जिला अस्पताल के कर्मचारी भूले आपातकालीन कोड, आप भी जानें क्या है इनका मतलब
सीएमएस ने बताया कि बच्चा चोरी व आग जैसी घटनाएं होने पर अस्पताल में मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों को उनसे कैसे निपटना होगा, इसकी ट्रेनिंग दी गई गई है। दोबारा ट्रेनिंग कराई जाएगी।
By Edited By: Updated: Sat, 27 Oct 2018 09:21 PM (IST)
नोएडा, मोहम्मद बिलाल। नोएडा के सेक्टर-30 स्थित जिला अस्पताल में तैनात गार्डों और अन्य कर्मचारियों को आपातकालीन समय में लागू होने वाले कोड के बारे में जानकारी नहीं है। वह ये कोड भूल चुके हैं। शुक्रवार को जब दैनिक जागरण संवाददाता ने आपातकालीन समय में लागू होने वाले कोड का रियलिटी चेक किया।
इस दौरान किसी गार्ड ने इस कोड को जांच टेस्ट समझकर पैथोलॉजी लैब में जाने को बोला, तो किसी ने कहा कि इस कोड की सेवा अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। इसीलिए किसी दूसरे निजी अस्पताल जाओ। ये हकीकत तब की है जब अस्पताल में कायाकल्प की टीम निरीक्षण पर थी।आपातकालीन कोड के बारे में जानकारी नहीं होने पर गार्ड तो छोटे मिया निकले, लेकिन इस टेस्ट में अस्पताल के बड़े मिया यानि डॉक्टर, वार्ड ब्वाय, नर्स, लेबर रूम के कर्मी उनसे भी बड़े वाले फिसड्डी साबित हुए। जिन्हें खुद इस इस कोड के बारे में जानकारी नहीं थी।
आपातकालीन में स्थिति में लागू होता है कोड
दरअसल सरकारी अस्पताल से बच्चा चोरी व आग लगने की घटना होने के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक कवायद शुरू की गई थी। इसमें अस्पताल के कर्मियों को विशेष ट्रेनिंग के साथ ही दोनों मामलों की जानकारी अपने सहयोगियों तक पहुंचने के लिए विशेष कोड निर्धारित किए गए है। इसमें कर्मचारियों को घटनाओं पर जल्द से जल्द कार्रवाई व मामलों के निस्तारण के गुर भी बताए जाते है। पिंक कोड पर ये होती है कार्रवाई
आपातकालीन कोड पिंक की सूचना मिलते ही सभी स्टाफ व गार्ड हरकत में आ जाते हैं। इसके बाद मिनटों में सबसे पहले अस्पताल से निकासी के सभी द्वार को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद अस्पताल में बच्चा लेकर टहलने व निकलने की कोशिश करने वालों से पूछताछ के साथ उनका पहचान पत्र चेक किया जाता है। साथ ही अस्पताल के बाथरूम, कूड़ा घर व अन्य छुपाए जा सकने वाले स्थानों की पड़ताल करना होता है। जब अस्पताल में सभी संभावित जगहों को जांच करने के बाद भी बच्चा नहीं मिलता तो इसकी सूचना पुलिस को देनी होती है।
दरअसल सरकारी अस्पताल से बच्चा चोरी व आग लगने की घटना होने के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक कवायद शुरू की गई थी। इसमें अस्पताल के कर्मियों को विशेष ट्रेनिंग के साथ ही दोनों मामलों की जानकारी अपने सहयोगियों तक पहुंचने के लिए विशेष कोड निर्धारित किए गए है। इसमें कर्मचारियों को घटनाओं पर जल्द से जल्द कार्रवाई व मामलों के निस्तारण के गुर भी बताए जाते है। पिंक कोड पर ये होती है कार्रवाई
आपातकालीन कोड पिंक की सूचना मिलते ही सभी स्टाफ व गार्ड हरकत में आ जाते हैं। इसके बाद मिनटों में सबसे पहले अस्पताल से निकासी के सभी द्वार को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद अस्पताल में बच्चा लेकर टहलने व निकलने की कोशिश करने वालों से पूछताछ के साथ उनका पहचान पत्र चेक किया जाता है। साथ ही अस्पताल के बाथरूम, कूड़ा घर व अन्य छुपाए जा सकने वाले स्थानों की पड़ताल करना होता है। जब अस्पताल में सभी संभावित जगहों को जांच करने के बाद भी बच्चा नहीं मिलता तो इसकी सूचना पुलिस को देनी होती है।
रेड कोड का ये है मतलब
आग लगने की घटना होने पर कोड रेड प्रयोग होता है। इसमें आग बुझाने से लेकर मरीजों को अस्पताल व वार्ड से सुरक्षित बाहर निकले जाने के लिए कर्मियों को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। मगर आधे से अधिक स्टाफ, यंत्रों को चलाना नहीं जानते हैं। अस्पताल के कुछ आपातकालीन कोड कोड
ब्लू-हृदयाघात कोड
येलो-बाहरी आपदा कोड
पर्पल-शारीरिक प्रताड़ना कोड
ब्लैक-बम धमकी कोड
ऑरेंज-आपातकालीन निकासीअस्पताल ने मानी गलती, कहा- दोबारा होगी ट्रेनिंग
स्वास्थ्य विभाग के सीएमओ डॉ अनुराग भार्गव का कहना है कि अस्पताल से बच्चा चोरी व आग लगने की घटनाएं होने के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल से निपटने के लिए इन कोड का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें विशेष ट्रे¨नग के साथ ही दोनों मामले की जानकारी अपने सहयोगियों तक पहुंचने के लिए विशेष कोड निर्धारित किए गए हैं। वहीं जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ अजेय अग्रवाल कहते हैं कि बच्चा चोरी व आग जैसी घटनाएं होने पर अस्पताल में मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों को उनसे कैसे निपटना होगा, इसकी ट्रेनिंग दी गई गई है। जल्द इसके लिए एक बार फिर कर्मियों को ट्रेनिंग मुहैया करवाई जाएगी।
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ब्लू-हृदयाघात कोड
येलो-बाहरी आपदा कोड
पर्पल-शारीरिक प्रताड़ना कोड
ब्लैक-बम धमकी कोड
ऑरेंज-आपातकालीन निकासीअस्पताल ने मानी गलती, कहा- दोबारा होगी ट्रेनिंग
स्वास्थ्य विभाग के सीएमओ डॉ अनुराग भार्गव का कहना है कि अस्पताल से बच्चा चोरी व आग लगने की घटनाएं होने के बाद उत्पन्न होने वाले माहौल से निपटने के लिए इन कोड का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें विशेष ट्रे¨नग के साथ ही दोनों मामले की जानकारी अपने सहयोगियों तक पहुंचने के लिए विशेष कोड निर्धारित किए गए हैं। वहीं जिला अस्पताल के सीएमएस डॉ अजेय अग्रवाल कहते हैं कि बच्चा चोरी व आग जैसी घटनाएं होने पर अस्पताल में मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों को उनसे कैसे निपटना होगा, इसकी ट्रेनिंग दी गई गई है। जल्द इसके लिए एक बार फिर कर्मियों को ट्रेनिंग मुहैया करवाई जाएगी।