लूट के बाद हत्या के दोषियों को राहत नहीं
वर्ष 2010 में एक व्यक्ति की लूटपाट के बाद की गई हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती देने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आइएस मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने तथ्यों व साक्ष्य से वारदात को साबित किया है। वहीं दूसरा पक्ष खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ सुबूत पेश नहीं कर सका। ऐसे में निचली अदालत द्वारा दोषियों मोहम्मद आलम व मोहम्मद इखलाक को सुनाई गई सजा को बरकरार रखा जाता है। निचली अदालत ने मोहम्मद आलम और मोहम्मद इखलाक को दस-दस साल कठोर कारावास और पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : वर्ष 2010 में एक व्यक्ति की लूटपाट के बाद की गई हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को चुनौती देने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आइएस मेहता की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने तथ्यों व साक्ष्य से वारदात को साबित किया है। वहीं दूसरा पक्ष खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ सुबूत पेश नहीं कर सका। ऐसे में निचली अदालत द्वारा दोषियों मोहम्मद आलम व मोहम्मद इखलाक को सुनाई गई सजा को बरकरार रखा जाता है। निचली अदालत ने मोहम्मद आलम और मोहम्मद इखलाक को दस-दस साल कठोर कारावास और पांच-पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। हाई कोर्ट ने दोनों को सीआरपीसी की धारा 428 के तहत जेल में काटी गई सजा में राहत दी है।
याचिका के अनुसार, मार्च 2010 में शालीमार थाना पुलिस को हैदरपुर रेलवे लाइन के पास एक युवक का शव मिला था। मृतक की पहचान सतीश के रूप में हुई थी। जांच के बाद पुलिस ने मोहम्मद आलम, मोहम्मद इखलाक व एक नाबालिग को गिरफ्तार किया था। साथ ही उनके पास से मोबाइल समेत अन्य सुबूत जुटाए थे। याचिका के अनुसार, लूटपाट के दौरान मृतक सतीश की हत्या की गई थी। पुलिस ने जब दोषी मोहम्मद इखलाक को गिरफ्तार किया था तो उसने एक काली पैंट पहनी थी। पूछताछ में पता चला था कि हत्या के बाद वह मृतक की पैंट ले गया था। पुलिस ने उसकी निशानदेही पर रेलवे लाइन के पास झाड़ियों से एक पाइप बरामद किया था, जिससे मृतक की पिटाई की गई थी। दोषियों के पास से बरामद हुए मृतक के मोबाइल व कपड़ों की पहचान उसके एक साथी ने की थी।
पीठ ने तथ्यों व सुबूतों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने दोषियों की याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि जिस तरह से मृतक पर हमला किया, उससे नहीं लगता कि अचानक बहस होने पर उस पर हमला किया गया है। दोषियों ने सतीश के देर रात घर वापस लौटने का फायदा उठाया और उसकी निर्मम तरीके से हत्या कर दी। याचिकाकर्ता अपने बचाव में कोई तथ्य या सुबूत पेश नहीं कर सके। ऐसे में दोषियों को राहत देने का कोई आधार नहीं है।