Delhi Police vs Lawyers: HC ने कहा- पुलिस-वकील एक ही सिक्के के दो पहलू, बैठकर सुलझाएं मसला
HC ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में दिल्ली पुलिस व बार एसोसिएशन कानून की रक्षा करने वाले और समाज को उपद्रवियों से बचाने वाले हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि आपस में सामंजस्य बनाएं।
By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 07 Nov 2019 07:51 AM (IST)
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। तीस हजारी मामले पर हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है, अदालत ने कहा कि पुलिस और अधिवक्ता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए आपस में बैठ कर मसले को सुलझा लें। लोकतांत्रिक व्यवस्था में दिल्ली पुलिस और बार एसोसिएशन कानून की रक्षा करने वाले और समाज को उपद्रवियों से बचाने वाले हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि वह आपस में सामंजस्य बनाकर काम करें।
मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की मुख्य पीठ ने कहा कि पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच किसी भी प्रकार का मतभेद या टकराव शांति और सौहार्द के लिए हानिकारक है। यह आम नागरिकों के भी हित में नहीं है। इसलिए पूरे मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत का यही सुझाव है कि अधिवक्ता और पुलिस की तरफ से जिम्मेदार लोग संयुक्त बैठक करें और दोनों के बीच पैदा हुए विवाद को बातचीत और सकारात्मक नजरिये से हल करने की कोशिश करें।
पीठ का मानना है कि बीते कुछ दिनों से चल रहा विवाद पुलिस और अधिवक्ताओं के बीच वार्तालाप में कमी के कारण है। पीठ को यह उम्मीद है कि अगर ईमानदारी से कदम उठाया जाए तो शांति और सौहार्द दोबारा से कायम हो सकता है। इस बीच पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि पूरे मामले की जांच निष्पक्ष तरीके से होगी और घटना से जुड़े सुबूतों के आधार पर इस मामले में अंतिम निर्णय लिया जाएगा। साथ ही यह भी साफ कर दिया कि 3 नवंबर को उनके द्वारा दिया गया आदेश प्राथमिक है। इसलिए जांच के दौरान सामने आने वाले सुबूतों के आधार पर दोनों पक्षों को आरोप साबित करने होंगे।
तीस हजारी अदालत में दो नवंबर को पुलिसकर्मियों व वकीलों के बीच हुई हिंसक झड़प मामले में केंद्र सरकार के आवेदन पर दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई। सभी पक्षों को सुनने के बाद केंद्र सरकार के आवेदन पर हाई कोर्ट ने कहा कि तीन नवंबर के फैसले में स्पष्ट था कि दो नवंबर को अधिवक्ताओं के खिलाफ दर्ज की गई दो एफआइआर में आगे कोई तत्काल कार्रवाई न की जाए।पीठ ने दिल्ली पुलिस के आवेदन पर कहा कि लाठीचार्ज और फायरिंग का आदेश देने के आरोप में वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले के संबंध में दिया गया आदेश प्राथमिक है और इसे तीन नवंबर के फैसले के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। हालांकि, दोनों तथ्यों को घटना के सुबूतों के आधार पर जांच में साबित करना होगा और यह न्यायिक जांच का हिस्सा है।
मीडिया कवरेज पर रोक से अदालत का इनकारसुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने सुनवाई के दौरान मीडिया कवरेज पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने कहा कि पूरे मामले में एकतरफा अधिवक्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है और इससे आम लोगों के बीच अधिवक्ताओं की छवि खराब हो रही है। कोर्ट ने मीडिया कवरेज पर रोक लगाने से मना कर दिया। गौरतलब है कि दो नवंबर को तीस हजारी कोर्ट परिसर में पार्किंग विवाद के बाद पुलिस व वकीलों के बीच ¨हसक झड़प हुई थी। मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए रविवार को मुख्य पीठ ने दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति एसपी गर्ग के नेतृत्व में न्यायिक जांच का आदेश दिया था। पीठ ने दिल्ली पुलिस के दो कर्मचारियों को निलंबित करने व दो अधिकारियों का तबादला करने का भी आदेश दिया था। मुख्य पीठ ने जांच पूरी होने तक किसी भी अधिवक्ता के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए घटना में घायल हुए अधिवक्ता विजय वर्मा, अधिवक्ता पंकज दुबे और पंकज मलिक का बयान रिकॉर्ड कर एफआइआर दर्ज करने का आदेश दिया था। उन्हें मुआवजा देने का भी आदेश दिया था।
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