घर के भीतर जलाते हैं धूप व अगरबत्ती तो हो जाएं सावधान, CPCB ने भी जताई चिंता
इस समय ज्यादातर धूप-अगरबत्ती सिंथेटिक एवं केमिकल के इस्तेमाल से बनाई जा रही हैं। अगरबत्ती में लकड़ी का प्रयोग भी किया जा रहा है। ऐसे में प्रदूषण की एक वजह यह भी है।
By Edited By: Updated: Tue, 30 Oct 2018 11:43 AM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। घरों से लेकर मंदिरों तक इस्तेमाल होने वाली कुछ पूजा सामग्रियां भी प्रदूषण का कारण बन रही हैं। धूप और अगरबत्ती के धुएं से जहरीली गैसें निकल रही हैं जो हर उम्र के लोगों के श्वसन तंत्र को प्रभावित कर रही हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) पैनल व केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस पर चिंता जताई है।
जानकारी के मुताबिक, पुराने जमाने में धूप बनाने में चंदन सहित कुछ अन्य आर्गेनिक तत्वों का उपयोग किया जाता था। मगर, इस समय ज्यादातर धूप-अगरबत्ती सिंथेटिक एवं केमिकल के इस्तेमाल से बनाई जा रही हैं। अगरबत्ती में लकड़ी का प्रयोग भी किया जा रहा है। इन सबके जलने से बैंजीन, कार्बन मोनो ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकल रही हैं।सीपीसीबी पैनल के मुताबिक, यह धुआं श्वसन तंत्र को भी प्रभावित कर रहा है। बच्चों के फेफड़े अपेक्षाकृत नाजुक होते हैं। इस कारण घर में धूप एवं अगरबत्ती के धुएं से इन्हें भी नुकसान पहुंच रहा है। अगरबत्ती व धूप पूजा का हिस्सा है। इसके नुकसान से अनजान लोग आस्था में अगरबत्ती का पूरा गुच्छा या खूब मोटी धूप जलाना पसंद करते हैं। काफी लोग तो घर एवं दुकान की शुद्धि के लिए इससे होने वाला धुआं भी बाहर नहीं निकलने देते। उन्हें लगता है कि इस धुएं से वातावरण शुद्ध हो रहा है, जबकि इससे लोगों को आंखों में जलन, नाक से पानी आने, खांसी, सांस लेने में तकलीफ और एलर्जी आदि की समस्याएं हो रही हैं।
विडंबना यह कि इनके पैकेट पर न तो इनके निर्माण में प्रयोग होने वाली सामग्री और उनकी मात्रा की जानकारी होती है एवं न ही उनसे होने वाले नुकसान की। सीपीसीबी पैनल ने सलाह दिया है कि यदि इन्हें जलाया भी जाए तो बहुत सीमित रूप में और उस दौरान धुआं निकलने के रास्ते भी खुले रखे जाएं।डॉ. टीके जोशी (सलाहकार, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय व सदस्य, सीपीसीबी पैनल) के मुताबिक, विदेशों में भारतीय धूप एवं अगरबत्ती के धुएं पर इस तरह के कई शोध हो चुके हैं। हमारे यहां भी अनेक संस्थान इस पर काम कर रहे हैं। इस दिशा में मंत्रालय की ओर से कुछ दिशा-निर्देश पूर्व में दिए भी गए थे, लेकिन उन पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए सख्त रुख अपनाए जाने की जरूरत है।
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