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दिल्‍ली-एनसीआर का यह छोटा गांव जिसकी खुशबू से गुलजार हो रहा विदेश, जानें क्‍या है खास

कभी पूसा से फूलों के बीज लाते थे पॉलीहाउस बनाकर खेती किया करते। पारंपरिक खेती के मुकाबले जब फूलों की खेती से करीब दस गुना फायदा हुआ तब लगन लग गई कि इसी दिशा में आगे बढ़ना है।

By Prateek KumarEdited By: Updated: Fri, 01 Feb 2019 02:28 PM (IST)
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दिल्‍ली-एनसीआर का यह छोटा गांव जिसकी खुशबू से गुलजार हो रहा विदेश, जानें क्‍या है खास

हापुड़ [मनोज त्यागी]। दिल्ली से लगा उत्तर प्रदेश का हापुड़ जिला, जिसका छोटा सा गांव तिगरी आज फूलों से गुलजार है। तिगरी के फूलों की महक रूस, जर्मनी और जापान तक जा पहुंची है। महज एक बीघा से शुरू की गई फूलों की खेती से श्रद्धानंद आज 50 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। श्रद्धानंद के पिता हरिसिंह ने महज एक बीघा खेत पर फूलों की खेती शुरू की थी। आज सौ बीघा जमीन पर श्रद्धानंद गुलाब, रजनीगंधा, ग्लेडियोलस जैसे फूलों की खेती कर रहे हैं।

पॉलीहाउस में फूलों की खेती कर रहे श्रद्धानंद

इस इलाके को फूलों का निर्यातक बना चुके हैं। वे स्वयं अब तक एक हजार से अधिक किसानों को इस खेती के लिए प्रेरित कर चुके हैं। फूलों की खेती के माध्यम से अपनी माली हालात सुधारने के साथ ही वे 50 लोगों को रोजगार देकर उनके परिवार को भी आर्थिक रूप से मजबूत करने का काम कर रहे हैं। कहते हैं हिम्मते मर्दा मदद-ए-खुदा, शुरुआती दौर में पिता हरिसिंह ने खेत में उगाए फूलों को दिल्ली के अशोक विहार में सड़क किनारे बुके बनाकर बेचना शुरू किया।

पूसा से लाते थे बीज

इसके लिए उनके पिता पूसा से फूलों के बीज लाते और खेतों में बुआई कर पॉलीहाउस बनाकर खेती किया करते। पारंपरिक खेती के मुकाबले जब फूलों की खेती से करीब दस गुना फायदा हुआ तब लगन लग गई कि इसी दिशा में आगे बढ़ना है। धीरे-धीरे उन्होंने रजनीगंधा, गुलदाऊदी, ग्लेडियोलस और गुलाब की खेती शुरू कर दी।

अब विदेशों में जा रहे फूल

आज आलम यह है कि रूस, जापान और जर्मनी सहित यूरोपीय देशों के व्यवसायी यहां से फूल ले जाते हैं। गुलाब का फूल जल्दी खिलकर खत्म न हो जाए इसके लिए उसकी कली पर नेट चढ़ा दिया जाता है। इस तरह की पैकिंग कर ही इसे बाहर भेजा जाता है। श्रद्धानंद ने बताया कि गुलाब के पौधे सात से आठ रुपये प्रति नग मिलते हैं। इसे पुणे से मंगाया जाता है। यह पौधा ज्यादा से ज्यादा फूल देने के लिए जाना जाता है।

शुरुआत में रखना पड़ता है ध्‍यान

इन्हें पॉलीहाउस में तैयार खेत में लगाया जाता है। शुरू में ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। पौधों में पानी देने के लिए डिप सिस्टम लगाया गया है। पाइप में पानी निर्बाध रूप से बहे इसके लिए दो बड़े फिल्टर लगाए गए हैं। इस पद्धति से पानी की खपत न के बराबर होती है।

मिलती है सरकार मदद

सरकार पॉलीहाउस बनाने पर सब्सिडी भी दे रही है। एक एकड़ में तीस हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। गुलाब के पौधे में पहले साल में 30 और दूसरे साल 36 फूल आ जाते हैं। जब विदेश से खरीदार आते हैं तो एक फूल बीस रुपये तक भी बिक जाता है। यह फूल बाजार में औसतन दस रुपये का बिकता है।

कभी सड़क किनारे बेच रहे थे फूल अब विदेश में पढ़ रहे बच्‍चे

सड़क किनारे से विदेश तक श्रद्धानंद के पिता सड़क किनारे फूल बेचा करते थे। आज श्रद्धानंद के बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं। श्रद्धानंद बताते हैं कि जब उनके पिता ने फूलों की खेती शुरू की थी, तब उनके माली हालात अच्छे नहीं थे, लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। फूलों की खेती से उनकी आर्थिक स्थिति सुधर गई है। वह कहते हैं कि किसान को पारंपरिक खेती से आगे बढ़ना पड़ेगा। ऐसा करने से उसकी आय दोगुनी नहीं, दस गुना तक हो जाएगी।

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