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मुखर्जी नगर और जीटीबी नगर
गुजरात के कोचिग सेंटर में आग लगने से हुई छात्रों की मौत की घटना ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है। आखिरकार, आगजनी से निपटने के लिए सावधानी क्यों नहीं बरती जाती है। इसे लेकर बनाए गए दिशा-निर्देशों का पालन तो दूर ऐसी घटनाओं के लिए लापरवाह लोगों पर सख्त कार्रवाई भी नहीं होती है। इन हालातों में अब दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में चल रहे कोचिग सेंटर की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। इसके मद्देनजर उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली क्षेत्र में चल रहे कोचिग सेंटरों की बात करें तो मुखर्जी नगर और जीटीबी नगर ऐसे इलाके हैं, जहां सबसे अधिक संख्या में कोचिग सेंटर चलाए जा रहे हैं। जिनमें आग की घटनाओं से बचाव के लिए इंतजाम तो दूर, फायर एनओसी के सर्टिफिकेट तक नहीं हैं। स्थानीय लोगों का भी यही मानना है कि दुर्भाग्यवश यदि कभी आग की घटना होती है तो यहां बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हो सकता है।
दमकल गाड़ियों का पहुंचना मुश्किल
मुखर्जी नगर में पिछले 10 वर्षो से अधिक समय से रह रहे सुरेंद्र कुमार ने बताया कि इलाके में करीब एक हजार से अधिक कोचिग सेंटर हैं। यहां आसपास के क्षेत्रों में परमानंद कॉलोनी, इंदिरा विहार, ढका, गांधी विहार, आउट्रम लेन और हर्टसन लेन जैसे ऐसे इलाके हैं, जहां संकरी गलियों के भीतर बने कोचिग सेंटर में दमकल वाहनों का पहुंचना तो दूर छात्र-छात्राओं को पहुंचने में भी दिक्कत आती है। इन सेंटरों के बाहर गलियों से होते हुए भवनों के नजदीक तारों का जंजाल भी इस कदर फैला हुआ है, जिससे कभी भी शॉर्ट-सर्किट के कारण आग लगने का खतरा हो सकता है। साथ-साथ इन इलाकों में कई लाइब्रेरी भी बने हुए हैं, जिनमें विद्यार्थी घंटों पढ़ाई करते हैं। किताबों से घिरे इन स्थानों पर आग की घटना भयानक हो सकती है। स्थानीय निवासी अलका रानी का कहना है कि गर्मी के दिनों में विभिन्न प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए चल रहे कोचिग सेंटरों में धड़ल्ले से एसी चलाए जाते हैं, लेकिन कम जगह होने की वजह से इनके शॉर्ट-सर्किट होने का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, इन सेंटरों में अधिक से अधिक छात्र बैठ सकें इसलिए सीढि़यों को बनाने के लिए जगह नहीं दी जाती, जिसके कारण सीढि़या बहुत संकरी हो जाती है। जब भी कभी कोचिग में छुट्टी होती है और कक्षाएं शुरु होती है तो विद्यार्थियों की बड़ी संख्या सड़कों पर नजर आती है। इतना ही नहीं इन इलाकों में अतिक्रमण भी खूब है और जगह-जगह रेहड़ी-पटरी, फल-जूस की छोटी दुकानों की भरमार है। ऐसे में जरूरत पड़ने पर यहां दमकल के वाहनों का आना मुश्किल होगा। इसके अलावा उत्तरी दिल्ली के रोहिणी, शालीमार बाग, आजादपुर, आदर्श नगर, त्रिनगर और केशवपुरम जैसे क्षेत्रों में भी छिटपुट कोचिग सेंटर चल रहे हैं और उनका हाल भी कुछ ऐसा ही है। मंगोलपुरी निवासी छात्र विशाल का कहना है कि रोहिणी सेक्टर 8 स्थित कोचिग सेंटर की दूसरी मंजिल पर पढ़ने के लिए संकरी सीढि़यों से गुजरना होता है, जिसमें एक बार में एक ही व्यक्ति जा सकता है। अधिकतर कोचिग सेंटर में पहली मंजिल पर ऑफिस और दूसरी-तीसरी पर कक्षाएं चलती हैं। आगजनी की घटना को देखते हुए स्थानीय मार्केट की दुकानों से लेकर इलाके में चल रहे कोचिग सेंटर के फायर एनओसी की जांच फिर से होनी चाहिए। इसके तहत लाइसेंस की जांच के लिए दूसरी कंपनियों को जिम्मेदारी देनी होगी ताकि अवैध लाइसेंस और एनओसी से पर्दा उठ सके। किसी भी प्रकार की कमी पाए जाने पर तत्काल लाइसेंस रद्द किया जाए। आलोक शर्मा, अध्यक्ष, निर्माण समिति, उत्तरी दिल्ली नगर निगम निगम की कार्रवाई के बाद कोचिग सेंटरों ने बोर्ड तो हटाए, लेकिन अब भी इसमें मिलीभगत के कारण बोर्ड की भरमार हर तरफ देखने को मिल रही है। ऐसे में आगजनी जैसी घटनाओं से पहले ही ठोस कदम उठाते हुए कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि बच्चों की जान पर न बने। विजय चोपड़ा, जीटीबी नगर
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