दिल्लीः किताबें चाहिए तो यहां आइए, निराश नहीं होंगे आप
मनपसंद किताबों की चाह में इस मंडी में दिल्ली ही नहीं, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम समेत देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं। कोई यहां से निराश होकर नहीं जाता।
By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 27 Dec 2018 03:36 PM (IST)
नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। नई सड़क...पुरानी ठौर...नाम लेते का अध्ययन कर तय हुआ नक्शा ही जेहन में किताबें तैर जाती हैं। खचाखच भीड़ भरी सड़क, ऑटो, रिक्शा, ई-रिक्शा और बाइक से अस्त- व्यस्त रास्ता, उनके बीच से बचते-बचाते निकलते हुए कोई मोबाइल तो कोई कागज पर लिखकर लाए किताबों के नाम बुदबुदाते हुए आगे बढ़ता रहता है। किसी को कोर्स की किताब चाहिए तो किसी को बड़े लेखक और महापुरुषों की जीवनी से संबंधित किताब। एक दुकान से दूसरी दुकान तक मनपसंद किताब ढूंढ़ने का सिलसिला तब तक जारी रहता है जब तक किताब मिल ना जाए। किताबों की इस मंडी में दिल्ली ही नहीं, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम समेत देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं। हर जगह से थक हार जाने के बाद लोग बड़ी हसरत के साथ नई सड़का का रुख करते हैं। यहां भीड़ का बहुत बड़ा हिस्सा जिस एक दुकान को ज्यादा तरजीह देता है वह धर्म प्रताप कोहली की दुकान है।
बचपन से था किताबों का शौक पुराने दरवाजे, पुराना पंखा, पुरानी कुर्सी, आलमारी के बीच करीने से सजी हुई किताबें। नजर दौड़ाएं तो इनमें चेतन भगत, अमीश से लेकर डेन ब्राउन,डेनियल स्टील, जान, इदरिसी, आलिवर तक की किताबें दिखती हैं। बुजुर्ग धर्म प्रताप कोहली कहते हैं कि किताबों से लगाव तो बचपन से ही था। पिता एसके कोहली डॉक्टर थे। हम मारवाड़ी कटरे के सामने पुरानी दिल्ली में ही रहते थे। जब मैंने होश संभाला तो खुद को किताबों में ढूंढ़ते पाया। यह शौक कब कारोबार में बदल गया पता ही नहीं चला। पहले हम कभी-कभार ही किताबें बेचते एवं खरीदते थे। एक तरह से कहें तो शौकिया वाला हिसाब था। लेकिन 3 जनवरी, 1987 को अचानक पिताजी का देहांत हो गया। उनके गुजरने के बाद पहली बार स्थायी रूप से किताबों की दुकान खोली।
43 किताबों से शुरू हुआ सफर 1987 में धर्म प्रताप ने महज 43 किताबों के साथ दुकान शुरू की थी। इनमें मेडिकल, टेक्निकल, लिटरेचर की किताबें हुआ करती थीं। उन दिनों को याद करते हुए धर्म प्रताप कहते हैं कि उन दिनों पढ़ने वालों की कमी नहीं थी। लोग लाइन लगाकर किताबें खरीदने आते थे। दरियागंज में अंसारी रोड पर ही पब्लिशिंग हाउस थे। वो दिन भी क्या दिन थे। पढ़ने वाले दूर-दूर से किताबें ढूंढ़ने आते थे। लोग बेहतरीन लेखक की किताबें मांगते थे।
दुर्लभ किताबों का खजाना एक समय था जब लोग साहित्य की किताबें बड़े शौक से पढ़ा करते थे, पर अब उनमें कमी आई है। धर्म पाल का दावा है कि उनकी दुकान में दुर्लभ किताबें भी मिलती हैं, बस लोग किताब का नाम उन्हें बता दें तो वह उसे भी उपलब्ध करवा देते हैं। वैसे यहां साहित्य, मेडिकल समेत अन्य प्रतियोगिता की तैयारियों की किताबें भी मिलती हैं। देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं एवं किताबों की लिस्ट थमा उनसे किताब उपलब्ध कराने की गुजारिश करते हैं।
सैकड़ों किमी का सफर तय किया दुष्यंत की किसी किताब के बारे में पूछते अमन कहते हैं कि वो लखीमपुर खीरी के रहने वाले हैं। किताबों का शौक उन्हें यहां खींच लाता है। पहले तो वह किताबों की लिस्ट तैयार करते हैं, फिर एक बार यहां आते हैं और सारी किताबें एक साथ खरीद कर ले जाते हैं। इसी तरह गाजियाबाद से आई आकांक्षा कहती हैं कि तकनीकी शिक्षा संबंधी किताबें खरीदने का यह बेहतरीन ठिकाना है। इनके अलावा कई प्रतिष्ठित सरकारी संस्थानों के प्रमुख यहां अक्सर किताबें खरीदने आते हैं। इस कड़ी में धर्म प्रताप सेल के सीईओ का जिक्र करना नहीं भूलते। कहते हैं कि वे इंजीनिर्यंरग की किताबें लेने के लिए आते थे। यहां ज्योतिष, वैदिक साहित्य, अंतरिक्ष विज्ञान, समुद्र विज्ञान के कई ऐसे ग्राहक भी है, जिनके लिए नई सड़क का मतलब ही धर्म प्रताप कोहली की दुकान है। ऐसे ही एक ग्राहक प्रियेश शुक्ल कहते हैं कि वह करीब 20 साल से यहां किताब खरीदने आते रहते हैं। खुद अध्यापन कार्य से जुड़े है। जो किताबें उन्हें कहीं नहीं मिलती वो यहां आर्डर देने पर आसानी से कुछ दिनों के अंदर उपलब्ध हो जाती है। यही इस दुकान की सबसे बड़ी खासियत है, जिसकी वजह से लोग यहां से जुड़े हैं। जबकि धर्म प्रताप कहते हैं कि हमारी कोशिश रहती है कि किताबों के जो भी शौकीन है वो यहां से निराश ना लौटें।
अब संघर्ष का दौर पुराने दिनों को याद करते हुए धर्मपाल कहते हैं कि पहले नई सड़क पर आधे हिस्से में कपड़े की दुकान, जबकि आधे में किताबों का संसार हुआ करता था। लेकिन आनलाइन किताब पढ़ने के चलन, स्कूल-कॉलेज समेत अन्य संस्थानों द्वारा प्रकाशकों से समझौताकर किताबें बेचने समेत कई अन्य कारणों ने यहां किताबों की दुकानों पर असर डाला है। यही वजह है कि ब किताब बेचने वाले दुकानदार अपनी जीविका चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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