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न यमुना की चिंता, न किनारे रहने वालों की सुध

स्वदेश कुमार पूर्वी दिल्ली यमुना ही नहीं इसके किनारे पर रहने वाले लोग भी राजनीतिक रूप से उ

By JagranEdited By: Updated: Sat, 04 May 2019 06:23 AM (IST)
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न यमुना की चिंता, न किनारे रहने वालों की सुध

स्वदेश कुमार, पूर्वी दिल्ली

यमुना ही नहीं इसके किनारे पर रहने वाले लोग भी राजनीतिक रूप से उपेक्षित हैं। सरकारों ने कई दफा यमुना की सफाई का संकल्प लिया है। यहा कई मौकों पर नेताओं का जमावड़ा भी लगता है और वे यह दावा करते हैं कि अब इसमें से गंदगी दूर करने के लिए ईमानदार प्रयास किए जाएंगे। इसके किनारे पर रहने वालों को पक्के मकान का आश्वासन भी मिलता है। दोनों पर कोई अमल नहीं होता है। यहा रहने वाले लोगों का मानना है कि राजनेताओं को न तो यमुना की कोई चिंता है और न ही इसके किनारे कच्चे आशियाने में रहने वालों की कोई सुध लेता है। हर बार बरसात में आशियाने उजड़ते हैं। फिर यहीं पर डेरा डालने के लिए मजबूर हो जाते हैं। मजबूरी है कि जब आशियाना है तो दो जून की रोटी का भी इंतजाम करना होगा। इसी मजबूरी में यमुना के आचल में ही खेती कर लेते हैं। सरकार हमें पक्के मकान दे दे तो हम रोजी रोटी का इंतजाम वहीं कर लेंगे। इस तरह से यमुना भी बचेगी और हमारी जिंदगी दूसरी पटरी पर दौड़ लगा देगी। आइटीओ पुल से मयूर विहार फेज-एक तक यमुना खादर में जगह-जगह लोग झुग्गिया डालकर रह रहे हैं। यमुना के तट पर सब्जी उगाकर ये लोग अपना जीवनयापन करते हैं। वैसे तो दोनों ही काम अवैध है। लेकिन यहा के लोग इसे अपनी मजबूरी बताते हैं।

शुक्त्रवार को दैनिक जागरण की टीम जब आइटीओ पुल के पास यमुना खादर में पहुंची तो चारपाई बिछाकर चुनाव के मौजूदा हालत पर चर्चा कर लोग मिले। टीम को देखकर सभी लोग शात हो गए। बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन वे तैयार नहीं हुए। दरअसल उन्हें लगा कि हम लोग किसी पार्टी विशेष की तरफ से उनका सर्वे करने पहुंचे हैं। परिचय के बाद वे थोड़े सहज हुए। इसके बाद बातचीत का सिलसिला चला। यहा करीब एक साल से भू-अध्यादेश के लिए आदोलन कर रहे सौवीर सिंह विद्यार्थी कहते हैं कि जिन्हें लोग अवैध बता रहे हैं, उनके पास आधार कार्ड और राशन कार्ड से लेकर मतदाता पहचान पत्र तक हैं। यानी ये जनप्रतिनिधि तो चुन सकते हैं और इस तरह से सरकार बनाने में भी योगदान भी दे सकते हैं। तो क्या सरकार का कोई फर्ज नहीं बनता है। यमुना की सफाई क्या सिर्फ पानी को साफ करने से हो जाएगी। इसके लिए तो समुचित रूपरेखा बनानी होगी। इसके तट पर भी साफ-सुथरे करने पड़ेंगे। चुनाव के समय हर पार्टी घोषणा करती है कि झुग्गियों में रहने वालों को पक्के मकान दिए जाएंगे। यहा के लोगों को कोई पूछने तक नहीं आता है। स्थानीय निवासी महादेव साहनी का कहना है कि यमुना की सफाई के लिए तो हमने किसी को आज तक काम करते नहीं देखा है। हा, छठ, दुर्गा व गणेश विसर्जन के समय यहा के तटों पर सफाई का दिखावा किया जाता है। बड़े-बड़े नेता यहा सफाई करते हुए अपने फोटो खिंचवाकर निकल जाते हैं। इसके बाद वह नजर तक नहीं आते हैं। त्योहार पर यमुना में अतिरिक्त पानी छोड़कर इसे साफ दिखाने की कोशिश होती है पर असलियत यही है कि यमुना मैली थी और अब भी है। राजबली का कहना है कि लगभग हर साल बरसात में यमुना का जलस्तर बढ़ जाता है। इससे ये आशियाने उजड़ जाते हैं। लेकिन हम लोगों को सरकार की तरफ से एक रुपये की भी सहायता नहीं मिलती है। रूमान शाह ने कहा कि यमुना और हमारी जिंदगी एक सी है। दोनों चुनाव के समय चर्चा में आते हैं लेकिन बाद में कोई पूछता नहीं है। इस चुनाव में भी कई नेता यहा पहुंचे। उन्होंने वादा किया कि सभी को मकान मिलेगा। लेकिन हमें पता है कि ये नेता मौसमी हैं। चुनाव के बाद नजर नहीं आएंगे। यहा की महिलाओं में यमुना और अपनी स्थिति को लेकर चर्चा करने में झिझक दिखी। एक महिला ने सिर्फ इतना कहा है कि भइया, कुछ नहीं बदलने वाला है। हमें तो आप हमारे हालात पर ही छोड़ दो। यमुना की सफाई के लिए काम करने वाले स्पर्श-ए टच सोशल वेलफेयर सोसायटी नामक संस्था के सदस्य धीरज यादव का कहना है कि यमुना की सफाई के लिए कोई भी संजीदा नहीं है। दरअसल यमुना की देखभाल करने के लिए कोई एजेंसी तक नहीं है। यही वजह है कि यमुना खादर की जमीनों पर अवैध कब्जे होते हैं। पार्किंग चलती है। यहा तक कि रेत का अवैध खनन का धंधा भी यमुना के किनारे फल-फूल रहा है। चुनावी समय है तो बात हो रही है लेकिन इसके बाद कोई इसकी चर्चा नहीं करता है।

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