पढ़ें 10 ऐसे लोगों की कहानियां, जिनके अनूठे कार्यों से गूंजती रही 2018 की फिजा
आज हम ऐसे ही कुछ प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में आपको बता रहे हैं, जो अपने अनूठे रचनात्मक कार्यों से असंख्य लोगों की ताकत और प्रेरणा बन गए हैं।
By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Sun, 30 Dec 2018 06:48 PM (IST)
नई दिल्ली, [कृष्ण कुमार]। अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन दुनिया उसी को याद करती है जो दूसरों के लिए जीते हैं, उनकी खुशियों में अपनी खुशियां तलाशते हैं, बेसहारों के आंसुओं से खुद भीग जाते हैं और उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं। आज हम ऐसे ही कुछ प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में आपको बता रहे हैं, जो अपने अनूठे रचनात्मक कार्यों से असंख्य लोगों की ताकत और प्रेरणा बन गए हैं। इनके योगदान सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक कार्यों से लेकर पर्यावरण, स्वास्थ्य-सुरक्षा, जरूरी ट्रेनिंग और बेहतर भविष्य के निर्माण के अथक प्रयास से जुड़े हुए हैं।
मोबाइल गेम और इंटरनेट एडिक्शन से जूझ रहे लोगों को कर रहे इलाज
एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्रिक में असिस्टेंट प्रोफेसर यतनपाल सिंह बलहारा अक्टूबर 2016 से बिहैवरियल एडिक्शन क्लीनिक में ऐसे मरीजों का इलाज कर रहे हैं जो इंटरनेट, गेम, सोशल नेटवर्किंग साइट का आवश्यकता से अधिक उपयोग करते हैं।
एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्रिक में असिस्टेंट प्रोफेसर यतनपाल सिंह बलहारा अक्टूबर 2016 से बिहैवरियल एडिक्शन क्लीनिक में ऐसे मरीजों का इलाज कर रहे हैं जो इंटरनेट, गेम, सोशल नेटवर्किंग साइट का आवश्यकता से अधिक उपयोग करते हैं।
दरअसल, एम्स में जब ऐसे मरीजों के आने की संख्या बढ़ी तब इसे शुरू किया गया था। यहां आने वाले मरीजों में वे सर्वाधिक थे जोकि सोशल नेटवर्किंग साइट, इंटरनेट और लैपटॉप का उपयोग करते थे। कुछ लोग ऐसे भी थे गैम्बलिंग डिस्ऑर्डर से भी पीड़ित थे। वहीं, कुछ ऐसे भी मरीज थे बहुत ज्यादा शॉपिंग करते थे। इसके लिए सर्वे के तौर पर यह कार्य शुरू किया गया था।डॉक्टरों की यह टोली कर रही पांच साल से यमुना के घाट की सफाई
दिल्ली में एम्स और मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम अपने नियमित कामकाज से समय निकालकर यमुना के घाट की सफाई कर रही है। यह सिलसिला 11 अप्रैल 2013 से जारी है। इसमें डॉक्टर यमुना के सचिवालय के सामने स्थित 80 मीटर के छठ घाट की सफाई करते हैं। यह सफाई अभियान हर शनिवार को चलता है। इस अभियान की शुरुआत में मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज और एम्स के डॉक्टर शामिल थे।
दिल्ली में एम्स और मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज के डॉक्टरों की टीम अपने नियमित कामकाज से समय निकालकर यमुना के घाट की सफाई कर रही है। यह सिलसिला 11 अप्रैल 2013 से जारी है। इसमें डॉक्टर यमुना के सचिवालय के सामने स्थित 80 मीटर के छठ घाट की सफाई करते हैं। यह सफाई अभियान हर शनिवार को चलता है। इस अभियान की शुरुआत में मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज और एम्स के डॉक्टर शामिल थे।
