ZOO ने कहा पराली न जलाएं, जानवरों को है जरूरत, JNU व IIT ने खोजी नई तकनीक
जेएनयू व आइआइटी दिल्ली ने नई तकनीक के माध्यम से पराली जलाने का विकल्प तलाशा है। उधर चिड़ियाघर ने भी पराली खरीदने की पेशकश की है। इससे किसान पराली को भी आय का स्रोत बना सकते हैं।
By Amit SinghEdited By: Updated: Fri, 26 Oct 2018 04:36 PM (IST)
नई दिल्ली, राहुल मानव। दिल्ली-एनसीआर में पराली के प्रदूषण से सांस लेना दूभर हो जाता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और आइआइटी दिल्ली के छात्र एवं प्रोफेसर ऐसी कई तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिससे पराली के प्रदूषण को रोकने में सहायता मिलेगी। वहीं पराली के प्रदूषण को कम करने के लिए चिड़ियाघर ने भी एक रास्ता निकाला है।
आइआइटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक साइंसेज के प्रोफेसर डॉ. सगनीक डे वायु प्रदूषण पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने वर्ष 2000 से 2017 तक दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण का डाटा जुटाया है। उनका कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में पराली का प्रदूषण वर्ष 2009 के बाद से अक्टूबर से नवंबर के दौरान काफी तेजी से बढ़ा है।
इसकी वजह से पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का स्तर 350 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर (एमजीसीएम) तक दर्ज हो रहा है। वर्ष 2009 से पहले इतना ज्यादा प्रदूषण का स्तर पराली की वजह से दर्ज नहीं होता था। वर्ष 2009 से पहले पीएम 2.5 का स्तर 200 से कम दर्ज होता था।
कोयले की तरह दिखने वाला पदार्थ पराली से किया तैयार
जेएनयू के स्कूल ऑफ एनवायरमेंट साइंसेज के प्रोफेसर और छात्रों ने फसलों के अवशेष से कोयले की तरह दिखने वाला पदार्थ तैयार किया है। ये मिट्टी को 500 साल तक उपजाऊ बनाएगा। प्रोफेसर दिनेश मोहन ने बताया कि पराली से आठ साल की मेहनत से ‘बायोचार’ विकसित किया है। इससे पराली का प्रदूषण पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।ऐसे खत्म होगा पराली और पानी का प्रदूषण
चावल और गेहूं के फसलों के अवशेष जिसे पराली कहते हैं, उसे मिट्टी के एक रिएक्टर में डालेंगे। पराली के साथ थोड़ा कोयला भी डाला जाएगा। इसे 450 डिग्री सेल्सियस के तापमान में 48 से 72 घंटे तक गर्म करेंगे। इससे बायोचार तैयार हो जाएगा। अगर 10 किलो पराली है तो सिर्फ आधा किलो ही कोयला डाला जाता है। किसान इसे खेती में इस्तेमाल कर सकते हैं। बायोचार के जरिये दूषित पानी को भी शुद्ध किया जा सकेगा। दूषित पानी में इस पदार्थ को डालने के बाद यह सारे दूषित बैक्टीरिया सोख लेगा, जिससे पानी पूरी तरह से साफ हो जाएगा।पराली से बन रहीं डिस्पोजेबल प्लेटें व चम्मच
आइआइटी दिल्ली के छात्रों ने एक स्टार्टअप कंपनी शुरू की है। इस कंपनी ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे पराली से डिस्पोजेबल प्लेट बनती है। संस्थान की बॉयोमेडिकल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर नीतू सिंह, टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के छात्र प्राचीर दत्ता व छात्र अंकुर कुमार एवं छात्र कनिका प्रजापत ने दो साल की मेहनत के बाद फसलों के अवशेष से ऐसा पदार्थ तैयार किया है, जिसका इस्तेमाल पेपर, डिस्पोजेबल प्लेट और चम्मच बनाने में किया जा सकता है।छात्रों ने धान की फसल के बेकार हो चुके पानी को गर्म करके और उसमें कुछ केमिकल डालकर पल्प (गीली मिट्टी के गोले की तरह दिखने वाली सामग्री) तैयार किया है। यह पेपर, प्लाइवुड जैसी चीजें बनाने में काम आता है। एक किलो पल्प 45 रुपये में बेचा जा सकता है। प्रोफेसर नीतू सिंह ने बताया कि एक हजार टन चावल की फसल के अवशेष से 600 टन पल्प तैयार किया जा सकता है। छात्र कनिका ने बताया कि अक्टूबर 2018 तक उनके साथ पंजाब और हरियाणा के 30 से ज्यादा किसान जुड़ चुके हैं, जो इस तकनीक को अपनाने जा रहे हैं।
चिड़ियाघर पराली खरीदने को तैयार
दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होती दिल्ली की आबोहवा को देखते हुए चिड़ियाघर ने किसानों से पराली न जलाने की अपील की है। चिड़ियाघर के प्रवक्ता रियाज खान ने कहा कि प्रतिवर्ष कई किसान पंजाब व हरियाणा में पराली को जला देते हैं, जिससे प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी होती है। किसान पराली को जलाने के बजाय हमें दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष चिड़ियाघर को तीन से चार टन पराली की जरूरत पड़ती है, जिसे जानवरों के बाड़े में उन्हें सर्दी से बचाने के लिए रखा जाता है। वहीं, इसका मूल्य भी दिया जाता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।