Move to Jagran APP

हाशिमपुरा नरसंहार : यूपी सरकार ने 42 हत्याओं में 30 साल तक दबाया मुख्य सबूत

अपने फैसले में पीठ ने कहा कि हाशिमपुरा नरसंहार में सबूतों से यह भी साबित हुआ है कि दोषियों ने सुनियोजित तरीके से 42 निर्दोष लोगों के इस हत्याकांड को अंजाम दिया।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 01 Nov 2018 09:33 AM (IST)
Hero Image
हाशिमपुरा नरसंहार : यूपी सरकार ने 42 हत्याओं में 30 साल तक दबाया मुख्य सबूत

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। हाशिमपुरा नरसंहार मामले से जुड़ी जिस जनरल डायरी (जीडी) को उत्तर प्रदेश सरकार 30 साल तक दबाए रही, न्यायालय में सुनवाई के दौरान जीडी ही सबसे अहम सुबूत साबित हुई और सजा का आधार बनी। हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रकरण से जुड़े मुख्य दस्तावेज उत्तर प्रदेश सरकार के नियंत्रण में होने के बावजूद इसे तत्काल जांच एजेंसी को क्यों नहीं दिया गया। इसके लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आवेदन पर हाई कोर्ट को आदेश देना पड़ा।

न्यायमूर्ति एस मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा कि अदालत में पेश की गई जीडी से स्पष्ट है कि जो ट्रक घटना के दिन हाशिमपुरा गया था और वहां से 42 से 45 लोगों को लेकर आया था। उसमें पीएसी के 16 जवान मौजूद थे। पीठ ने कहा कि सबूतों से यह भी साबित हुआ है कि दोषियों ने सुनियोजित तरीके से 42 निर्दोष लोगों के इस हत्याकांड को अंजाम दिया।

उत्तर प्रदेश सरकार के अभियोजक सैयद अकबर आब्दी का कहना है कि मामले की जांच कर रही उत्तर प्रदेश की सीबीसीआइडी ने जीडी की फोटोकॉपी लगाई थी, लेकिन कई बार मांग के बावजूद भी इसकी मूल कॉपी निचली अदालत में पेश नहीं की गई। हाई कोर्ट में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वकील वृंदा ग्रोवर की मांग पर हाई कोर्ट के आदेश पर इसी वर्ष जीडी की मूल कॉपी पेश की गई थी। जीडी पेश होने पर सभी दोषियों के दोबारा बयान कराए गए।

दोषी करार दिए गए जवान

हाई कोर्ट ने मामले में सुरेश चंद्र शर्मा, कमल सिंह, रामबीर सिंह, समी उल्लाह, महेश प्रसाद, जयपाल सिंह, राम ध्यान, सर्वण कुमार, लीला धर, हमबीर सिंह, कुंवर पाल सिंह, बुद्धा सिंह, बुधी सिंह, मोहकम सिंह, बसंत वल्लाह को दोषी करार दिया है। इसमें से आरोपित रहे प्लाटून कमांडर सुरेंद्र पाल सिंह, ओम प्रकाश और कुश कुमार की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है। 

संदेह के घेरे में जांच एजेंसी की भूमिका
हाई कोर्ट ने हाशिमपुरा मामले की जांच करने वाली उत्तर प्रदेश की सीबीसीआइडी की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर व न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने कहा कि जिस तरह से जांच एजेंसी से जुड़े अधिकारियों ने प्रकरण से जुड़े अहम दस्तावेजों को सही समय पर पेश नहीं किया। उससे उनकी भूमिका संदेह के घेरे में है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।