यहां पर पढ़िए- दिल्ली और एक अरब का कनेक्शन, PM मोदी भी लाए रिश्तों में गर्माहट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अरब देशों की बेहद सफल यात्रा से भारत और अरब करीब आए हैं।
नई दिल्ली [विवेक शुक्ला]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अरब देशों की बेहद सफल यात्रा से भारत और अरब करीब आए हैं। प्रधानमंत्री को संयुक्त अरब अमीरत ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर भारत के प्रति अपनी दोस्ती का इजहार किया, पर हमारी दिल्ली के अरब से संबंध तो बहुत पुराने और मैत्रीपूर्ण रहे हैं। आपने दिल्ली में सराय काले खान, बेर सराय, सराय जुलैना आदि के नाम तो सुने हैं, तो आपने अरब की सराय का नाम भी अवश्य सुना होगा। इसी से संकेत मिल जाता है कि दिल्ली का अरब से सीधा संबंध रहा है।
दरअसल मुगल बादशाह हुमायू की पत्नी हामिदा बानों बेगम सन् 1560 में अरब यात्रा पर गईं तो वहां से 300 अरब मजदूर लेकर आईं थीं। वो वहां पर हज करने के लिए गईं थीं। इन सबके लिए हुमायू के मकबरे के पास ही रहने की व्यवस्था हुई थी। यह जगह ईस्ट निजामउद्दीन में है। ये सारा क्षेत्र सच में बेहद ऐतिहासिक है। इसके आसपास कई खास स्थान हैं गालिब का मकबरा, हजरत निजामुद्दीन और अमीर खुसरो की दरगाह आदि।
कुछ समय पहले इंटेक की पहल पर अरब की सराय का गेट सही किया गया। कहते हैं कि ये तब ही बना था जब अरब के मजदूर दिल्ली आए थे। ये 12 मीटर लंबा है। इधर एक मस्जिद भी है, पर अफसोस की बात यह है कि इस स्थान को कम से कम अरब के दिल्ली में आने वाले पर्यटकों तक को प्रभावित करने के लिए कभी कोई ठोस प्रयास नहीं हुए। इस दिशा में अब कुछ कोशिश हों तो ठीक रहेगा। दिल्ली में हर साल अरब देशों से बड़ी तादाद में पर्यटक आते हैं। उनके लिए यह आकर्षण का केंद्र है। आप समझ सकते हैं कि 400 बरस से पहले दिल्ली में अरब के नागरिक आकर बसे थे। ये कोई सामान्य घटना तो नहीं थी। इतिहासकारों ने भी उन अरब नागरिकों के वंशजों को खोजने की कोई कोशिश नहीं की। बेशक वे दिल्ली या इसके आसपास ही होंगे। हालांकि अब तो वे पूरी तरह से भारतीय हो चुके होंगे। जो अरब नागरिक भारत आए थे वे फिर वापस तो गए नहीं थे।
बहरहाल, अपनी दिल्ली में अरब देश मिस्न के राष्ट्रपति नासेर के नाम पर एक सड़क है। उन्होंने अपने देश में राजशाही को उखाड़ फेंका था। उन्होंने मिस्न को एक आधुनिक राष्ट्र बनाया। हालांकि बाद के सालों में मिस्न उनके सपनों का नहीं रहा। उनकी 1970 में अंत्येष्टि में 50 लाख लोग पहुंचे थे। भारतीय नेताओं से से उनके व्यक्तिगत संबंध थे। उनके नाम पर राजधानी में बीसवीं सदी के आठवें दशक में गमाल आब्देल नासेर मार्ग रखा था। हौजखास में डियर पार्क से सटी रोड को ही गमाल आब्देल नासेर मार्ग कहते हैं। नासेर कई बार भारत भी आए। नेहरु तथा नासेर ने युगोस्लाविया के जोसेफ ब्रॉज टीटो के साथ मिलकर गुट निरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी। ये सभी तीसरी दुनिया के नायक थे।
इस बीच राजधानी में अरब देशों जैसे संयुक्त अरब अमीरत, सउदी अरब, ओमन, बहरीन आदि के दूतावास काम कर रहे हैं। इनकी खास बात यह है इनमें काम करने वाले बहुत से देशों से होते हैं। इस लेखक को संयुक्त अरब अमीरत के दूतावास में सूचना अधिकारी के रूप में काम करने का अवसर मिला है। तब इस लेखक ने देखा कि इनमें बहुत से देशों के नागरिक अपनी सेवाएं देते हैं। उनमें से कुछ भारत में ही बस जाते हैं। बहरहाल, दिल्ली में इतने लंबे समय पहले अरब के नागरिकों का आना बताता है कि दिल्ली का चरित्र शुरू से ही समावेशी रहा है। दिल्ली ने उन सभी को गले लगाया जो यहां पर आए।
(लेखक इतिहासकार भी हैं)