अस्पताल में गर्भवती की मौत, देना होगा 20 लाख का मुआवजा
लापरवाही करना ड्यूटी के साथ धोखा है एक फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई इस टिप्पणी का उपभोक्ता आयोग ने अपने एक फैसले में जिक्र करते हुए निजी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की। अस्पताल में एक गर्भवती महिला की मौत इसलिए हो गई थी क्योंकि महिला की देखभाल करने वाली डॉक्टर अस्पताल में मौजूद नहीं थी।
सुशील गंभीर, नई दिल्ली
लापरवाही करना ड्यूटी के साथ धोखा है, एक फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपने एक फैसले में जिक्र करते हुए निजी अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की। आरोप था कि अस्पताल में एक गर्भवती महिला की मौत इसलिए हो गई थी, क्योंकि उसकी देखभाल करने वाली डॉक्टर अस्पताल में मौजूद नहीं थीं। आयोग ने आदेश दिया कि अस्पताल पीड़ित परिवार को 20 लाख रुपये मुआवजा दे। दो सप्ताह में अगर इस आदेश का पालन नहीं किया गया तो उसके बाद आठ फीसद ब्याज के साथ मुआवजे की रकम देनी होगी।
राज्य उपभोक्ता आयोग ने सफदरजंग एंक्लेव निवासी योगेश वटवानी की शिकायत पर फैसला दिया है। योगेश ने वसंत विहार स्थित एंजेल अस्पताल और डॉक्टर जयश्री अग्रवाल के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दायर की थी। शिकायत के मुताबिक योगेश ने सात नवंबर 2006 को पत्नी डॉली को एंजेल अस्पताल में भर्ती कराया था। डॉली नौ माह की गर्भवती थीं। जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो वह तंदरुस्त और खुश थीं। डॉक्टर जयश्री अग्रवाल ने डॉली की जांच की और उसके बाद चली गई। शाम को करीब चार बजे डॉली को ब्लीडिग हुई तो अस्पताल के स्टॉफ ने बेड की चादर बदल दी। कुछ देर बाद डॉली की हालत खराब होने लगी और देखते ही देखते हालात नियंत्रण से बाहर हो गए। योगेश मदद के लिए जहां-तहां भागते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नर्स ने बताया कि डॉक्टर अस्पताल मे नहीं हैं और न ही एनस्थीसिया विभाग से कोई विशेषज्ञ उपलब्ध है। काफी देर बाद जयश्री अस्पताल में आई। इसके कुछ देर बाद बताया गया कि मरीज और अजन्मे बच्चे की मौत हो गई है। नहीं चलीं अस्पताल की दलीलें
अस्पताल और डॉक्टर की तरफ से जो दलीलें दी गई, उन्हें आयोग ने नकार दिया। अस्पताल प्रबंधन का कहना था कि उसके स्तर पर कोई लापरवाही नहीं हुई है। डॉक्टर ने भी कुछ ऐसी ही दलीलें दीं। आयोग ने पाया कि जब डॉक्टर अपने मरीज को छोड़कर अस्पताल से चली गई तो उन्होंने किसी अन्य डॉक्टर की जिम्मेदारी नहीं लगाई। मरीज की स्वास्थ्य प्रगति रिपोर्ट पर भी कोई सलाह या दवा का नाम नहीं था। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट सहित अन्य अदालतों और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के कुछ इसी तरह के फैसलों का हवाला देते हुए पीड़ित के हक में निर्णय लिया। पीड़ित परिवार ने दलील दी थी कि डॉली की ऐसे समय में मौत हुई, जब दो नाबालिग बेटियों को संभालने का वक्त था। कई साल तक चले इस मामले में उपभोक्ता आयोग से हाल ही में फैसला आया है। पीड़ित परिवार ने मुआवजे के तौर पर 26 लाख रुपये का दावा किया था। अदालत ने डॉली की उम्र और हालात को ध्यान में रखते हुए 20 लाख रुपये मुआवजा अदा करने का आदेश दिया।