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बस क्लिक पर मिलेगा एक सदी की हवा का हाल, मिलेंगे 115 साल के प्रदूषण के आंकड़े

50 लाख से ज्यादा के बजट और अमेरिकन संस्था एन्वायरमेंट डिफेंस फंड (ईडीएफ) के साथ समझौता कर उसकी मदद से तैयार की गई यह वेबसाइट बुधवार को लांच की जाएगी।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 06 Nov 2019 07:50 AM (IST)
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बस क्लिक पर मिलेगा एक सदी की हवा का हाल, मिलेंगे 115 साल के प्रदूषण के आंकड़े
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। आज हम जिस हवा में खांस रहे हैं, क्या हमारे बुजुर्ग भी ऐसी ही हवा में सांस लेते थे? कुछ दशक पहले हवा का हाल कैसा था? एक सदी पहले वायु की गुणवत्ता कैसी होती थी? यह जानने के लिए आपको इतिहास के पन्ने पलटने की जरूरत नहीं है। अब कंप्यूटर के एक क्लिक पर पाई जा सकेगी। जी हां, बुधवार से ऐसा वाकई होने जा रहा है।

मिलेंगे 115 साल के प्रदूषण के आंकड़े 

देश-विदेश के इतिहास में पहली बार वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) व राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने वायु प्रदूषण के एक सदी से अधिक पुराने इतिहास को डिजिटल रूप में समेटा है। ‘इंड एयर’ नाम से एक ऐसी वेबसाइट तैयार की गई है, जिस पर करीब 115 साल के प्रदूषण के आंकड़े और इतिहास की जानकारी हासिल की जा सकती है।

50 लाख से ज्यादा खर्च में हुई वेबसाइट तैयार

50 लाख से ज्यादा के बजट और अमेरिकन संस्था एन्वायरमेंट डिफेंस फंड (ईडीएफ) के साथ समझौता कर उसकी मदद से तैयार की गई यह वेबसाइट बुधवार को लांच की जाएगी। इस वेबसाइट पर 1905 से 2019 तक के वायु प्रदूषण का इतिहास समेटा गया है। 1905 से पहले की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

तीन हिस्सों में बंटी है वेबसाइट

नीरी के मुताबिक इंड एयर वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी को मुख्यतया तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में 1905 तक से उपलब्ध प्रदूषण मापक यंत्रों, नियम और मानकों की जानकारी दी गई है। दूसरी में पर्यावरण संस्थाओं, शैक्षिक संस्थानों और विशेषज्ञों के द्वारा किए गए अध्ययन की रिपोर्ट उपलब्ध होंगी। तीसरी श्रेणी में पर्यावरण प्रदूषण पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऐसे अध्ययनों, जो भुगतान करने पर ही मिल पाते हैं, का सारांश भी इस वेबसाइट के जरिये पढ़ा जा सकेगा।

लगातार अपग्रेड होती रहेगी वेबसाइट

डॉ. राकेश कुमार (निदेशक, सीएसआइआर-नीरी) के मुताबिक, इंड एयर वेबसाइट पर पर्यावरण के क्षेत्र की जानकारी ही नहीं मिलेगी बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यह मील का पत्थर साबित होगी। इस वेबसाइट पर विस्तार से जाना जा सकेगा कि प्रदूषण का दंश कब और किस तरह शुरू हुआ, कैसे बढ़ा, इसकी रोकथाम के लिए क्या कुछ किया गया, देश विदेश के अध्ययन इस पर क्या कहते हैं इत्यादि। वेबसाइट लांच होने के बाद भी इसके अपग्रेडेशन का काम लगातार होता रहेगा।

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