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प्रदूषण रोकने को लगा झटका, मुंबई के बाद अब दिल्ली में भी फेल हुआ 'WAYU'

2018 में नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटयूट ने आइटीओ आनंद विहार वजीरपुर शादीपुर डिपो जैसे दिल्ली के व्यस्त चौराहों पर हवा को साफ करने के लिए वायु संयंत्र लगाए थे।

By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 21 Oct 2019 10:34 AM (IST)
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प्रदूषण रोकने को लगा झटका, मुंबई के बाद अब दिल्ली में भी फेल हुआ 'WAYU'
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए विभिन्न चौराहों पर लगाए गए वायु संयंत्र (विंड ऑगमेंटेशन प्योरीफाइंग यूनिट) मुंबई के बाद दिल्ली में भी फ्लॉप हो गए हैं। यह हवा के प्रदूषण को आधा भी साफ नहीं कर पा रहे, इसीलिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने इन्हें केवल छोटी जगहों के लिए उपयोगी करार देते हुए दिल्ली में इसके विस्तार की संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है।

गौरतलब है कि सीपीसीबी की सहमति से 2018 में नीरी (नेशनल एन्वायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीटयूट) ने आइटीओ, आनंद विहार, वजीरपुर, शादीपुर डिपो जैसे दिल्ली के व्यस्त चौराहों पर हवा को साफ करने के लिए वायु संयंत्र लगाए थे।

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पहले यह छोटे आकार के लगाए गए थे जबकि बाद में बड़े आकार के लगा दिए गए। हालांकि जब यह संयंत्र लगाए गए थे तो भी यह सवाल उठा था कि मुंबई में फ्लॉप हो जाने के बावजूद इन्हें दिल्ली में क्यों लगाया जा रहा है। लेकिन, सीपीसीबी और नीरी के अधिकारियों ने तब यह कहा था कि दिल्ली और मुंबई की भौगोलिक स्थिति एक समान नहीं है। दिल्ली में यह जरूर कारगर हो जाएंगे। लेकिन, यहां भी अनुकूल परिणाम सामने नहीं आए।

कुछ माह बाद नीरी ने स्वयं भी अपनी एक विश्लेषण रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि यह हवा को साफ तो कर रहा है, लेकिन इसका फिल्टर चार से छह दिन में ही दम तोड़ देता है। आनंद विहार में चार एवं आइटीओ पर छह दिनों में ही फिल्टर दम तोड़ रहे हैं। यहां फिल्टर पूरी तरह चॉक हो जाते हैं।

इसकी वजह यह बताई गई थी कि आनंद विहार में धूल और यातायात दबाव अधिक है जबकि आइटीओ पर ट्रैफिक के साथ रेड लाइट भी अधिक देर की है। हालांकि इस रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया था कि इससे पीएम 10 के स्तर में 42 से 60 फीसद जबकि पीएम 2.5 में 42 से 43 फीसद तक की कमी आई है।

अब करीब एक वर्ष बाद वायु की समग्र रिपोर्ट में इसे दिल्ली के बड़े चौराहों के लिए बहुत कारगर नहीं माना गया है। सीपीसीबी का कहना है कि किसी हाउसिंग सोसायटी, छोटी कॉलोनी अथवा किसी क्षेत्र विशेष में तो इनके जरिये प्रदूषित हवा को साफ किया जा सकता है, लेकिन बड़े चौक चौराहों के लिए यह उपयोगी नहीं हैं।

डॉ. प्रशांत गार्गवा (सदस्य सचिव, सीपीसीबी) का कहना है कि  वायु का परिणाम औसतन 40 फीसद के आसपास रहा है। इतने भर से काम नहीं चलेगा। वैसे भी यह एक पायलट प्रोजेक्ट ही था, इसलिए हमारी नजर में इसके विस्तार का अब कोई औचित्य नहीं है। खासतौर पर बड़ी जगहों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं।

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