च 1931 तक डायरी लिखी थी।

अंग्रेजी व उर्दू में लिखी गई यह मूल डायरी भगत सिंह के प्रपौत्र यादविंदर सिंह संधू (भगत सिंह के भाई कुलविंदर सिंह के प्रपौत्र) के पास अमूल्य धरोहर के रूप में सुरक्षित है और पिछले सालों में उन्होंने इस डायरी के पन्नों की स्कैन प्रतियों के साथ-साथ अंग्रेजी में अनुवाद कराया था और इसे रिलीज कराया था।

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। यह कोई सामान्य दिन नहीं था, बल्कि इसे भारतीय इतिहास में गौरवमयी दिन के रूप में जाना जाता है। अविभाजित भारत की जमीं पर एक ऐसे शख्स का जन्म हुआ जो शायद इतिहास लिखने के लिए ही पैदा हुआ था। जिला लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के गांव बावली में क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। भगत सिंह को जब ये समझ में आने लगा कि उनकी आजादी घर की चारदीवारी तक ही सीमित है तो उन्हें दुख हुआ। वो बार-बार कहा करते थे कि अंग्रजों से आजादी पाने के लिए हमें याचना की जगह रण करना होगा।

भगत सिंह की सोच उस समय पूरी तरह बदल गई, जिस समय जलियांवाला बाग कांड (13 अप्रैल 1919) हुआ था। बताया जाता है कि अंग्रेजों द्वारा किए गए कत्लेआम से वो इस हद तक व्यथित हो गए कि पीड़ितों का दर्द बांटने के लिए 12 मील पैदल चलकर जलियांवाला पहुंचे। भगत सिंह के बगावती सुरों से अंग्रेजी सरकार में घबराहट थी। अंग्रेजी सरकार भगत सिंह से छुटकारा पाने की जुगत में जुट गई। आखिर अंग्रेजों को सांडर्स हत्याकांड में वो मौका मिल गया। भगत सिंह और उनके साथियों पर मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

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