अभियान की नींव डॉ. विवेक दीक्षित ने रखी थी। वह एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेडिक में साइंटिस्ट हैं। बकौल डॉ विवेक, वह जब भी कभी विदेश जाते थे तो उन्हें वहां की नदियां बेहद साफ नजर आती थीं, दूसरी तरफ यमुना ही हालत बेहद खराब है। इसके बाद से उन्होंने इसे साफ करने के लिए कोशिश जारी रखी हुई है।
कॉलेज में बनाती हैं पैड, आसपास की बस्तियों मे बांटती हैं पैडगर्ल्स
दिल्ली में लक्ष्मीबाई कॉलेज में इनोवेशन प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद भी सेनेटरी नैपकिन बनाना जारी है। ये सेनेटरी नैपकिन बनाकर यहां की छात्राएं स्कूल और आसपास के इलाकों में बांटती हैं। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के दौरान उन्हें यह भी पता चला कि आसपास के गांव और झुग्गी वाली महिलाएं महावारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इसके बाद से उन्होंने कोशिश की वह जरूरतमंदों को यह नैपकिन दें, ताकि वह इन्फेक्शन से बची रहें। कॉलेज की प्रधानाचार्य प्रत्युष वत्सला ने बताया कि 2015 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट मार्च 2017 में खत्म हो चुका है, इसके बावजूद कॉलेज की छात्राएं अब भी नैपकिन बनाने का काम कर रही हैं। इसे समय मिलने के बाद वह बांटती हैं। फिलहाल इसमें अभी 30-40 छात्राएं काम कर रही हैं। इसके लिए बाकायदा कॉलेज ने मशीन खरीदी थी।नेत्रहीन होने के बावजूद करते हैं क्रिकेट, चेस और ताइक्वांडो की प्रैक्टिस
ये भले ही आंखों से देख नहीं पाते हैं, लेकिन इन लोगों ने मिलकर खुद की पहचान अलग रखने का बीड़ा उठाया है। चेस, क्रिकेट और ताइक्वांडो की प्रैक्टिस करते हैं। पहल स्पोटर्स क्लब से जुड़े ये लोग हर रविवार को नोएडा के सेक्टर 47 में जुटते हैं। इसी क्लब से जुड़े अभिनव बताते हैं कि वह यूटयूब चैनल चलाते हैं। अब उनकी चाहत है कि नौकरी को लेकर उनकी मानसिकता बदले। हाल में उन्हें जॉब इसलिए नहीं मिली, क्योंकि कंपनी को बताया कि वह देख नहीं सकते हैं। अभिनव का कहना है हर रविवार को वॉट्सऐप ग्रुप पर जानकारी मिलती है, जिसके बाद वह खेलने पहुंचते हैं। ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए चार्ल्स, हिन्दी पर है जबर्दस्त पकड़
ऑस्ट्रेलिया में जन्मे 13 साल के चार्ल्स थॉमसन 1974 में आ गए थे। शुरुआत में वह बिहार में रहे थे, वह 11 साल तक यहां रहने के कारण उनका कनेक्शन भारत से हो गया। हालांकि, 1985 में एक बार जाना पड़ गया था, बाद में वह फिर से वापस आ गये थे। अब तो उन्होंने भारत की नागरिकता भी ले ली। उनकी हिंदी बोलने की शैली के कारण लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं। करीब दो महीने पहले ही चार्ल्स को भारत की नागरिकता भी मिली है। चार्ल्स कहते हैं कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में थाई रेस्टोरेंट भी चलाया है। वे भारत में कई टीवी शो और फिल्म में काम कर चुके हैं। आने वाले समय में उनकी एक फिल्म की शूटिंग हरिद्वार में होगी। वे जयपुर में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के होस्ट भी रहे हैं । चार्ल्स 67 साल के हैं। तेजाब पीड़ित के लिए लड़ रहा युवक
