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पाकिस्तान की जेल में 4 साल गुजारे, फांसी से बचे तो देश से निकाला, पढ़िए-पूरी स्टोरी

Poet Faiz Ahmad Faiz शायर फैज अहमद फैज को 4 साल तक जेल में रखा। गनीमत रही कि उनके खिलाफ इल्जाम साबित नहीं हो पाए वरना उन्हें फांसी पर लटका दिया जाता।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 20 Nov 2019 07:00 PM (IST)
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पाकिस्तान की जेल में 4 साल गुजारे, फांसी से बचे तो देश से निकाला, पढ़िए-पूरी स्टोरी
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]।Poet Faiz Ahmad Faiz :  बात इश्क-मोहब्बत की हो, अदावत-बगावत या फिर जुल्म-ओ-सितम की, जेहन में एक ही शायर का नाम आता है फैज अहमद फैज। महबूब से इश्क हो या जुदाई का आलम। मुल्क पाकिस्तान हो या बांग्लादेश या फिर हिंदुस्तान नगमा तो शायर फैज का ही गाया जाता है। बतौर शायर, पत्रकार, सैनिक, सैन्य अफसर, माशूक, लेखक और न जाने क्या-क्या... या कहें हर सांचे में ढल जाने वाले शायर फैज अहमद फैज को याद करने का दिन है। दरअसल, 20 नवंबर 1984 को इस नगमानिगार ने दुनिया को अलविदा कहा, लेकिन जाने से पहले ऐसे नगमे और शायरी दुनिया को बख्श गए कि जमाना सदियों-सदियों गुनगुनाता रहेगा।

पाकिस्तान से ज्यादा हिंदुस्तान में मिलती है इज्जत

राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार रहे पाकिस्तान में शायरों की स्थिति भी हमेशा से कोई खास अच्छी स्थिति नहीं रही है। यही वजह है कि फैज अहमद फैज के बाद ऐसे बहुत से शायर हुए हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की हुकूमतों को अपने नगमों में लताड़ा है। सच बात तो यह है कि दक्षिण एशिया ही नहीं दुनिया के नामी शायरों में शुमार फैज अहमद फैज ने मोहब्बत, अदावत और बगावत के ऐसे नगमें गाए कि जमाना उनका दीवाना हो गया। पाकिस्तान में जन्में इस शायर को असल इज्जत हिंदुस्तान में मिलती है। आज भी उनके लिखे मोहब्बत के नगमें हो या फिर बगावत और इजहार-ए-जुल्म के, खूब गाए जाते हैं।

पाकिस्तान की जेल में गुजारे 4 बरस

राजनीति उथल-पुथल के लिए बदनाम पाकिस्तान में शायरों की क्या हालत है? यह किसी से छिपी नहीं है। हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां की हुकूमत ने नाराजगी और गलतफहमी में शायर फैज अहमद फैज को 4 साल तक जेल में रखा। गनीमत रही कि उनके खिलाफ इल्जाम साबित नहीं हो पाए, वरना उन्हें फांसी पर लटका दिया जाता। हुआ यूं कि बरस, 1951 में पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान का तख्ता पटल की साजिश हुई थी, यह अलग बात है कि ऐसा करने वालों को कामयाबी नहीं मिली। साजिश के शक में जगह-जगह छापे मारे गए, बड़ी तादात में लोग गिरफ्तार हुए और गिरफ्तार लोगों में शायर फैज अहमद फैज भी थे।

