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केंद्र ने दिल्ली सरकार से कहा- ईस्टर्न व वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए जल्द दो 3500 करोड़

हलफनामे के मुताबिक दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से के क्रमश 3668.21 करोड़ और 63.47 करोड़ रुपये केंद्रीय पूल में जमा नहीं कराए हैं।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 23 Nov 2019 02:22 PM (IST)
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केंद्र ने दिल्ली सरकार से कहा- ईस्टर्न व वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए जल्द दो 3500 करोड़
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि दिल्ली सरकार ईस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के लिए भू-अधिग्रहण की लागत के अपने हिस्से के 3,500 करोड़ रुपये का जल्द भुगतान करे। इन दोनों एक्सप्रेस-वे का मकसद राष्ट्रीय राजधानी को जाम मुक्त बनाना है।

ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे गाजियाबाद, फरीदाबाद, गौतमबुद्ध नगर (ग्रेटर नोएडा) और पलवल के बीच सिग्नल-फ्री यातायात सुनिश्चित करता है। वहीं, वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे मानेसर के रास्ते कुंडली को पलवल से जोड़ता है। दोनों की लंबाई 135-135 किमी है।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रलय ने बताया कि शीर्ष अदालत के 18 अक्टूबर के आदेशानुसार 11 नवंबर को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की समिति की बैठक आयोजित की गई। इसमें समिति ने इन प्रस्तावों को पारित किया, (1) सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित 1,000 करोड़ रुपये समेत दिल्ली सरकार तुरंत अपने बकाये का भुगतान करे। बाकी का भुगतान एक महीने के भीतर करना होगा। (2) जैसा कि पहले निर्णय लिया गया था, भू-अधिग्रहण की लागत बढ़ने की स्थिति में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों को क्रमश: 50:25:25 के अनुपात में उसका भार वहन करना होगा।

जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान शुक्रवार को केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएनएस नादकर्णी ने हलफनामे का जिक्र करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार को अपने बकाये का भुगतान करना चाहिए। हलफनामे के मुताबिक, दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से के क्रमश: 3,668.21 करोड़ और 63.47 करोड़ रुपये केंद्रीय पूल में जमा नहीं कराए हैं।

दिल्ली सरकार ने कहा- दे चुके हिस्से की रकम

दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इन एक्सप्रेस-वे को लेकर आदेश जारी किया था तो परियोजना की लागत 800 करोड़ रुपये थी जो बढ़ते-बढ़ते 8,000 करोड़ रुपये हो गई है। अनुमानित लागत के मुताबिक दिल्ली सरकार अपने हिस्से की रकम का पहले ही भुगतान कर चुकी है। उन्होंने कहा, ‘हमारा (दिल्ली सरकार) बजटीय आवंटन बेहद सीमित है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा इसके लाभार्थी हैं और वे इन एक्सप्रेस-वे के किनारे टाउनशिप विकसित कर रहे हैं। ’

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