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दिल्ली के प्रदूषण में पराली से ज्यादा आंतरिक कारक जिम्मेदार

मौसम में बदलाव के साथ ही दिल्ली एनसीआर की हवा भी बदल गई है। करीबतीन माह से अच्छी या संतोषजनक श्रेणी में चल रही हवा कुछ दिनों से खराब या बहुत खराब श्रेणी में आ गई है।

By Pooja SinghEdited By: Updated: Mon, 21 Oct 2019 09:41 AM (IST)
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दिल्ली के प्रदूषण में पराली से ज्यादा आंतरिक कारक जिम्मेदार
नई दिल्ली जेएनएन। मौसम में बदलाव के साथ ही दिल्ली एनसीआर की हवा भी बदल गई है। करीबतीन माह से अच्छी या संतोषजनक श्रेणी में चल रही हवा कुछ दिनों से खराब या बहुत खराब श्रेणी में आ गई है। मौसम विभाग एवं सफर का पूर्वानुमान है कि जैसे जैसे हवा में नमी बढ़ेगी, वायु प्रदूषण में भी इजाफा होता जाएगा। इसी के मद्देनजर 15 अक्टूबर से दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण से जंग के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) भी लागू कर दिया गया है। वायु प्रदूषण से जंग में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) का भी काफी अहम रोल है। सीपीसीबी द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी साझा करने के लिए सीपीसीबी के सदस्य सचिव डॉ. प्रशांत गार्गवा से संजीव गुप्ता ने कई मुद्दों पर बात की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश।

दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में पराली के रोल पर क्या कहेंगे?

पराली का धुआं प्रदूषण तो बढ़ाता ही है। सफर से इस धुएं के हिस्से की जानकारी भी मिलती रहती है। लेकिन, पराली के धुएं से ज्यादा यहां के प्रदूषण में आंतरिक कारकों का रोल होता है। अगर हम वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों पर जाएं तो इसमें वाहनों का धुआं, धूल उड़ना, मलबा, खुले में कचरा जलना और औद्योगिक क्षेत्रों का धुआं है।

प्रदूषण के स्नोत मापने और इस पर अघ्ययन का कोई तरीका या मशीन नहीं है क्या?

प्रदूषण का स्तर मापने के लिए दिल्ली-एनसीआर में 115 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगे हुए हैं। जहां तक किसी अध्ययन का सवाल है तो उसकी एक कार्यप्रणाली होती है, एक तरीका होता है। कोई भी अध्ययन वैज्ञानिक आधार पर ही किया जाता है।

प्रदूषण कम करने के लिए प्रयास तो काफी हो रहे हैं, लेकिन प्रदूषण तब भी बढ़ रहा है, क्यों?

पहले के मुकाबले तो स्थिति में काफी सुधार हुआ है। इस साल अभी तक 273 में से 112 दिन पीएम 2.5 का स्तर तय मानकों पर या उससे कम रहा है जबकि पिछले साल यह संख्या महज 98 थी। इसी तरह इस साल 61 दिन पीएम 10 तय मानकों पर या उससे कम रहा है जबकि पिछले साल ऐसे दिन सिर्फ 40 थे। इसी आधार पर यह कह सकते हैं कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

प्रदूषण से जंग में मुख्य गतिरोध क्या हैं?

जन जागरूकता और अधिक बढ़ाने की जरूरत है। सख्ती का दायरा भी बढ़ाना होगा। हालांकि दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि ग्रेप के तहत उठाए गए कदमों मसलन फैक्ट्रियों के खिलाफ की गई सख्त कार्रवाई, प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों पर रोक और धूल थामने के लिए किए जा रहे उपायों से स्थिति बेहतर हो रही है।

 

सर्दियों के वायु प्रदूषण में जेनरेटर के धुएं का शेयर कितना रहता है? जेनरेटर के धुएं का शेयर पांच फीसद के आसपास कहा जा सकता है। पराली जलाने पर ठीक से रोक क्यों नहीं लग पा रही है?

पिछले सालों के मुकाबले पराली जलाने की घटनाएं भी कम हुई हैं। इस पर अधिकाधिक रोक लगाने के लिए राज्य और केंद्र सरकारों के स्तर पर सभी संभव प्रयास किए जा रहे हैं।

तमाम उपाय करने के बाद भी दिल्ली में प्रदूषण क्यों बढ़ता है?

इसके लिए प्रदूषण के आंतरिक स्नोत तो जिम्मेदार हैं ही, उससे भी बड़ी वजह मौसमी परिस्थितियां हैं। सर्दियों के दौरान हवा की गति या तो कम हो जाती है या फिर नहीं के बराबर रह जाती है। ऐसे में हवा की नमी के साथ प्रदूषक तत्व भी जमने लगते हैं। हालांकि जैसे ही हवा की रफ्तार बढ़ती है, प्रदूषण का स्तर नीचे आ जाता है।

इस बार की सर्दियों में प्रदूषण का स्तर कैसा रहने वाला है और सीपीसीबी की क्या तैयारियां हैं?

अभी तक की स्थिति को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि इस बार हालात अच्छे और नियंत्रण में ही रहेंगे। जहां तक तैयारियों का सवाल है तो सीपीसीबी की 46 टीमें दिल्ली व इससे लगते शहरों के अलावा पहली बार सोनीपत, मेरठ और रोहतक में भी जाकर स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। अभी तक यह टीमें विभिन्न एजेंसियों को कुल 689 शिकायतें भेज चुकी हैं। इनमें दिल्ली की बात करें तो सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर-पूर्वी, उत्तर पश्चिमी, पूर्वी और पश्चिमी दिल्ली से हैं।

सबसे अधिक शिकायतें कंस्ट्रक्शन एंड डेमॉलिशन वेस्ट, खुले में कूड़ा जलाने, सड़कों की धूल और गड्ढों से जुड़ी हैं। इसके अलावा सर्दियों में प्रदूषण से निपटने के लिए 13 हॉट स्पॉट बनाए गए हैं, यहां लोकल प्लान के हिसाब से काम किया जा रहा है। 15- 15 दिन के पूर्वानुमान के लिए आइआइटी दिल्ली से भी करार किया गया है। एक अक्टूबर से इस प्लान पर भी काम शुरू हो चुका है।

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