पाकिस्तान में चर्चा थी, फैज को होगी फांसी

शायर फैज अहमद फैज जेल में भी डाले गए। हद तो तब हो गई जब उन पर बगावत करने के इल्जाम में मुकदमा चलाया गया। पाकिस्तान में उस दौरान में चर्चा-ए-आम था कि फैज को फांसी की सजा तो होगी ही। यह तो गनीमत रही कि तत्कालीन पाकिस्तानी हुकूमत उन पर लगे बगावत के इल्जाम साबित नहीं कर पाई, वरना यह शायर 50 के दशक में ही फांसी पर लटका दिया जाता। खैर, शुक्र रहा और वे 1955 में जेल से बाइज्जत रिहा हो गए। यह अलग बात है कि जेल से रिहा करने के दौरान उन पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी गईं। यह बात भी सच है कि फैज ता उम्र यही फरमाते रहे कि उन्हें बेवजह ही जेल में डाला गया था और यह बात उनके रिश्तेदार भी जानते थे और कहते थे कि उनका रावलपिंडी केस में कोई हाथ नहीं था। उन्हें बेवजह ही जेल में डाला गया।

पाबंदियों ने पुख्ता कर दिए जज्बात

फैज अहमद फैज जिंदगी, मोहब्बत के शायर थे इसलिए पाबंदियां भी उनके जज्बात न रोक सकीं और ये जज्बात उनके नगमों और शायरी में झलके। 'मुझे से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग’ लिखने वाले फैज ने 'ऐ खाक नशीनों उठ बैठो वो वक्त करीब आ पहुंचा है जब तख्त गिराए जाएंगे ताज उछाले जाएंगे'। उनकी गजलों को पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश के सभी गायकों ने गाया है।

कभी कम्यूनिस्ट कहा तो कभी इस्लाम के खिलाफ बताया

बगालत और जुल्म के खिलाफ जंग की बातें फैज अहमद फैज के नगमों में झलकती है। नास्तिक का तमगा लगवा चुके फैज को कभी कम्यूनिस्ट कहा गया तो कभी उनको इस्लाम के खिलाफ ही करार दिया गया। वहीं, शायर फैज इन सारे इल्जाम और तोहमत के बावजूद लिखते रहे जो मन किया, जो दिल बोला।

देश से भी निकाले गए फैज

फैज अहमद फैज से लियाकत अली खां की सरकार इस कदर नाराज थी कि बरी होन के बावजूद सरकार ने तख्तापलट के लिए 1977 में कई सालों तक देश निकाला दे दिया। यही वजह थी कि 1978 से लेकर 1982 के दौरान पाकिस्तान से बाहर रहे। इससे पहले 1965 यानी भारत-पाक युद्ध के समय वह पाकिस्तान के सूचना मंत्रालय विभाग में अधिकारी थे। बताया जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान के युद्ध के इरादे को विरोध किया था। 

पहली मुलाकात थी और दे दिया दिल

फैज ने जितना अपनी शायरी में जुल्म के खिलाफ लिखा उतना ही मोहब्बत-इश्क के लिए भी। कुछ लोग उन्हें मोहब्बत का शायर भी मानते हैं। तमाम तकलीफों से गुजरने वाली उनकी निजी जिंदगी भी बेहद मोहब्बत भरी रही। दरअसल, अमृतसर में बसने के दौरान उनकी मुलाकात एलिस से हुई। पहली ही मुलाकात में एलिस को देखते ही फैज अपना दिल दे बैठे तो एलिस भी अपना दिल हार गईं। फिर चंद मुलाकातों के बाद 1941 में दोनों एक-दूसरे के हमसफर बन गए। यहां पर बताना जरूरी है कि अमृतसर के एम ओ कॉलिज के प्रिसिंपल डॉ. तासीर की पत्नी की बहन थीं एलिस, जो भारत अपनी बहन से मिलने आई थीं। फिर इसी दौरान मुलाकात में इश्क हो गया।

शायर फैज ने पाकिस्तानी आर्मी को भी अपनी सेवाएं दीं, वह साल 1942-1947 तक ब्रिटिश सेना में कर्नल के पद पर रहे और ईमानदारी से देश की सेवा की। यह अलग बात है कि इस दौरान भी वह पाकिस्तान के हुक्मरानों को खटकते रहे। बगावत के इल्जाम में जेल भी रहे और फिर सेना में मन न रमा तो राजनीति भी की और मजदूरों के हक में खड़े हुए और अपने गीतों और नगमों से दुनिया के जुल्मी शासकों को ललकारते रहे।