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श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान रामधारी ¨सह दिवाकर को

¨हदी के वरिष्ठ कथाकार श्रीलाल शुक्ल की याद में दिया जाने वाला वार्षिक 'श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य पुरस्कार' इस वर्ष ¨हदी के प्रतिष्ठित रचनाकार रामधारी ¨सह दिवाकर को दिया गया। अगस्त क्रांति रोड स्थित एनसीयूआई ऑडिटोरियम में आयोजित सम्मान समारोह में ¨हदी साहित्य के कई दिगग्ज हस्ताक्षरों की मौजूदगी में उन्हें सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि साहित्यकार मृदुला गर्ग व विशिष्ट अतिथि जिलियन राइट, मुरली मनोहर प्रसाद सिहं, प्रो. राजेंद्र कुमार, इब्बार रब्बी, डॉ. दिनेश कुमार, शम्सुर रहमान मौजूद रहे वहीं, समारोह की अध्यक्षता लेखक व पूर्व सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी ने किया। ग्रामीण पृष्ठभूमि से पात्र तलाश कर सामयिक कृतियां बुनने वाले पुरस्कार विजेता लेखक को बधाई देते हुए ¨हदी की प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने कहा कि दिवाकर का रचना संसार ग्रामीण और किसानी जीवन के इर्द-गिर्द घूमता है।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 31 Jan 2019 10:28 PM (IST)
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श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान रामधारी ¨सह दिवाकर को

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : ¨हदी के वरिष्ठ कथाकार श्रीलाल शुक्ल की याद में दिया जाने वाला वार्षिक 'श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य पुरस्कार' इस वर्ष ¨हदी के प्रतिष्ठित रचनाकार रामधारी ¨सह दिवाकर को दिया गया। अगस्त क्रांति रोड स्थित एनसीयूआई ऑडिटोरियम में आयोजित सम्मान समारोह में ¨हदी साहित्य के कई दिग्गज हस्ताक्षरों की मौजूदगी में उन्हें सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि साहित्यकार मृदुला गर्ग व विशिष्ट अतिथि जिलियन राइट, मुरली मनोहर प्रसाद सिहं, प्रो. राजेंद्र कुमार, इब्बार रब्बी, डॉ. दिनेश कुमार, शम्सुर रहमान मौजूद रहे। वहीं समारोह की अध्यक्षता लेखक व पूर्व सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी ने किया।

¨हदी की प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग ने कहा कि दिवाकर का रचना संसार ग्रामीण और किसानी जीवन के इर्द-गिर्द घूमता है। उन्होंने उनके ठेठ देसी अंदाज की भी तारीफ की। सम्मान समारोह के बाद श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' पर दास्तानगो महमूद फारुखी और दारैन शाहिदी ने 'दास्तान-ए-रागदरबारी' की भी प्रस्तुति दी।

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कृषि जीवन की समस्याओं को उभारने के लिए मिला सम्मान : इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी ऐसे रचनाकर को दिया जाता है, जिसकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को मजबूती के साथ रखा गया हो। मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान रामधारी ¨सह दिवाकर से पूर्व विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, और रामदेव धुरंधर को प्रदान किया जा चुका है।

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साहित्य से हैं पांच दशकों का जुड़ाव : अररिया जिले (बिहार) के गांव नरपतगंज में 1 जनवरी 1945 को जन्मे दिवाकर करीब पांच दशकों से अकादमिक और गैर-अकादमिक दुनिया में सक्रिय हैं। दरभंगा के मिथिला विश्वविद्यालय में ¨हदी विभाग के प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना के निदेशक भी रहे। दिवाकर की कहानी पर फिल्म का निर्माण भी किया जा चुका है। उनकी रचनाओं में 'नये गांव में', 'अलग-अलग परिचय', 'बीच से टूटा हुआ', 'नया घर चढ़े', 'सरहद के पार', 'धरातल', 'झूठी कहानी का सच', 'टूटते दायरे' प्रमुख हैं।

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