पेशे से पत्रकार रहे और बाद में सामाजिक कार्यकर्ता बने आलोक दीक्षित ने एसिड पीड़ितों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी। उन्होंने एसिड पीड़ित लक्ष्मी के साथ इस अभियान को आगे बढ़ाया था। बकौल आलोक- 2013 से स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन शुरू किया था। इससे कई ऐसे लोग उनके साथ जुड़े, जिन्होंने एसिड अटैक को झेला। 2014 में उन्होंने ऐसे लोगों के रोजगार के लिए के लिए सोचा ।सबसे पहली बार आगरा में 2014 में एसिड अटैक पीड़ितों के लिए शीरोज कैफे खुलवाया। यहां फिलहाल 10 लोग काम कर रहे हैं। इसके बाद ऐसे ही एक और कैफे की शुरुआत लखनऊ में मार्च, 2016 में हुई। यहां अभी 15 लोग कार्यरत हैं। आने वाले दिनों में ओडिशा में भी एक एसिड पीड़ित को शीरोज कैफे खुलवा रहे हैं। आलोक ने बताया कि आने वाले समय में कोशिश यह की जा रही है कि लोगों को उनकी रुचि के हिसाब से काम दिलवाया जाये, अभी कुछ लोगों को पार्लर की ट्रेनिंग दिलवाई गई है। गंगा के अंदर जाकर निकालते हैं कूड़ा
बनारस में गढ़वासी टोला के रहने वाले राजेश शुक्ला पेशे से अकाउंटेंट हैं। वह करीब दस साल से बनारस के घाटों के अंदर से गंदगी निकालने की कोशिश कर रहे हैं। शुरुआत महज पांच लोगों से मणिकर्णिका घाट से हुई, यहां वह नाव पर बैठकर आवाज लगाते थे- गंगा में गंदगी क्यों डाल रहे हैं। समय-समय पर वे लोगों को जागरूक करने की भी कोशिश करते हैं।इसके बाद से यह सिलसिला जारी है, अब इस कार्य में मल्लाह भी शामिल हैं। साथ ही, गंगा को साफ करने के लिए कई समितियां बनाई हुई हैं। गंगा के हर घाट पर जाकर राजेश सफाई करते हैं। बकौल राजेश - वह हर दिन जाकर एक घाट की सफाई करते हैं, कोशिश यह होती है कि घाट के अंदर स्थित गंदगी को निकालें, ताकि जो लोग आ रहे हैं उनको दिक्कत न हो।
दिल्ली में लक्ष्मीबाई कॉलेज में इनोवेशन प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद भी सेनेटरी नैपकिन बनाना जारी है। ये सेनेटरी नैपकिन बनाकर यहां की छात्राएं स्कूल और आसपास के इलाकों में बांटती हैं। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के दौरान उन्हें यह भी पता चला कि आसपास के गांव और झुग्गी वाली महिलाएं महावारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। इसके बाद से उन्होंने कोशिश की वह जरूरतमंदों को यह नैपकिन दें, ताकि वह इन्फेक्शन से बची रहें। कॉलेज की प्रधानाचार्य प्रत्युष वत्सला ने बताया कि 2015 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट मार्च 2017 में खत्म हो चुका है, इसके बावजूद कॉलेज की छात्राएं अब भी नैपकिन बनाने का काम कर रही हैं। इसे समय मिलने के बाद वह बांटती हैं। फिलहाल इसमें अभी 30-40 छात्राएं काम कर रही हैं। इसके लिए बाकायदा कॉलेज ने मशीन खरीदी थी।नेत्रहीन होने के बावजूद करते हैं क्रिकेट, चेस और ताइक्वांडो की प्रैक्टिस
