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हाशिमपुरा नरसंहार : 31 साल बाद 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 19

By JagranEdited By: Updated: Wed, 31 Oct 2018 07:28 PM (IST)
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हाशिमपुरा नरसंहार : 31 साल बाद 16 पीएसी जवानों को उम्रकैद

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश के मेरठ स्थित हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार मामले में हाई कोर्ट ने तीस हजारी कोर्ट के फैसले को पलटते हुए 16 पीएसी जवानों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। बुधवार को न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करने के तीस हजारी अदालत के फैसले को पलट दिया। पीठ ने सभी दोषियों को करीब 38 लोगों की हत्या, अपहरण, साजिश रचने और सुबूतों को मिटाने की धाराओं का दोषी पाया। पीठ ने सभी दोषियों को 22 नवंबर तक या उससे पहले समर्पण करने का आदेश दिया। इस मामले में सभी 16 दोषी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और जमानत पर बाहर हैं, जबकि मुख्य दोषी प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह समेत तीन की मौत हो चुकी है। पीठ ने पीड़ितों के परिवारों को उचित मुआवजा देने का भी आदेश दिया।

गौरतलब है कि याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। बुधवार को न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पीएसी जवानों के खिलाफ पेश किए गए सुबूत सही पाए गए हैं। पीड़ित परिवारों को न्याय पाने के लिए 31 साल तक इंतजार करना पड़ा। पीड़ितों ने जो भी खोया है, उसकी भरपाई इस फैसले से नहीं की जा सकती। निचली अदालत से हुए थे बरी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की जांच दिल्ली में ट्रांसफर की गई थी। इसमें कुल 19 पीएसी जवान आरोपित थे। इसमें 2006 में 17 पर आरोप तय किए गए थे, जबकि दो जवानों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। लंबे समय तक चली सुनवाई के दौरान एक और आरोपित की मौत हो गई थी। तीस हजारी अदालत ने 21 मार्च 2015 को फैसला सुनाते हुए सभी 16 आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। निचली अदालत के फैसले को दी गई थी हाई कोर्ट में चुनौती

निचली अदालत के फैसले को उत्तर प्रदेश सरकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और कुछ अन्य पीड़ितों ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम की भूमिका की जांच करने की मांग को लेकर राज्यसभा सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी याचिका दायर की थी। 22 मई की रात की कहानी

22 मई 1987 की यह एक काली रात थी। इसमें सेना ने जुमे की नमाज के बाद हाशिमपुरा और आसपास के मोहल्लों में तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी अभियान चलाया था। इस बीच सभी पुरुषों व बच्चों को हाशिमपुरा मोहल्ले के बाहर मुख्य सड़क पर एकत्रित कर वहा मौजूद पीएसी के जवानों के हवाले कर दिया गया था। पूरे इलाके से 644 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें हाशिमपुरा के 42 से 45 मुस्लिम युवक भी शामिल थे। इन्हें पीएसी के ट्रक नंबर यूआरयू 1493 पर बैठाया गया था। ट्रक में मौजूद पीएसी की 41वीं बटालियन के 19 जवानों ने इन युवकों को मारकर मुरादनगर की गंग नहर और गाजियाबाद की हिंडन नहर में फेंक दिया था। इनमें से 38 युवक मारे गए थे, जबकि कुछ के शव नहीं मिले थे, पांच युवकों ने किसी तरह अपनी जान बचाई थी।

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यह निहत्थे लोगों की हत्या का मामला है। पीड़ित परिवारों को न्याय पाने के लिए 31 साल तक इंतजार करना पड़ा। इस फैसले से उन्होंने जो भी खोया है, उसकी भरपाई नहीं की जा सकती। पीड़ितों के परिवारों को उचित मुआवजा भी दिया जाए।

न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल -----------------

यह सभी के लिए खुशी की बात है कि देर से ही सही मामले से जुड़े सभी पीडि़तों को न्याय और दोषियों को सजा मिली। जान गंवाने वाले सभी 38 लोगों के परिवार सालों से न्याय की आस में बैठे थे। उनके दर्द पर इस फैसले से मरहम लगा है।

-सैयद अकबर आब्दी, अतिरिक्त विशेष अभियोजक, उत्तर प्रदेश सरकार

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-अभी इस मामले में पीएसी के जवानों से बात नहीं हुई है। निश्चित तौर पर हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

-एलडी मौल, अधिवक्ता बचाव पक्ष

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