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उच्च रक्तचाप से बढ़ता है मस्तिष्काघात का खतरा

उच्च रक्तचाप, प्रदूषण, तंबाकू, धूमपान, अनियमित जीवनशैली व मोटापा ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात के सबसे प्रमुख कारण है। एक रिसर्च के मुताबिक देश में 90 फीसद ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात का कारण उच्च रक्तचाप है। नवजात शिशु व युवा वर्ग भी अब इसके शिकार हो रहे है। पहले के दौर में जागरूकता के अभाव के कारण लोगों की इससे मौत हो जाती थी, पर अब इसका इलाज संभव है।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 29 Oct 2018 07:11 PM (IST)
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उच्च रक्तचाप से बढ़ता है मस्तिष्काघात का खतरा

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : उच्च रक्तचाप, प्रदूषण, तंबाकू, धूमपान, अनियमित जीवनशैली व मोटापा ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात के सबसे प्रमुख कारण है। एक रिसर्च के मुताबिक देश में 90 फीसद ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात का कारण उच्च रक्तचाप है। नवजात शिशु व युवा वर्ग भी अब इसके शिकार हो रहे हैं। पहले के दौर में जागरूकता के अभाव के कारण लोगों की इससे मौत हो जाती थी, पर अब इसका इलाज संभव है। जनकपुरी स्थित अतिविशिष्ट अस्पताल में विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान अस्पताल के निदेशक व न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मनमोहन मेहंदीरत्ता ने बताया कि आज के दौर में छोटे से छोटे बच्चे में भी तनाव व अनियमित जीवनशैली देखने को मिलती है। इस कारण उच्च रक्तचाप की समस्या आम हो गई है। कई मामलों में तो लोगों को पता ही नहीं होता कि वे उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हैं और यदि पता भी होता है तो वे लापरवाही वाला रुख अपनाते हैं। इस कारण मस्तिष्क तक जाने वाली नस में खून जमा हो जाता है या वह फट जाती है। डॉ. मेंहदीरत्ता ने बताया कि आमतौर पर ब्रेन स्ट्रोक होने के बाद भी लोग इसका पता नहीं लगा पाते हैं और टाल-मटोल कर देते हैं। इससे समस्या बढ़ जाती है। ब्रेन स्ट्रोक होने पर चेहरे व शरीर के अन्य अंग विरूपित होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को बिना सोचे-समझे तुरंत अस्पताल पहुंचना चाहिए। सिर में काफी दर्द व कमजोरी ब्रेन स्ट्रोक के शुरुआती लक्षण हैं, जिसे कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण रखना अति आवश्यक है। इसके लिए रोजाना खाने में पांच ग्राम से अधिक नामक के सेवन से बचना चाहिए।

इस दौरान कार्डियोलॉजी विभाग से विशेषज्ञ डॉ.पुनीत गुप्ता ने बताया कि हार्ट अटैक के बाद ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात देश में मौत का दूसरा बड़ा कारण है। भारत में करीब आठ करोड़ लोग इससे ग्रस्त हैं। जिन मरीजों की धड़कन ठीक ढंग से कम नहीं करती है तो उनका खून गाढ़ा हो जाता है। हालांकि ऐसे मरीजों को खून पतला करने की दवाइयां दी जाती हैं, पर समय से दवा नहीं लेने पर कभी भी रक्तचाप बढ़ने की स्थिति में खून का थक्का मस्तिष्क की ओर जाने वाली नस में जमा हो जाता है। इस कारण मस्तिष्क तक ऑक्सीजन व खून का उचित संचार नहीं हो पाता है। ब्रेन स्ट्रोक के बाद यदि मरीज छह घंटे के भीतर अस्पताल पहुंच जाएं तो स्टंट के माध्यम से उस स्ट्रोक को खत्म किया जा सकता है। मस्तिष्काघात में नस के फटने के बाद उसे दुरुस्त नहीं किया जा सकता। पैथोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ डॉ. अभीजीत दास ने बताया कि सीटी-स्कैन, एमआरआइ, खून जांच इत्यादि से ब्रेन स्ट्रोक व मस्तिष्काघात का पता लगाया जा सकता है। वहीं न्यूरो-रिहबिलेशन विभाग से डॉ.प्रवींद्र ¨सह ने बताया कि मस्तिष्काघात के बाद शरीर के कुछ हिस्सा लकवे का शिकार हो जाते हैं, ऐसे मरीजों की ¨जदगी को बेहतर बनाने के लिए रिहबिलेंशन विभाग में उन्हें विभिन्न मशीनों व कसरत के माध्यम से काफी हद तक ठीक करने की कोशिश की जाती है। इसके अलावा डाइटिशियन फाएजा नाज ने बताया कि मस्तिष्काघात के मरीजों को भूख कम लगती है और उन्हें खाने में तकलीफ होती है। इस कारण शरीर को सभी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को खाने में विभिन्नता लाने की जरूरत है। मरीज को खाने में हरी सब्जियां, साबुत अनाज, प्रोटीन, फाइबर, ओमेगा-3, एंटीऑक्सीडेंट, पोटेशियम व फैट को शामिल करना चाहिए। इस अवसर पर क्षेत्रीय विधायक राजेश ऋषि, अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशोक, न्यूरोलॉजिस्ट विभाग से डॉ. योगेश समेत, डॉ. नितिन शाक्य समेत कई अन्य चिकित्सक भी मौजूद थे। कार्यक्रम के अंत में मरीजों ने चिकित्सकों के समक्ष अपनी समस्याओं को रखा।

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