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पढ़ें- देश के इन 190 मकानों की दिलचस्प स्टोरी, लोग शान से कहते हैं 'टेढ़ा है पर मेरा है'

ज्यादातर प्रोजेक्ट में टेढ़े-मेढ़े प्लॉटों की कीमत कम होती है, लेकिन यहां ऐसे प्लॉटों के लिए विशेष डिजाइन तैयार किए गए थे। इस कारण कॉर्नर के टेढ़े-मेढ़े प्लॉटों की अधिक कीमत रखी गई।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 31 Jan 2019 05:11 PM (IST)
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पढ़ें- देश के इन 190 मकानों की दिलचस्प स्टोरी, लोग शान से कहते हैं 'टेढ़ा है पर मेरा है'
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अक्सर हम जमीन या प्लॉट लेते हैं तो सबसे पहले उसकी चारों दिशाओं पर गौर करते हैं कि वह चकोर यानी चारों कोने बराबर हैं, कहीं तिकोना तो नहीं। या फिर आड़ा-तिरछा तो नहीं। अमूमन ऐसी धारणा है कि इस तरह की जमीन पर वास्तु के लिहाज से सकारात्मकता नहीं मानी जाती, लेकिन गुरुग्राम में 1990 में ऐसी ही जमीन पर नेशनल मीडिया सेंटर कोऑपरेटिव हाउस बिल्डिंग सोसायटी का निर्माण किया गया। यहां पत्रकारों के लिए आवास बनने थे। हालांकि बाद में यहां शिक्षक, वास्तुकार, कलाकार सभी रहने लगे। हैरानी की बात यह है कि यहां पर पहले लोग प्लॉट के टेढ़े-मेढ़े और आड़े-तिरछे आकार को लेकर व्यथित थे, लेकिन फिर विशेष डिजाइन के बात लोगों को इतना भाए कि अब इन्हें कोई छोड़ना नहीं चाहता। 

विनोद गुप्ता (आर्किटेक्ट व डिजाइनर एवं को-फाउंडर एंड सीईओ, ओपस इंडिगो) बताते हैं, 'सोसायटी बनाने के लिए गुरुग्राम में 23 एकड़ जमीन मिली, लेकिन यह साइट करीब तीन मीटर गहरी थी। इस साइट के आसपास भू-जल के अलावा पानी का कोई ही जरिया नहीं था और न ही पानी की निकासी का कोई रास्ता। पूरी साइट में 190 प्लॉट काटे गए थे। हर घर के लिए नक्शा तैयार करना और उन्हें अलग लुक देना सबसे बड़ी चुनौती थी। उस वक्त वाटर हार्वेस्टिंग का न तो प्रचलन था और न ही यह बिल्डिंग बाइलॉज में शामिल था। लेकिन हमें पता था कि भविष्य में इलाके में बड़े पैमाने पर निर्माण होंगे, जिसमें भू-जल का दोहन होगा। इसलिए हमने तय किया कि पूरी साइट से पानी की बर्बादी नहीं होने देंगे। और उससे यह दिल्ली-एनसीआर का पहला ऐसा प्रोजेक्ट बन गया जहां वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाया गया था। पूरी कॉलोनी का बारिश का पानी धरती को रीचार्ज करता था। इसके अलग-अलग प्लॉटों पर वर्ष-1996 तक काम चला। पूरी साइट पर लगे पेड़ों को काटा नहीं गया था। कॉलोनी में नए पौधे लगाए गए। हरियाली और ओपन स्पेस के कारण यहां के घरों में लंबे समय तक लोग बगैर एयरकंडीशन के ही रहे।'

टेढ़े-मेढ़े प्लॉटों की मिली प्रीमियम

विनोद गुप्ता की मानें तो ज्यादातर प्रोजेक्ट में टेढ़े-मेढ़े प्लॉटों की कीमत कम होती है, लेकिन यहां ऐसे प्लॉटों के लिए विशेष डिजाइन तैयार किए गए थे। इस कारण कॉर्नर के टेढ़े-मेढ़े प्लॉटों की अधिक कीमत रखी गई। ड्रॉ में जिन लोगों को ये प्लॉट आवंटित हुए उन्होंने खुशी-खुशी इनकी ज्यादा कीमत अदा भी की। आजकल की सोसायटी व फ्लैट्स कल्चर में लोग अपने बगल वाले पड़ोसी को भी नहीं जानते हैं। ऐसा होना सुरक्षा व समाज दोनों की सेहत के लिए ही अच्छा नहीं है, इसलिए सुरक्षा के लिहाज से हमने हर घर में बालकनी दी। यह सामान्य नहीं थीं, आप बालकनी से पूरी सड़क व सामने के घर देख सकते हैं। इससे फायदा यह है कि सड़क पर अंधेरे में जा रही लड़की भी यह सोचकर सुरक्षित महसूस कर सकती है कि उसके साथ कोई वारदात होती है तो किसी न किसी को तो पता चल ही जाएगा। हमने घरों की बाउंड्री भी कम ऊंचाई की रखी ताकि लोग अंदर खड़े होकर बाहर और बाहर से अंदर देख सकें।

थोड़ी दूर पर बनाई पार्किंग

विनोद इस सोसायटी में पार्किंग को लेकर कहते हैं, 'व्यवस्था ऐसी की थी कि लोगों को अपने वाहन पार्क करने के बाद थोड़ा पैदल भी जरूर चलना पड़े। जब लोग गाड़ी दूर खड़ी करके थोड़ा पैदल चलकर जाएंगे तो एक-दूसरे से दुआ-सलाम होगी और मेलजोल बढ़ेगा। इसलिए पार्किंग की व्यवस्था सोसायटी की बाउंड्री के पास की गई। पानी की टंकी पर ही क्लॉक टावर का रूप दिया गया था। इस घड़ी में लोग समय भी देखते थे। अब यह घड़ी शायद खराब हो गई है। उस वक्त लोग ग्रीन बिल्डिंग के नाम पर सिर्फ इतना जानते थे कि घर में हवा, पानी व प्रकाश इंतजाम हो। एसी का ज्यादा चलन नहीं था। फिर भी हमने हर घर में सोलर वाटर हीटर के लिए पाइप आदि दिया, चिमनी आदि लगाने के लिए इंतजाम किया।'

वास्तु विश्वास की बात है

विनोद बातचीत के दौरान बड़ी साफगोई से कहते हैं, 'यहां एक टेढ़े-मेढ़े प्लॉट पर एक ऐसा घर बनाया था जो कि वास्तु के हिसाब से एकदम उलट था। मसलन उसके प्रवेश द्वार से लेकर घरों के हर कोने तक वास्तु का उल्लंघन था। उस घर की मालकिन ने एक दिन फोन करके पूछा कि विनोद जी क्या आपने वास्तु देखकर यह घर बनाया था। मैंने कहा नहीं। इस पर उन्होंने कहा कि इस घर में आकर बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है। इस पर मैं वहां एक वास्तु विशेषज्ञ को लेकर घर की जांच करने गया। वास्तु विशेषज्ञों ने भी कहा कि वास्तु में कोई कमी नहीं है। वास्तु विश्वास की बात है।'

(लेख अरविंद कुमार द्वीवेदी से बातचीत पर आधारित है)

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