यमुना और राजनीति दोनों को स्वच्छता का इंतजार
स्वदेश कुमार पूर्वी दिल्ली नानकसर तिराहे से बढ़ते ही सोनिया विहार पुश्ता मार्ग का प्रारंभ हो जा
By JagranEdited By: Updated: Fri, 03 May 2019 06:23 AM (IST)
स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली नानकसर तिराहे से बढ़ते ही सोनिया विहार पुश्ता मार्ग का प्रारंभ हो जाता है। यहा से यमुना और उसकी दुर्दशा साफ नजर आती है। यहां से चार किमी दूरी तय करके यमुना उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचती है। रास्ते में जल हर जगह बस काले रंग का नजर आता है। पानी अमृत होने की बजाय जहर होने का अहसास कराता है। बाढ़ आने पर इससे बचने के लिए सिंचाई विभाग ने कुछ जगहों पर ठोकर भी बनाए थे। इन्हीं में से एक ढाई पुश्ता स्थित ठोकर पर कुछ सामाजिक संस्थाओं ने पार्क नुमा जगह बना दी है। लोग यहा सुबह-शाम सैर के लिए आते हैं। बैठकर इत्मिनान से बातचीत भी करते हैं।
धरातल पर नजर नहीं आता विकास कहीं भी कोई काम नजर नहीं आता है। पहले जिन जगहों खेती होती थी, वहा पर अब अवैध पार्किंग शुरू हो गई है। चौथे पुश्ते पर तो छोटा डलावघर ही बन गया है। यहा इलाके के लोग घरों का कूड़ा डालते हैं। कई बार तो निगम की गाड़ी भी यहीं पर कूड़ा डालकर निकल जाती है। अब जब तट ही साफ नहीं हो पा रहे हैं तो 22 नालों का गंदा पानी अपने अंदर समेटे यमुना कैसे निर्मल हो सकती है। यह अलग बात है कि कागजों में पिछले करीब दो दशकों में यमुना की सफाई के लिए अरबों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। यमुना की सफाई के भी दावे किए जाते हैं लेकिन तस्वीर अलग है। सोनिया विहार में रहने वाले और बेबाक जैनपुरी के नाम से विख्यात कवि अनित्य नारायण मिश्रा कहते हैं कि राजनीति और यमुना एक सी हो गई है। हम दोनों को स्वच्छ होने की उम्मीद किए बैठे हैं लेकिन दोनों में गंदगी पसरती जा रही है। मैं छोटा था तो यमुना को गंदा देखता था। सोचता था कि एक दिन यह साफ हो जाएगी। जवान हुए तो यमुना की सफाई के लिए योजनाएं बनीं, तब लगा कि अब तो कुछ हो ही जाएगा। लेकिन यकीन मानिये जैसे-जैसे यहा आबादी बढ़ी, यमुना में भी गंदगी बढ़ती गई। इसके पीछे कारण हम लोग ही हैं। हमने यमुना को कभी जीवनदायिनी माना ही नहीं। इसे एक नदी के रूप में लिया है, जिसमें नाले आकर मिल जाते हैं। यह अहसास हमारे बीच नहीं है कि यमुना नहीं होगी तो यहा जीवन भी नहीं होगा। यमुना को अपनी मा जब मानेंगे तभी इसके कायाकल्प पर काम होगा। राजनेताओं ने भी इससे मुंह मोड़ रखा है। हर बार छठ के मौके पर नेताओं का यहा जमावड़ा लगता है। वे घोषणा करते हैं कि अबकी बार यहा का नजारा बदला हुआ होगा लेकिन कुछ नहीं बदलता है। निजी कंपनी में नौकरी करने वाले भूपेश गुप्ता कहते हैं कि यमुना को लेकर उन्होंने कभी किसी नेता या किसी विभाग को संजीदा नहीं देखा। यहा सामाजिक संस्थाओं ने आरती की शुरुआत की तो बड़े-बड़े नेता पहुंचे। उन्होंने अपनी तरफ से भी आरती के आयोजन किए। लेकिन यमुना की सफाई के लिए कोई काम नहीं किया। यहा तक कि किसी भी राजनीतिक दल के घोषणापत्र में यमुना का जिक्र नजर नहीं आता। इसी उदासीनता का असर है कि निगम के ट्रक भी यहा आकर मलबा डाल देते हैं। यहा अवैध रूप से पार्किंग बन जाती है। हर दिन मछली बाजार सजता है। लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि यहा कोई सरकारी मशीनरी सक्रिय है जो इन पर निगाह भी रखती है। पाचवें पुश्ते पर ग्रीन-डे पब्लिक स्कूल है। इसके प्रिंसिपल माथन सिंह बताते हैं कि राजनीतिक उपेक्षा का हमेशा से यमुना शिकार रही है। वह करीब 15 सालों से हर दिन यहा आते हैं। उन्होंने तब जो यमुना देखी थी, वह आज से स्वच्छ थी। उन्होंने बताया कि छठ या यमुना आरती के आयोजनों पर भी तट ही सुंदर नजर आते हैं यमुना नहीं। यमुना तट पर कुछ लोगों के साथ घूम रहे दिलीप झा का कहना है कि यमुना को स्वच्छ बनाने के लिए नालों से गिरने वाले पानी को बंद करना होगा। इसके लिए चाहे समानातर नाले बना दिए जाएं या फिर गंदगी को पहले ही रोक दिया जाए। तभी पानी अपने रंग में नजर आ सकता है। इसी मंडली में मौजूद नीरज कुमार कहते हैं कि यमुना की पूजा तो करते हैं लेकिन उसे देवी का दर्जा हमने कभी नहीं दिया। हमने कभी इसकी देखभाल की चिंता नहीं की। बातचीत में उन्होंने यह भी कह दिया कि भाई साहब, यमुना निर्मल हो गई तो एक राजनीतिक मुद्दा भी तो खत्म हो जाएगा। स्थानीय निवासी गौतम कहते हैं कि सुना है यहा पर नाव उतारने वाले हैं। ऐसा कुछ अगर होता है तो पर्यटन स्थल बन जाएगा। शायद इसके बाद प्रशासन यहा के लिए कुछ कदम उठाए।
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