ये भले ही आंखों से देख नहीं पाते हैं, लेकिन इन लोगों ने मिलकर खुद की पहचान अलग रखने का बीड़ा उठाया है। चेस, क्रिकेट और ताइक्वांडो की प्रैक्टिस करते हैं। पहल स्पोटर्स क्लब से जुड़े ये लोग हर रविवार को नोएडा के सेक्टर 47 में जुटते हैं। इसी क्लब से जुड़े अभिनव बताते हैं कि वह यूटयूब चैनल चलाते हैं। अब उनकी चाहत है कि नौकरी को लेकर उनकी मानसिकता बदले। हाल में उन्हें जॉब इसलिए नहीं मिली, क्योंकि कंपनी को बताया कि वह देख नहीं सकते हैं। अभिनव का कहना है हर रविवार को वॉट्सऐप ग्रुप पर जानकारी मिलती है, जिसके बाद वह खेलने पहुंचते हैं। ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए चार्ल्स, हिन्दी पर है जबर्दस्त पकड़
ऑस्ट्रेलिया में जन्मे 13 साल के चार्ल्स थॉमसन 1974 में आ गए थे। शुरुआत में वह बिहार में रहे थे, वह 11 साल तक यहां रहने के कारण उनका कनेक्शन भारत से हो गया। हालांकि, 1985 में एक बार जाना पड़ गया था, बाद में वह फिर से वापस आ गये थे। अब तो उन्होंने भारत की नागरिकता भी ले ली। उनकी हिंदी बोलने की शैली के कारण लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं। करीब दो महीने पहले ही चार्ल्स को भारत की नागरिकता भी मिली है। चार्ल्स कहते हैं कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में थाई रेस्टोरेंट भी चलाया है। वे भारत में कई टीवी शो और फिल्म में काम कर चुके हैं। आने वाले समय में उनकी एक फिल्म की शूटिंग हरिद्वार में होगी। वे जयपुर में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के होस्ट भी रहे हैं । चार्ल्स 67 साल के हैं। तेजाब पीड़ित के लिए लड़ रहा युवक
पेशे से पत्रकार रहे और बाद में सामाजिक कार्यकर्ता बने आलोक दीक्षित ने एसिड पीड़ितों के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी। उन्होंने एसिड पीड़ित लक्ष्मी के साथ इस अभियान को आगे बढ़ाया था। बकौल आलोक- 2013 से स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन शुरू किया था। इससे कई ऐसे लोग उनके साथ जुड़े, जिन्होंने एसिड अटैक को झेला। 2014 में उन्होंने ऐसे लोगों के रोजगार के लिए के लिए सोचा ।सबसे पहली बार आगरा में 2014 में एसिड अटैक पीड़ितों के लिए शीरोज कैफे खुलवाया। यहां फिलहाल 10 लोग काम कर रहे हैं। इसके बाद ऐसे ही एक और कैफे की शुरुआत लखनऊ में मार्च, 2016 में हुई। यहां अभी 15 लोग कार्यरत हैं। आने वाले दिनों में ओडिशा में भी एक एसिड पीड़ित को शीरोज कैफे खुलवा रहे हैं। आलोक ने बताया कि आने वाले समय में कोशिश यह की जा रही है कि लोगों को उनकी रुचि के हिसाब से काम दिलवाया जाये, अभी कुछ लोगों को पार्लर की ट्रेनिंग दिलवाई गई है। गंगा के अंदर जाकर निकालते हैं कूड़ा
बनारस में गढ़वासी टोला के रहने वाले राजेश शुक्ला पेशे से अकाउंटेंट हैं। वह करीब दस साल से बनारस के घाटों के अंदर से गंदगी निकालने की कोशिश कर रहे हैं। शुरुआत महज पांच लोगों से मणिकर्णिका घाट से हुई, यहां वह नाव पर बैठकर आवाज लगाते थे- गंगा में गंदगी क्यों डाल रहे हैं। समय-समय पर वे लोगों को जागरूक करने की भी कोशिश करते हैं।इसके बाद से यह सिलसिला जारी है, अब इस कार्य में मल्लाह भी शामिल हैं। साथ ही, गंगा को साफ करने के लिए कई समितियां बनाई हुई हैं। गंगा के हर घाट पर जाकर राजेश सफाई करते हैं। बकौल राजेश - वह हर दिन जाकर एक घाट की सफाई करते हैं, कोशिश यह होती है कि घाट के अंदर स्थित गंदगी को निकालें, ताकि जो लोग आ रहे हैं उनको दिक्कत न हो।