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अनपढ़ मां ने तोड़ी बंदिशें, बेटियों को पढ़ा-लिखा कर शिखर पर पहुंचा दिया

रेवाड़ी की अनपढ़ महिला ने वो कारनामा कर दिखाया जो मिसाल है। आज बेटियां देश-दुनिया में नाम कर रहीं। दोनों बेटियों ने अपनी सफलता के झंडे फहरा दिए हैं। पीएम भी कर चुके हैं तारीफ।

By Prateek KumarEdited By: Updated: Thu, 03 Jan 2019 08:33 PM (IST)
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अनपढ़ मां ने तोड़ी बंदिशें, बेटियों को पढ़ा-लिखा कर शिखर पर पहुंचा दिया
रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। यहां के बावल विकास खंड का छोटा सा गांव है गुर्जर माजरी। तीन दशक पहले की बात करें तो इस गुर्जर बाहुल्य गांव में बेटियों की पढ़ाई के प्रति अधिक जागरूकता नहीं थी। बाल विवाह जैसी कुरीतियां कायम थी। लेकिन, उसी दौर में इस छोटे से गांव की एक ऐसी महिला ने इतिहास लिख दिया। अपनी बेटियों को लेकर इतनी बड़ी सोच विकसित कर चुकी थी जिसकी तब कल्पना भी नहीं की जा सकती। नाम मनी देवी। उन दिनों संकल्प लिया था- 'खुद नहीं पढ़ पाई तो क्या हुआ। पढ़ा तो सकती हूं।' मनी का संकल्प हर किसी को ऊंची उड़ान की प्रेरणा देता है। आज उनका संकल्प पूरा हो चुका है।

पैसे के अभाव से भी नहीं ढिगे कदम
गुर्जर समुदाय लड़कियों की उच्च शिक्षा के मामले में आज भी पीछे है, लेकिन मनी देवी की बेटियां घर में मनी का अभाव होते हुए भी गगन छूने की उपलब्धियां अपने नाम कर चुकी हैं। जहां बेटियों को अकेली घर से बाहर निकलने पर बंदिश हो वहां साधारण गुर्जर परिवार की मनी देवी ने रूढ़िवादी बंदिशों को तोड़ दिया।

माउंट एवरेस्‍ट पर फहरा दिया तिरंगा
उन्‍होंने बेटियों की पढ़ाई को एक मात्र लक्ष्य बना लिया। मनीदेवी की बड़ी बेटी सुनीता गुर्जर जहां सात वर्ष पूर्व बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का स्लोगन लेकर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहरा चुकी हैं वहीं दूसरी बेटी रेखा सिंह चौकन अफ्रीका महाद्वीप के तंजानिया देश की सबसे ऊंची चोटी किली मंजारो पर तिरंगा फहरा चुकी हैं।

बेटियों को दी पर्वतारोहण की आजादी
मनीदेवी के पति जौहरी सिंह बीएसएफ के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर हैं। पदोन्नति से पूर्व बतौर सिपाही उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वह माउंट एवरेस्ट पर जाने की बेटी सुनीता की तमन्ना अकेले दम पर पूरी कर सके, लेकिन मां मनी का हौसला काम आया। आलोचकों को झटका देकर समाज की मदद ली और बेटी को घर की चारदीवार छोड़कर माउंट एवरेस्ट जाने के लिए प्रेरित किया।

बड़ा लक्ष्‍य बनाया और जुट गई फतह करने
छोटी बेटी रेखा को बेंगलुरु के प्रतिष्ठति आरवी कॉलेज से इंर्फोमेशन साइंस में डिग्री दिलवाई। रेखा अब सालाना 35 लाख रुपये का पैकेज ले रही है। सुनीता काफी समय तक विवेकानंद केंद्र से जुड़ी रहीं। अब भी सेवा के लिए समर्पित भाव से काम कर रही है।

साइकिल से की साढ़े चार हजार किलोमीटर की यात्रा
कुछ दिन पहले ही सुनीता ने गुजरात से नेपाल तक साइकिल यात्रा की थी। कई राज्यों से होते हुए उन्होंने लगभग साढ़े चार हजार किमी का सफर तय किया। इस सफर का लक्ष्य बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण भी था।

पीएम ने की तारीफ
बड़ी बहन की तरह छोटी बहन का भी एक सामाजिक लक्ष्य है-बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। सुनीता जहां इस अभियान की रेवाड़ी जिले की ब्रांड एंबेसडर हैं, वहीं रेखा भी भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा नारी सशक्तीकरण के लिए दिए गए योगदान के कारण सम्मानित हो चुकी हैं। रेखा ने दस जमा दो स्तर पर विशेष उपलब्धि हासिल की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्र भेजकर रेखा का हौसला बढ़ाया था।

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